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कोविड वैक्सीन से पहले आ सकती है हर्ड इम्युनिटी : एम्स के निदेशक

कोरानावायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए कोविड वैक्सीन से पहले हर्ड इम्युनिटी आने की संभावना जताई जा रही है. एम्स के निदेशक रंदीप गुलेरिया ने बताया है कि एक समय ऐसा भी आएगा, जब लोगों को वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी. फिलहाल इसपर अध्ययन जारी है.

AIIMS director Randeep Guleria
एम्स के निदेशक रंदीप गुलेरिया
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Published : Nov 13, 2020, 3:53 PM IST

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के निदेशक रंदीप गुलेरिया ने आईएएनएस के साथ एक खास बातचीत में कहा कि कोरानावायरस के बढ़ते प्रकोप के बाद हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे, जब हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी, और तब वैक्सीन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने ये भी कहा कि अगर वायरस म्यूटेट नहीं होता है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं आता है, तो लोग वैक्सीन लगाने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन इसकी जरूरत नहीं है.

इंटरव्यू के कुछ अंश :

सवाल : अगर वैक्सीन 2021 के अंत तक या 2022 के शुरू में आता है, तो क्या तब तक लोगों में इम्युनिटी नहीं आ जाएगी? लोग इस वायरस संक्रमण को सर्दी, खांसी जुकाम जैसी छोटी-मोटी बीमारी समझने लगें, तो इसका स्वास्थ्य पर कोई ज्यादा बुरा असर तो नहीं पड़ता है?

जवाब : यहां दो पहलू हैं. एक तो यह है कि वैक्सीन जल्दी आ जाए. अगर आ गया तो, यह सबसे पहले उच्च जोखिम वाले समूह के लोगों को लगाया जाएगा. ऐसे लोगों को, जिनमें इंफेक्शन का चांस ज्यादा है, इससे हमें महामारी पर काबू पाने में जल्द मदद मिलेगी और संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आएगी.

लेकिन इस दौरान एक समय ऐसा आएगा, जब हम हर्ड इम्युनिटी पा लेंगे और लोग भी महसूस करेंगे कि उनमें इम्युनिटी आ गई है. ऐसी स्थिति में वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी. अगर वायरस म्यूटेट नहीं करता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता है, तो वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि दोबारा संक्रमण का खतरा बना रहेगा.

एक महत्वपूर्ण मुद्दा ये है कि वायरस में कैसे परिवर्तन आता है और लोगों को दुबारा संक्रमित कर सकता है या नहीं. हम अभी जांच ही कर रहे हैं कि आने वाले कुछ महीनों में वायरस कैसे व्यवहार करेगा और उसी के आधार पर कोई फैसला लिया जा सकता है कि कितनी जल्दी-जल्दी वैक्सीन लगाने की जरूरत पड़ेगी. अगर अच्छी हर्ड इम्युनिटी आ जाती है, तो ये एक चुनौती होगी, क्योंकि वैक्सीन बनाने में काफी पैसा खर्च हुआ है और वैक्सीन निर्माता को ये चिंता सता रही है कि कहीं वैक्सीन की मांग ना कम हो जाए.

सवाल : आपने कोविड से उबरने वाले लोगों में साइड इफेक्ट के बारे में बात की है. अगर कोविड-19 कोरोनोवायरस फैमिली से है, तो साइड इफेक्ट क्यों होता है? क्या इसका स्वास्थ्य पर लंबे समय तक प्रभाव हो सकता है?

जवाब : पिछले वायरल संक्रमण ज्यादातर इन्फ्लूएंजा जैसे अन्य वायरस के कारण होते थे. इस कोरोनावायरस फैमिली में लगभग सात अन्य वायरस हैं. उनमें से चार से बस फ्लू जैसे लक्षण होते हैं, जो बहुत हल्के होते हैं. बाकी बचे तीन में से एक सार्स वायरस है, जिसे कंट्रोल कर लिया गया था. एक मर्स वायरस है, जो कि उतना संक्रामक नहीं है.

इतने बड़े पैमाने पर कोरोनोवायरस दुनिया की पहली सबसे बड़ी महामारी है. पिछली महामारी इन्फ्लूएंजा वायरस के चलते हुई थी. कोरोनावायरस एक नया वायरस है, जो श्वसन तंत्र को संक्रमित कर देता है. और उसके बाद कई प्रभाव होते हैं. यह वायरस रिसेप्टर्स से जुड़ जाता है, जो शरीर में कई अंगों में मौजूद होते हैं. यह ब्लड वेसेल्स में सूजन पैदा कर देता है और यदि ये ब्लड वेसेल्स हृदय में हैं, तो इससे हृदय की मांसपेशियों को मायोकार्डियल क्षति हो सकती है. इससे थक्के बनने की संभावना अधिक होती है और स्ट्रोक भी लग सकता है. हालांकि कोविड से उबरने के बाद गंभीर समस्या होने की आशंका नहीं है, क्योंकि अधिकांश वायरल संक्रमण ठीक हो जाते हैं और लोगों में कुछ दिनों के लिए कुछ प्रभाव होता है, फिर वे ठीक हो जाते हैं.

सरकार सभी स्तरों पर कोविड-19 क्लीनिक विकसित करने पर आक्रामक रूप से काम कर रही है. यह जिला स्तर पर और मेडिकल कॉलेजों में हो सकता है, जहां व्यक्तियों को पूरी सहायता प्रदान की जाती है. उनमें से कई को ध्यान, योग करने की सलाह दी जाती है. इसलिए यह एक व्यापक योजना है, जिसमें एलोपैथिक, योग और आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज होता है.

सवाल : एक डेटा के मुताबिक बीसीजी का टीका वायरल संक्रमण से बचाता है. क्या इसकी खुराक इम्युन सिस्टम बढ़ाती है और कोविड-19 से लोगों की रक्षा कर सकती है?

जवाब : बीसीजी के संबंध में डेटा विवादास्पद है. प्रयोगशालाओं से इन-व्रिटो डेटा है, जो बताता है कि बीसीजी टीकाकरण कुछ हद तक इम्युनिटी देता है. इसका एक एंटी-वायरल प्रभाव भी है. इजराइल के एक अध्ययन से पता चलता है कि उनको कोई लाभ नहीं होता, जिनको बीसीजी टीका लगा है. लेकिन नीदरलैंड में एक अलग अध्ययन है, जो उन लोगों पर है, जिनको बीसीजी का टीका लगा था. इसमें कहा गया है कि बीसीजी का टीका लगाने वालों में कुछ हद तक इम्युनिटी है.

आईसीएमआर के ट्रायल में ये पता चला है कि बीसीजी का टीका लगाने वालों को कुछ तो इम्युनिटी है. दो ट्रायल इस बारे में चल रहे हैं - बुजुर्ग लोगों में बीसीजी का टीका और कम उम्र के लोगों में ये टीका. इस पर डेटा आने का इंतजार है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के निदेशक रंदीप गुलेरिया ने आईएएनएस के साथ एक खास बातचीत में कहा कि कोरानावायरस के बढ़ते प्रकोप के बाद हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे, जब हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी, और तब वैक्सीन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने ये भी कहा कि अगर वायरस म्यूटेट नहीं होता है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं आता है, तो लोग वैक्सीन लगाने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन इसकी जरूरत नहीं है.

इंटरव्यू के कुछ अंश :

सवाल : अगर वैक्सीन 2021 के अंत तक या 2022 के शुरू में आता है, तो क्या तब तक लोगों में इम्युनिटी नहीं आ जाएगी? लोग इस वायरस संक्रमण को सर्दी, खांसी जुकाम जैसी छोटी-मोटी बीमारी समझने लगें, तो इसका स्वास्थ्य पर कोई ज्यादा बुरा असर तो नहीं पड़ता है?

जवाब : यहां दो पहलू हैं. एक तो यह है कि वैक्सीन जल्दी आ जाए. अगर आ गया तो, यह सबसे पहले उच्च जोखिम वाले समूह के लोगों को लगाया जाएगा. ऐसे लोगों को, जिनमें इंफेक्शन का चांस ज्यादा है, इससे हमें महामारी पर काबू पाने में जल्द मदद मिलेगी और संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आएगी.

लेकिन इस दौरान एक समय ऐसा आएगा, जब हम हर्ड इम्युनिटी पा लेंगे और लोग भी महसूस करेंगे कि उनमें इम्युनिटी आ गई है. ऐसी स्थिति में वैक्सीन की जरूरत नहीं पड़ेगी. अगर वायरस म्यूटेट नहीं करता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता है, तो वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि दोबारा संक्रमण का खतरा बना रहेगा.

एक महत्वपूर्ण मुद्दा ये है कि वायरस में कैसे परिवर्तन आता है और लोगों को दुबारा संक्रमित कर सकता है या नहीं. हम अभी जांच ही कर रहे हैं कि आने वाले कुछ महीनों में वायरस कैसे व्यवहार करेगा और उसी के आधार पर कोई फैसला लिया जा सकता है कि कितनी जल्दी-जल्दी वैक्सीन लगाने की जरूरत पड़ेगी. अगर अच्छी हर्ड इम्युनिटी आ जाती है, तो ये एक चुनौती होगी, क्योंकि वैक्सीन बनाने में काफी पैसा खर्च हुआ है और वैक्सीन निर्माता को ये चिंता सता रही है कि कहीं वैक्सीन की मांग ना कम हो जाए.

सवाल : आपने कोविड से उबरने वाले लोगों में साइड इफेक्ट के बारे में बात की है. अगर कोविड-19 कोरोनोवायरस फैमिली से है, तो साइड इफेक्ट क्यों होता है? क्या इसका स्वास्थ्य पर लंबे समय तक प्रभाव हो सकता है?

जवाब : पिछले वायरल संक्रमण ज्यादातर इन्फ्लूएंजा जैसे अन्य वायरस के कारण होते थे. इस कोरोनावायरस फैमिली में लगभग सात अन्य वायरस हैं. उनमें से चार से बस फ्लू जैसे लक्षण होते हैं, जो बहुत हल्के होते हैं. बाकी बचे तीन में से एक सार्स वायरस है, जिसे कंट्रोल कर लिया गया था. एक मर्स वायरस है, जो कि उतना संक्रामक नहीं है.

इतने बड़े पैमाने पर कोरोनोवायरस दुनिया की पहली सबसे बड़ी महामारी है. पिछली महामारी इन्फ्लूएंजा वायरस के चलते हुई थी. कोरोनावायरस एक नया वायरस है, जो श्वसन तंत्र को संक्रमित कर देता है. और उसके बाद कई प्रभाव होते हैं. यह वायरस रिसेप्टर्स से जुड़ जाता है, जो शरीर में कई अंगों में मौजूद होते हैं. यह ब्लड वेसेल्स में सूजन पैदा कर देता है और यदि ये ब्लड वेसेल्स हृदय में हैं, तो इससे हृदय की मांसपेशियों को मायोकार्डियल क्षति हो सकती है. इससे थक्के बनने की संभावना अधिक होती है और स्ट्रोक भी लग सकता है. हालांकि कोविड से उबरने के बाद गंभीर समस्या होने की आशंका नहीं है, क्योंकि अधिकांश वायरल संक्रमण ठीक हो जाते हैं और लोगों में कुछ दिनों के लिए कुछ प्रभाव होता है, फिर वे ठीक हो जाते हैं.

सरकार सभी स्तरों पर कोविड-19 क्लीनिक विकसित करने पर आक्रामक रूप से काम कर रही है. यह जिला स्तर पर और मेडिकल कॉलेजों में हो सकता है, जहां व्यक्तियों को पूरी सहायता प्रदान की जाती है. उनमें से कई को ध्यान, योग करने की सलाह दी जाती है. इसलिए यह एक व्यापक योजना है, जिसमें एलोपैथिक, योग और आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज होता है.

सवाल : एक डेटा के मुताबिक बीसीजी का टीका वायरल संक्रमण से बचाता है. क्या इसकी खुराक इम्युन सिस्टम बढ़ाती है और कोविड-19 से लोगों की रक्षा कर सकती है?

जवाब : बीसीजी के संबंध में डेटा विवादास्पद है. प्रयोगशालाओं से इन-व्रिटो डेटा है, जो बताता है कि बीसीजी टीकाकरण कुछ हद तक इम्युनिटी देता है. इसका एक एंटी-वायरल प्रभाव भी है. इजराइल के एक अध्ययन से पता चलता है कि उनको कोई लाभ नहीं होता, जिनको बीसीजी टीका लगा है. लेकिन नीदरलैंड में एक अलग अध्ययन है, जो उन लोगों पर है, जिनको बीसीजी का टीका लगा था. इसमें कहा गया है कि बीसीजी का टीका लगाने वालों में कुछ हद तक इम्युनिटी है.

आईसीएमआर के ट्रायल में ये पता चला है कि बीसीजी का टीका लगाने वालों को कुछ तो इम्युनिटी है. दो ट्रायल इस बारे में चल रहे हैं - बुजुर्ग लोगों में बीसीजी का टीका और कम उम्र के लोगों में ये टीका. इस पर डेटा आने का इंतजार है.

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