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आईवीएफ करवाने से पहले लें प्रक्रिया की पूरी जानकारी

गर्भधारण की खुशी को प्राकृतिक रूप से अनुभव ना कर पाने वाले लोगों की जिंदगी में आईवीएफ एक वरदान की तरह काम करता है, लेकिन यह प्रक्रिया सरल नहीं होती है और ना ही इसका नतीजा 100 फीसदी सफल होता है। इसलिए बहुत जरूरी है की इस प्रक्रिया को अपनाने से पहले इसके बारे में पूरी जानकारी ली जाये।

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आईवीएफ
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Published : Apr 11, 2021, 9:01 AM IST

संतान जन्म की खुशी हासिल करने के लिए आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक को अपनाने से पहले बहुत जरूरी है कि लोगों को इस तकनीक के बारे में पूरी जानकारी हो। उपचार को लेने से पहले यदि लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी हो, तो उपचार की अवधि उनके लिए सरल हो जाती है। साथ ही जानकारी के अभाव में उपचार के दौरान किसी प्रकार की समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ता है। आईवीएफ से जुड़ी तमाम जानकारियों के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने रिप्रोडक्टिव मेडिसिन तथा सर्जरी विशेषज्ञ तथा के.आई.एम.एस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद में मदरहुड फर्टिलिटी विभाग की निदेशक तथा विभागाध्यक्ष डॉ. एस. वैजयंती से बात की।

आईयूआई तथा आईवीएफ में अंतर

डॉक्टर वैजयंती बताती है कि आमतौर पर लोगों में आईयूआई तथा आईवीएफ को लेकर काफी भ्रम रहता है। हालांकि यह दोनों ही पद्धति वैज्ञानिक रूप से भ्रूण निर्माण का कार्य करती हैं। लेकिन यह दोनों ही पद्धतियां बिल्कुल अलग हैं। आईवीएफ पद्धति में प्रजनन विशेषज्ञ महिलाओं की ओवरी से अंडा लेकर पुरुष स्पर्म के साथ लैबोरेट्री में उनका निषेचन करते हैं। इस प्रक्रिया के उपरांत निर्मित भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

जबकि आईयूआई पद्धति में निषेचन को बढ़ावा देने के लिए शुक्राणु को सीधे महिला के गर्भाशय के अंदर रखा जाता है। यह स्वस्थ शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने का एक तरीका है, जो फैलोपियन ट्यूब तक पहुंचता है। आईयूआई उपचार ज्यादातर उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है, जिनमें बांझपन के कारणों का पता नहीं चल पाता है।

किन समस्याओं में आईवीएफ उपचार है फायदेमंद

  1. फैलोपियन ट्यूब में रुकावट।
  2. ऐसा बांझपन जिसके कारणों को ज्ञात नहीं किया जा सका हो, यानी सभी जांचों के नतीजों के सामान्य आने के बावजूद भी गर्भधारण में समस्या होने पर।
  3. पुरुषों में स्पर्म से जुड़ी और समस्याएं, विशेषकर स्पर्म की संख्या में कमी और उनकी गुणवत्ता में खराबी।
  4. मध्यम या गंभीर एंडोमेट्रियोसिस।
  5. महिलाओं में अंडोत्सर्ग संबंधी समस्याएं।
  6. ओवरी में समस्याएं।

क्या है आईवीएफ की प्रक्रिया

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आईवीएफ

डॉ. वैजयंती बताती हैं की सात चरणों में पूरी होने वाली आईवीएफ की सामान्य प्रक्रिया इस प्रकार हैं;

  • प्रथम चरण (ओवरी को प्रक्रिया के लिए तैयार करना)

आईवीएफ के प्रथम चरण में बेहतर प्रजनन तथा अंडों के ज्यादा निर्माण के लिए ओवरी को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है, जिसके चलते ओवरी में कूपों के निर्माण के लिए प्रयास किया जाता है। इस चरण में मासिक धर्म के पहले या दूसरे दिन से प्रतिदिन आईवीएफ लेने वाली महिला के शरीर में हार्मोन इंजेक्शन दिए जाते हैं। जिससे महिलाओं के शरीर में अंडों का निर्माण ज्यादा हो तथा फॉलिकल्स का आकार बढ़े।

  • द्वितीय चरण (फॉलिकल के विकास की निगरानी)

फॉलिकल्स के आकार तथा उसके सही गति में विकास के लिए बहुत जरूरी है कि उस पर नियमित निगरानी रखी जाए। क्योंकि ओवरी में जरूरत से ज्यादा उत्तेजना बढ़ने पर पार्श्व प्रभाव नजर आ सकते हैं।

  • तीसरा चरण (इंजेक्शन के माध्यम से ओवरी को तैयार करना)

फॉलिकल्स के अपेक्षित आकार में पहुंचने के बाद अंडो के परिपक्व होने से पहले महिलाओं को दवाइयों के इंजेक्शंस दिए जाते हैं। यह इंजेक्शन अंडों की पुनर्स्थापना से 2 दिन पहले देर शाम को दिए जाते हैं।

  • चौथा चरण (अंडों का संग्रहण)

हालांकि इस प्रक्रिया को एनेस्थीसिया देकर किया जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया इतनी सरल होती है की इसके 2 से 3 घंटे के उपरांत महिला को घर भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार से काटने या टांके लगाने की जरूरत नहीं होती है। और ज्यादातर महिलाएं बगैर किसी दर्द निवारक दवाई की मदद से इस प्रक्रिया को पूरा कर लेती हैं।

  • पांचवा चरण (अंडों का संकलन)

इस प्रक्रिया के चलते पुरुष को हस्तमैथुन के जरिए अपने वीर्य को एकत्रित करना होता है। हालांकि आईवीएफ के लिए वीर्य के ताजे सैंपल की आवश्यकता होती है, लेकिन यदि किसी कारणवश यदि पुरुष का वीर्य संकलन के समय आईवीएफ सेंटर में मौजूद हो पाना संभव ना हो, तो आईवीएफ तकनीक में पहले से जमा किए गए वीर्य का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • छठा चरण

निर्धारित मात्रा में पुरुष के वीर्य महिलाओं के अंडों के साथ एक पात्र में रखा जाता है। जांच की जाती है कि अंडे प्रजनन योग्य है या नहीं। जिसके उपरांत भ्रूण निर्माण की प्रक्रिया होती है।

  • सातवां चरण (भ्रूण का स्थानांतरण)

ओकटे की बहाली के 2 से 3 दिन के उपरांत लैब में निर्मित भ्रूण को महिला के शरीर में स्थानांतरित किया जाता है। यह एक सरल और सीधी प्रक्रिया होती है, जिसे एस्पेटिक कंडीशन के तहत पूरा किया जाता है।

प्रक्रिया के उपरांत ध्यान देने योग्य बातें

  • आईवीएफ प्रक्रिया के उपरांत लंबे समय तक महिला को बेड रेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है। प्रक्रिया की कुछ अवधि बाद ही वह अपनी नियमित दिनचर्या शुरू कर सकती हैं। साथ ही सामान्य भोजन ग्रहण कर सकती हैं।
  • आईवीएफ प्रक्रिया के बाद कब शारीरक संबंधों बनाए जा सकते हैं, इसके लिए बहुत जरूरी है कि चिकित्सा सलाह ली जाए।

कैसे चुने आईवीएफ क्लिनिक

  1. आईवीएफ तकनीक को अपनाने से पहले बहुत जरूरी है जिस संस्थान में आप यह इलाज लेने वाले हैं उस संस्थान के बारे में आपको पूरी जानकारी हो। संस्थान की प्रमाणिकता के साथ ही वहां पर कार्य कर रहे चिकित्सकों तथा वैज्ञानिकों के बारे में तथा उनके अनुभव के बारे में भी पूरी जानकारी लेना बेहतर होता है।
  2. संस्थान में पहले की गई आईवीएफ पद्धति के नतीजों की सफलता के आंकड़ों पर भी ध्यान देना जरूरी है।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए svyjayanthi99@gmmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

संतान जन्म की खुशी हासिल करने के लिए आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक को अपनाने से पहले बहुत जरूरी है कि लोगों को इस तकनीक के बारे में पूरी जानकारी हो। उपचार को लेने से पहले यदि लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी हो, तो उपचार की अवधि उनके लिए सरल हो जाती है। साथ ही जानकारी के अभाव में उपचार के दौरान किसी प्रकार की समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ता है। आईवीएफ से जुड़ी तमाम जानकारियों के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने रिप्रोडक्टिव मेडिसिन तथा सर्जरी विशेषज्ञ तथा के.आई.एम.एस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद में मदरहुड फर्टिलिटी विभाग की निदेशक तथा विभागाध्यक्ष डॉ. एस. वैजयंती से बात की।

आईयूआई तथा आईवीएफ में अंतर

डॉक्टर वैजयंती बताती है कि आमतौर पर लोगों में आईयूआई तथा आईवीएफ को लेकर काफी भ्रम रहता है। हालांकि यह दोनों ही पद्धति वैज्ञानिक रूप से भ्रूण निर्माण का कार्य करती हैं। लेकिन यह दोनों ही पद्धतियां बिल्कुल अलग हैं। आईवीएफ पद्धति में प्रजनन विशेषज्ञ महिलाओं की ओवरी से अंडा लेकर पुरुष स्पर्म के साथ लैबोरेट्री में उनका निषेचन करते हैं। इस प्रक्रिया के उपरांत निर्मित भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

जबकि आईयूआई पद्धति में निषेचन को बढ़ावा देने के लिए शुक्राणु को सीधे महिला के गर्भाशय के अंदर रखा जाता है। यह स्वस्थ शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने का एक तरीका है, जो फैलोपियन ट्यूब तक पहुंचता है। आईयूआई उपचार ज्यादातर उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है, जिनमें बांझपन के कारणों का पता नहीं चल पाता है।

किन समस्याओं में आईवीएफ उपचार है फायदेमंद

  1. फैलोपियन ट्यूब में रुकावट।
  2. ऐसा बांझपन जिसके कारणों को ज्ञात नहीं किया जा सका हो, यानी सभी जांचों के नतीजों के सामान्य आने के बावजूद भी गर्भधारण में समस्या होने पर।
  3. पुरुषों में स्पर्म से जुड़ी और समस्याएं, विशेषकर स्पर्म की संख्या में कमी और उनकी गुणवत्ता में खराबी।
  4. मध्यम या गंभीर एंडोमेट्रियोसिस।
  5. महिलाओं में अंडोत्सर्ग संबंधी समस्याएं।
  6. ओवरी में समस्याएं।

क्या है आईवीएफ की प्रक्रिया

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आईवीएफ

डॉ. वैजयंती बताती हैं की सात चरणों में पूरी होने वाली आईवीएफ की सामान्य प्रक्रिया इस प्रकार हैं;

  • प्रथम चरण (ओवरी को प्रक्रिया के लिए तैयार करना)

आईवीएफ के प्रथम चरण में बेहतर प्रजनन तथा अंडों के ज्यादा निर्माण के लिए ओवरी को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है, जिसके चलते ओवरी में कूपों के निर्माण के लिए प्रयास किया जाता है। इस चरण में मासिक धर्म के पहले या दूसरे दिन से प्रतिदिन आईवीएफ लेने वाली महिला के शरीर में हार्मोन इंजेक्शन दिए जाते हैं। जिससे महिलाओं के शरीर में अंडों का निर्माण ज्यादा हो तथा फॉलिकल्स का आकार बढ़े।

  • द्वितीय चरण (फॉलिकल के विकास की निगरानी)

फॉलिकल्स के आकार तथा उसके सही गति में विकास के लिए बहुत जरूरी है कि उस पर नियमित निगरानी रखी जाए। क्योंकि ओवरी में जरूरत से ज्यादा उत्तेजना बढ़ने पर पार्श्व प्रभाव नजर आ सकते हैं।

  • तीसरा चरण (इंजेक्शन के माध्यम से ओवरी को तैयार करना)

फॉलिकल्स के अपेक्षित आकार में पहुंचने के बाद अंडो के परिपक्व होने से पहले महिलाओं को दवाइयों के इंजेक्शंस दिए जाते हैं। यह इंजेक्शन अंडों की पुनर्स्थापना से 2 दिन पहले देर शाम को दिए जाते हैं।

  • चौथा चरण (अंडों का संग्रहण)

हालांकि इस प्रक्रिया को एनेस्थीसिया देकर किया जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया इतनी सरल होती है की इसके 2 से 3 घंटे के उपरांत महिला को घर भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार से काटने या टांके लगाने की जरूरत नहीं होती है। और ज्यादातर महिलाएं बगैर किसी दर्द निवारक दवाई की मदद से इस प्रक्रिया को पूरा कर लेती हैं।

  • पांचवा चरण (अंडों का संकलन)

इस प्रक्रिया के चलते पुरुष को हस्तमैथुन के जरिए अपने वीर्य को एकत्रित करना होता है। हालांकि आईवीएफ के लिए वीर्य के ताजे सैंपल की आवश्यकता होती है, लेकिन यदि किसी कारणवश यदि पुरुष का वीर्य संकलन के समय आईवीएफ सेंटर में मौजूद हो पाना संभव ना हो, तो आईवीएफ तकनीक में पहले से जमा किए गए वीर्य का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • छठा चरण

निर्धारित मात्रा में पुरुष के वीर्य महिलाओं के अंडों के साथ एक पात्र में रखा जाता है। जांच की जाती है कि अंडे प्रजनन योग्य है या नहीं। जिसके उपरांत भ्रूण निर्माण की प्रक्रिया होती है।

  • सातवां चरण (भ्रूण का स्थानांतरण)

ओकटे की बहाली के 2 से 3 दिन के उपरांत लैब में निर्मित भ्रूण को महिला के शरीर में स्थानांतरित किया जाता है। यह एक सरल और सीधी प्रक्रिया होती है, जिसे एस्पेटिक कंडीशन के तहत पूरा किया जाता है।

प्रक्रिया के उपरांत ध्यान देने योग्य बातें

  • आईवीएफ प्रक्रिया के उपरांत लंबे समय तक महिला को बेड रेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है। प्रक्रिया की कुछ अवधि बाद ही वह अपनी नियमित दिनचर्या शुरू कर सकती हैं। साथ ही सामान्य भोजन ग्रहण कर सकती हैं।
  • आईवीएफ प्रक्रिया के बाद कब शारीरक संबंधों बनाए जा सकते हैं, इसके लिए बहुत जरूरी है कि चिकित्सा सलाह ली जाए।

कैसे चुने आईवीएफ क्लिनिक

  1. आईवीएफ तकनीक को अपनाने से पहले बहुत जरूरी है जिस संस्थान में आप यह इलाज लेने वाले हैं उस संस्थान के बारे में आपको पूरी जानकारी हो। संस्थान की प्रमाणिकता के साथ ही वहां पर कार्य कर रहे चिकित्सकों तथा वैज्ञानिकों के बारे में तथा उनके अनुभव के बारे में भी पूरी जानकारी लेना बेहतर होता है।
  2. संस्थान में पहले की गई आईवीएफ पद्धति के नतीजों की सफलता के आंकड़ों पर भी ध्यान देना जरूरी है।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए svyjayanthi99@gmmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

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