सिजोफ्रेनिया एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें मरीज को हैलोसिनेशंस (hallucination) यानी भ्रम होने लगते है. इस रोग की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि गंभीर सिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोग ना सिर्फ अपने आप को बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुँचा सकते हैं. हालांकि चिकित्सकों का मानना है कि यदि सही समय पर इस समस्या का पता चल जाए और पीड़ित को इसका इलाज मिल जाए तो वह काफी हद तक सामान्य जीवन जी सकता है. लेकिन यह भी सत्य है ज्यादातर मामलों में मरीजों को इन लक्षणों से छुटकारा पाने में लंबा वक्त लग जाता है. इस रोग के बेहतर इलाज को ढूँढने की दिशा में देश विदेश में काफी शोध हो चुके हैं या हो रहे हैं.
हाल ही में पीएनएएस नामक पत्रिका में प्रकाशित अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों के एक शोध में गंभीर सिजोफ्रेनिया के पीड़ितों के जीन पर इस रोग के प्रभावों के चलते बढ़ने वाली जटिलताओं के बारे में बताया गया है. सिजोफ्रेनिया को बेहतर तरीके से समझने तथा उसके इलाज के लिए बेहतर संभावनाएं ढूँढने के उद्देश्य से आयोजित इस शोध में यह जानकारी मिली है कि जो लोग इस बीमारी के अति गंभीर रूप से पीड़ित हैं उनमें संबंधित जीन में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में म्यूटेशन हो सकते हैं.
गंभीर समस्या है सिजोफ्रेनिया
गौरतलब है सिजोफ्रेनिया एक ऐसी बीमारी है, जो ना सिर्फ मस्तिष्क के कार्यों को बाधित करती है बल्कि यादाश्त में कमी तथा मतिभ्रम जैसी समस्याएं भी पैदा करती है. हालांकि इस रोग के होने के कई कारण हैं लेकिन अनुवांशिक कारणों से इसके होने का खतरा लोगों में 60-80 प्रतिशत तक माना जाता है. इसके अलावा अत्यधिक तनाव, सदमा, दुर्घटना, सामाजिक दबाव और अन्य परेशानियां भी इस बीमारी के होने का कारण बन सकती हैं. मस्तिष्क में रासायनिक बदलाव या किसी प्रकार की चोट भी कभी-कभी इस बीमारी की वजह बन सकती है.
इस बीमारी में रोगी के विचार, भावनाओं और व्यवहार में असामान्य बदलाव आते हैं. जिनके कारण कई बार उन्हें सामान्य जीवन जीने में समस्या आने लगती है, और कई बार उन्हे दूसरों पर निर्भर होने के लिए भी मजबूर भी होना पड़ जाता है. वहीं सिजोफ्रेनिया के पीड़ितों को यदि सही इलाज ना मिले तो करीब 25 फीसदी मरीजों के आत्महत्या करने का खतरा होता है. सिजोफ्रेनिया के लक्षण, संकेत तथा उसके प्रभाव हर मरीज में अलग तरह के हो सकते हैं.
क्या कहते हैं शोध के नतीजे
शोध के प्रमुख लेखक तथा अमेरिका के बायलर कालेज आफ मेडिसिन में मनोचिकित्सा एवं व्यवहार विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एंथनी डब्ल्यू जोघबी ने शोध के नतीजों में बताया है कि यह शोध सिजोफ्रेनिया की अनुवांशिकी पर नया प्रकाश डालता है. साथ ही उन्होंने यह उम्मीद भी जताई है कि इस समस्या के प्रभावी इलाज की खोज में इस अध्ययन के नतीजे महत्वपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि रिसर्च के परिणाम न्यूरोसाइकिएटिक विकारों के जेनेटिक रिस्क की पहचान के लिए प्रभावी रणनीति को रेखांकित करते हैं.
इस शोध में सिजोफ्रेनिया के 112 गंभीर मरीजों व 218 मध्यम लक्षणों वाले मरीजों को विषय बनाया गया था. जिनकी जांच के परिणामों की तुलना ऐसे 5000 लोगों के परिणामों से की गई थी जिनमें यह बीमारी काफी नियंत्रित स्तिथि में थी. अध्ययन के दौरान पाया गया कि सिजोफ्रेनिया के गंभीर मरीजों के जीन में अपेक्षाकृत काफी अधिक घातक म्यूटेशन हुए थे. गंभीर लक्षणों वाले कुल प्रतिभागियों में से 48% ऐसे थे, जिनके कम से कम एक जीन में दुर्लभ व घातक म्यूटेशन हुआ था.
क्या कहते हैं आँकड़े
सिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों के आंकड़ों की बात करें तो विभिन्न वेबसाइट्स पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार दुनिया भर में सिजोफ्रेनिया के करीब ढाई करोड़ से ज्यादा मरीज हैं. यह बीमारी प्रति 1000 व्यस्कों में से 10 लोगों में नजर आती है. वहीं भारत में अलग अलग प्रकार व डिग्री वाले सिजोफ्रेनिया पीड़ितों की संख्या लगभग 40 लाख से ज्यादा है .
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