इतने महीने बीत जाने के बाद भी कोविड-19 उस पहेली की तरह सामने आ रहा है, जिसे जितना सुलझाओ उसकी उतनी ही कड़ियां हमारे सामने आने लगती हैं. नोवेल कोरोनावायरस के शरीर पर पड़ने वाले असर को लेकर भी नित नई जानकारियां सामने आती रहती हैं. इसी श्रंखला में अब विभिन्न शोधों तथा चिकित्सकों की राय के उपरांत कहा जा रहा है कि कोविड-19 के संक्रमण से जूझ रहे मरीजों के ठीक हो जाने के बाद भी उनके शरीर तथा विभिन्न तंत्रों पर इस बीमारी के दीर्घकालीन साइड इफेक्ट रहते हैं. विशेष तौर पर पीड़ित के मस्तिष्क तथा तंत्रिका तंत्र पर इसका गहरा असर पड़ रहा हैं.
मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर कोविड-19 का असर
अपोलो हॉस्पिटल तथा मेगना न्यूरोलॉजी, हैदराबाद में न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर श्रीकांत वरमुला ने ETV भारत सुखीभवा की टीम से बात करते हुए इस तथ्य की पुष्टि की, कि कोरोनावायरस कई प्रकार से हमारे मस्तिष्क तथा तंत्रिका तंत्र पर असर डाल सकता है.
डॉ. श्रीकांत बताते हैं कि शरीर में कोरोनावायरस के संक्रमण फैलने, और यहां तक कि मरीज के ठीक होने के बाद भी उसमें एन्सेफेलाइटिस यानी मस्तिष्क में जलन तथा मस्तिष्क विकार एन्सेफेलोपैथी होने के मामले सामने आ रहे है. इन परिस्थितियों के चलते व्यक्ति में उनींदापन बढ़ जाता हैं, उसे हर समय नींद आती रहती है तथा वह हर समय हर काम में असमंजसता महसूस करता रहता है.
कोरोनावायरस के असर के चलते मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले विकारों से मस्तिष्क के दौरे जैसी कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. यहां चिंताजनक बात यह है कि कोविड-19 से जूझ रहे या ठीक हो चुके ऐसे मरीज जिन्हें पहले से मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियां नहीं थी, उनमें भी स्ट्रोक तथा हेमरेज के मामले देखने में आए हैं. इनमें बहुत से मरीज ऐसे भी थे, जिन्हें कोरोनावायरस से ठीक हुए एक महीने से ज्यादा समय बीत चुका था. कोविड-19 के परिणाम स्वरूप मरीज के मस्तिष्क में होने वाली कुछ गंभीर बीमारियां इस प्रकार हैं;
- थ्रांबोसिस: इस संक्रमण के चलते व्यक्ति की रक्त प्रवाह तंत्रिकाओं में रक्त के थक्के बनने लग जाते हैं. थ्रांबोसिस नामक इस समस्या में व्यक्ति के शरीर में खून के प्रवाह की गति पर असर पड़ता है तथा मस्तिष्क तक सही मात्रा में ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं पहुंच पाता है. इस अवस्था के चलते व्यक्ति को स्ट्रोक जैसी समस्या हो सकती है.
- स्ट्रोक: ऐसी अवस्था में रक्त प्रवाह तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के चलते अंदरूनी रक्तस्राव भी शुरू हो सकता है. मस्तिष्क के साथ-साथ यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है, ऐसे में उस हिस्से की कार्य गति धीमी पड़ जाती है और कई बार पक्षाघात जैसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो जाती है. जिसमें व्यक्ति के शरीर का एक हिस्सा कम कार्य करना या कार्य करना बंद कर देता है. ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति चलने, बोलने तथा किसी भी कार्य को करने में अक्षम हो जाता है. सही समय पर ध्यान ना देने पर या अत्यधिक रक्तस्राव होने पर व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है. यहां तक कि उसकी जान पर भी खतरा बन सकता है.
- सेरेब्रल वीनस थ्रोम्बोसिस: सीवीटी अर्थात सेरेब्रल वीनस थ्रोम्बोसिस बेहद घातक होता है और समय रहते इसका इलाज किया जाना बेहद आवश्यक है. यूं तो रक्त का थक्का शरीर के किसी भी हिस्से में जम सकता है, लेकिन अगर यह दिमाग की नसों में होता है, तो स्थिति काफी नाजुक हो जाती है.
कैसे प्रभावित होता है मस्तिष्क
डॉ. श्रीकांत बताते हैं कि रक्त प्रवाह तंत्रिकाओं में क्लोटिंग के अलावा कई बार व्यक्ति के ठीक हो जाने के बाद उसमें बनी एंटीबॉडीज की अत्यधिक मात्रा के चलते उसके शरीर के विभिन्न तंत्र प्रभावित या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. जिसका सीधा असर मस्तिष्क तथा शरीर के अन्य तंत्र तथा हिस्सों के कार्यों पर पड़ता है.
इसके अतिरिक्त चाइना, जापान तथा फ्लोरिडा में कुछ ऐसे मामले संज्ञान में आए हैं, जहां रीढ़ की हड्डी में मिलने वाले द्रव्य तथा ब्रेन सेल्स में इस संक्रमण से संबंधित अनुवांशिक सामग्री मिली है, जिसके चलते एक आशंका यह जताई जा रही है कि कोरोनावायरस संक्रमण के कण हमारे रक्त प्रवाह तथा तंत्रिकाओं में प्रवेश कर रहें हैं.
कोरोना के दौरान सूंघने की क्षमता में कमी हमारे घ्राणकंद यानी ओल्फेक्ट्री बल्ब के प्रभावित होने के कारण होती है. ओल्फेक्ट्री बल्ब हमारी नाक से बिल्कुल ऊपर स्थित होती है, जो मस्तिष्क तक किसी भी सुगंध के बारे में जानकारी पहुंचाती है. इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि कोविड-19 के चलते होने वाले तीव्र बुखार तथा शरीर में ऑक्सीजन की कमी के कारण हमारे मस्तिष्क में शिथिलता तथा विकार उत्पन्न हो रहे हैं. इन्हीं सब कारणों के चलते कोविड-19 से जूझ रहे कुछ गंभीर मरीजों में मल्टीपल ऑर्गन फेलियर के चलते डेलीरियम या कोमा जैसी समस्याएं देखने में आ रही है.
डॉ. श्रीकांत बताते हैं कि कोरोनावायरस के चलते बीमारी के दौरान ही नहीं बल्कि ठीक होने के उपरांत भी हमारे शरीर पर बहुत से दीर्घकालीन नकारात्मक असर देखने में आ रहे हैं. इसलिए बहुत जरूरी है कि लोग जितना ज्यादा हो सके, इस बीमारी से खुद को बचाने का प्रयास करें. जिसके लिए तमाम सावधानियों का उपयोग करें.