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शरीर की प्रकृति व दोष के अनुरूप ही हो भोजन : आयुर्वेद

पंचमहाभूत का सिद्धांत आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का आधार माना जाता है। जानकार मानते है की यदि व्यक्ति अपने शरीर की अवस्था तथा उसकी प्रकृति के आधार पर भोजन ग्रहण करे तो काफी हद तक वह विभिन्न प्रकार के रोगों से स्वयं की रक्षा कर सकता है।

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Published : May 19, 2021, 7:41 PM IST

शरीर की प्रकृति व दोष के अनुरूप ही हो भोजन : आयुर्वेद
Eat According To Your Doshas

आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का मस्तिष्क, उसके सभी आंतरिक व बाह्य अंग तथा तथा उसकी आत्मा शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर करते है। वहीं आयुर्वेद में माना जाता है की किसी भी रोग का आधार, उसका कारण तथा उसका उपचार शरीर की प्रकृति यानी उसके दोष (वात , पित्त और कफ पर) पर निर्भर करते है। इसलिए यदि व्यक्ति अपनी शरीर के दोष की प्रकृति के आधार पर भोजन ग्रहण करें तो वह काफी हद तक बीमारियों से दूर रह सकता है। आयुर्वेदाचार्य तथा आयुर्वेद के इतिहास में पीएचडी डॉ पी. वी रंगनायकूलु ने प्राकृतिक तत्वों तथा दोषों को लेकर आयुर्वेद की मान्यताओं, उनके आधार पर रोगों का वर्गीकरण तथा दोषों के अनुरूप कैसा हो व्यक्ति का भोजन इस बारें में ईटीवी भारत सुखी भव को विस्तार से जानकारी दी ।

प्राकृतिक तत्वों पर आधारित है आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्दती

डॉ पी. वी रंगनायकूलु बताते है की आयुर्वेद में वात , पित्त और कफ तीनों ही दोषों को पाँच प्राकृतिक तत्वों पर आधारित माना जाता है। जिसमें वात को निर्वात यानी आकाश व हवा, पित्त को अग्नि तथा कफ को जल और धरती से संबंधित माना जाता है। इनमें वात दोष के तहत शारीरिक सक्रियता, श्वसन, पाचन, सेल्स का विकास तथा उनका पुनर्निर्माण, मांसपेशियों की सक्रियता तथा शारीरिक संतुलन प्रभावित होता है। पित्त जोकि अग्नि तथा जल द्वारा संचालित होता है शरीर में अम्लता यानी एसिडिटी को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही यह व्यक्ति की दृष्टि, उसकी रंग देखने और समझने की क्षमता तथा शरीर की गर्माहट को नियंत्रित करता है। वही कफ पृथ्वी तथा जल से मिलने वाली ऊर्जा को संचालित तथा नियंत्रित करता है। यह तत्व शरीर में संतुलन को बनाए रखता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों के बाहरी आवरण की सुरक्षा करता है।

हर व्यक्ति के शरीर में रोग तथा समस्याओं का स्वरूप अलग अलग हो सकता है , इस अवधारणा के साथ आयुर्वेद में विभिन्न शारीरिक व मानसिक समस्याओं को 8 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में रोग और समस्याओं को संचालित करने वाले दोष का प्रभाव तथा उन्हें संचालित करने वाले प्राकृतिक तत्वों की अवस्था अलग-अलग होती है। आयुर्वेद में माना जाता है कि व्यक्ति के शरीर के दोष की जानकारी से शरीर पर उसके प्रभाव को नियंत्रित करने तथा उसके निवारण में काफी सहायता मिलती है। रोगों से बचाव के लिए इन तीनों दोषों को नियंत्रित रखने के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है।

वात

वात हमारे शरीर की सक्रियता, नींद ना आना या कम आना , कमर दर्द होना तथा कब्ज जैसी समस्याओं को नियंत्रित करता है। इसलिए जिन लोगों के शरीर की प्रकृति वात आधारित हो उन्हे अपने भोजन में गर्म दूध, मक्खन, साबुत अनाज तथा गर्म पेय पदार्थों को शामिल करना चाहिए। जीरा, अदरक तथा लौंग जैसे मसालों से बना भोजन भी शरीर में इस दोष के चलते उत्पन्न होने वाली समस्याओं को काफी हद तक दूर रख सकता है। इसके अतिरिक्त वात दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए सही समय पर सो जाना तथा सोने से पहले हल्दी तथा इलायची वाला गर्म दूध पीना फायदेमंद होता है।

पित्त

पित्त , शरीर में पाचन तंत्र तथा शरीर के उपापचय , कि ऊर्जा को नियंत्रित करते है, को प्रभावित करता है। ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर की प्रकृति पित्त दोष पर आधारित होती है उन्हें आमतौर पर गर्मी तथा एसिडिटी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त शरीर में जरूरत से ज्यादा अम्लता, छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आना, बेचैनी होना तथा शरीर पर रैश आना इस तरह की प्रकृति वाले व्यक्तियों में आम बात है। पित्त आधारित प्रकृति रखने वाले व्यक्तियों को नियमित तौर पर ध्यान करना चाहिए तथा मध्यम मात्रा में भोजन करना चाहिए यानी ना बहुत ज्यादा ना बिल्कुल कम। गर्मियों के मौसम में सलाद, ठंडा दूध तथा फलों का सेवन इस प्रकृति वाले लोगों को काफी फायदा करता है। इसके अतिरिक्त इन्हे अनाज, सब्जी तथा साबुत अनाज का भरपूर मात्रा में सेवन करना चाहिए, साथ ही तैलीय, मसालेदार तथा खमीर युक्त भोजन से परहेज करना चाहिए।

कफ

इन तीनों प्रकृतियों में कफ को सबसे जटिल माना जाता है। कफ की अधिकता के कारण शरीर में असंतुलन बढ़ने लगता है। जिसके चलते शरीर में वसा व मोटापा बढ़ने, श्वसन प्रक्रिया तथा फेफड़ों मे समस्याएं बढ़ने तथा रोग होने , भूख ना लगने, शरीर में सूजन आने, हमेशा भारी महसूस करने तथा कई बार तनाव जैसी समस्याएं होने लगती है। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति को नियमित तौर पर शारीरिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त उन्हे हमेशा गर्म पेय पदार्थ पीने तथा भोजन में गर्मी प्रदान करने वाले जीरा, मेथी, हल्दी तथा तेल जैसे मसालों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

डॉ पी. वी रंगनायकूलु बताते है की एक अच्छी तथा स्वस्थ जीवनशैली जीने के लिए योग तथा आयुर्वेद को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। इन दोनों की ही मदद से व्यक्ति एक स्वस्थ तथा निरोगी जीवन जी सकता है। इसीलिए बहुत जरूरी है कि व्यक्ति अपने शरीर की प्रकृति तथा दोषों के बारे में पता लगाएं और उसी के आधार पर भोजन संबंधी तथा अन्य आदतों को नियत करें। अपनी शारीरिक प्रकृति के आधार पर अपने शरीर और स्वास्थ्य की देखभाल कर व्यक्ति निरोगी शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क प्राप्त कर सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का मस्तिष्क, उसके सभी आंतरिक व बाह्य अंग तथा तथा उसकी आत्मा शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर करते है। वहीं आयुर्वेद में माना जाता है की किसी भी रोग का आधार, उसका कारण तथा उसका उपचार शरीर की प्रकृति यानी उसके दोष (वात , पित्त और कफ पर) पर निर्भर करते है। इसलिए यदि व्यक्ति अपनी शरीर के दोष की प्रकृति के आधार पर भोजन ग्रहण करें तो वह काफी हद तक बीमारियों से दूर रह सकता है। आयुर्वेदाचार्य तथा आयुर्वेद के इतिहास में पीएचडी डॉ पी. वी रंगनायकूलु ने प्राकृतिक तत्वों तथा दोषों को लेकर आयुर्वेद की मान्यताओं, उनके आधार पर रोगों का वर्गीकरण तथा दोषों के अनुरूप कैसा हो व्यक्ति का भोजन इस बारें में ईटीवी भारत सुखी भव को विस्तार से जानकारी दी ।

प्राकृतिक तत्वों पर आधारित है आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्दती

डॉ पी. वी रंगनायकूलु बताते है की आयुर्वेद में वात , पित्त और कफ तीनों ही दोषों को पाँच प्राकृतिक तत्वों पर आधारित माना जाता है। जिसमें वात को निर्वात यानी आकाश व हवा, पित्त को अग्नि तथा कफ को जल और धरती से संबंधित माना जाता है। इनमें वात दोष के तहत शारीरिक सक्रियता, श्वसन, पाचन, सेल्स का विकास तथा उनका पुनर्निर्माण, मांसपेशियों की सक्रियता तथा शारीरिक संतुलन प्रभावित होता है। पित्त जोकि अग्नि तथा जल द्वारा संचालित होता है शरीर में अम्लता यानी एसिडिटी को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही यह व्यक्ति की दृष्टि, उसकी रंग देखने और समझने की क्षमता तथा शरीर की गर्माहट को नियंत्रित करता है। वही कफ पृथ्वी तथा जल से मिलने वाली ऊर्जा को संचालित तथा नियंत्रित करता है। यह तत्व शरीर में संतुलन को बनाए रखता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों के बाहरी आवरण की सुरक्षा करता है।

हर व्यक्ति के शरीर में रोग तथा समस्याओं का स्वरूप अलग अलग हो सकता है , इस अवधारणा के साथ आयुर्वेद में विभिन्न शारीरिक व मानसिक समस्याओं को 8 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में रोग और समस्याओं को संचालित करने वाले दोष का प्रभाव तथा उन्हें संचालित करने वाले प्राकृतिक तत्वों की अवस्था अलग-अलग होती है। आयुर्वेद में माना जाता है कि व्यक्ति के शरीर के दोष की जानकारी से शरीर पर उसके प्रभाव को नियंत्रित करने तथा उसके निवारण में काफी सहायता मिलती है। रोगों से बचाव के लिए इन तीनों दोषों को नियंत्रित रखने के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है।

वात

वात हमारे शरीर की सक्रियता, नींद ना आना या कम आना , कमर दर्द होना तथा कब्ज जैसी समस्याओं को नियंत्रित करता है। इसलिए जिन लोगों के शरीर की प्रकृति वात आधारित हो उन्हे अपने भोजन में गर्म दूध, मक्खन, साबुत अनाज तथा गर्म पेय पदार्थों को शामिल करना चाहिए। जीरा, अदरक तथा लौंग जैसे मसालों से बना भोजन भी शरीर में इस दोष के चलते उत्पन्न होने वाली समस्याओं को काफी हद तक दूर रख सकता है। इसके अतिरिक्त वात दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए सही समय पर सो जाना तथा सोने से पहले हल्दी तथा इलायची वाला गर्म दूध पीना फायदेमंद होता है।

पित्त

पित्त , शरीर में पाचन तंत्र तथा शरीर के उपापचय , कि ऊर्जा को नियंत्रित करते है, को प्रभावित करता है। ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर की प्रकृति पित्त दोष पर आधारित होती है उन्हें आमतौर पर गर्मी तथा एसिडिटी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त शरीर में जरूरत से ज्यादा अम्लता, छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आना, बेचैनी होना तथा शरीर पर रैश आना इस तरह की प्रकृति वाले व्यक्तियों में आम बात है। पित्त आधारित प्रकृति रखने वाले व्यक्तियों को नियमित तौर पर ध्यान करना चाहिए तथा मध्यम मात्रा में भोजन करना चाहिए यानी ना बहुत ज्यादा ना बिल्कुल कम। गर्मियों के मौसम में सलाद, ठंडा दूध तथा फलों का सेवन इस प्रकृति वाले लोगों को काफी फायदा करता है। इसके अतिरिक्त इन्हे अनाज, सब्जी तथा साबुत अनाज का भरपूर मात्रा में सेवन करना चाहिए, साथ ही तैलीय, मसालेदार तथा खमीर युक्त भोजन से परहेज करना चाहिए।

कफ

इन तीनों प्रकृतियों में कफ को सबसे जटिल माना जाता है। कफ की अधिकता के कारण शरीर में असंतुलन बढ़ने लगता है। जिसके चलते शरीर में वसा व मोटापा बढ़ने, श्वसन प्रक्रिया तथा फेफड़ों मे समस्याएं बढ़ने तथा रोग होने , भूख ना लगने, शरीर में सूजन आने, हमेशा भारी महसूस करने तथा कई बार तनाव जैसी समस्याएं होने लगती है। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति को नियमित तौर पर शारीरिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त उन्हे हमेशा गर्म पेय पदार्थ पीने तथा भोजन में गर्मी प्रदान करने वाले जीरा, मेथी, हल्दी तथा तेल जैसे मसालों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

डॉ पी. वी रंगनायकूलु बताते है की एक अच्छी तथा स्वस्थ जीवनशैली जीने के लिए योग तथा आयुर्वेद को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। इन दोनों की ही मदद से व्यक्ति एक स्वस्थ तथा निरोगी जीवन जी सकता है। इसीलिए बहुत जरूरी है कि व्यक्ति अपने शरीर की प्रकृति तथा दोषों के बारे में पता लगाएं और उसी के आधार पर भोजन संबंधी तथा अन्य आदतों को नियत करें। अपनी शारीरिक प्रकृति के आधार पर अपने शरीर और स्वास्थ्य की देखभाल कर व्यक्ति निरोगी शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क प्राप्त कर सकता है।

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