बच्चों की हकलाती जुबान जहां बड़ों का मन लुभाती है, वहीं बड़ों की यह कमी उन्हें दूसरों के सामने मजाक का पात्र बना देती है. हकलाना एक ऐसी समस्या है, जिसका यदि समय से पता चल जाए, तो सही इलाज की मदद से इसे बिलकुल ठीक किया जा सकता है. स्पीच डिसऑर्डर कही जाने वाली हकलाने की समस्या को लेकर दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 22 अक्टूबर को दुनिया भर में 'अंतरराष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस' मनाया जाता है. इस साल इस विशेष दिवस को 'एक ऐसी दुनिया जो हकलाने को समझती है' (अ वर्ल्ड डैट अंडरस्टैड स्टैमरिंग) थीम पर मनाया जा रहा है. हकलाने जैसी समस्या का कारण क्या होता है और किस तरह से ठीक किया जा सकता है. इस बारे में जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा टीम ने तेलंगाना ऑडियोलॉजिस्ट एंड स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट एसोसिएशन, हैदराबाद के संस्थापक तथा ऑडियोलॉजिस्ट तथा स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट डॉ. के नागेंद्र से बात की.
क्या है हकलाना?
आंकड़ों की मानें तो दुनिया भर में 70 बिलियन लोग हकलाने की समस्या से पीड़ित है. लेकिन हकलाने की समस्या होती क्या है? यह क्यों होती है? इस बारे में जानकारी देते हुए डॉ. नागेंद्र ने बताया कि हकलाना कोई बड़ी बीमारी नहीं बल्कि एक ऐसी अवस्था है, जहां पर आप सरलता तथा सामान्य गति से बात नहीं कर पाते हैं. रुक-रुक कर बोलना, एक ही शब्द को बार-बार बोलना, तेज बोलना, बोलते हुए आंखें भींचना, होठों में कंपकपाहट होना, जबड़े का हिलना आदि ऐसी अवस्थाएं हैं, जो हकलाने के कारण उत्पन्न होते हैं. हकलाने को अंग्रेजी में स्टैमरिंग या स्टूटेरिंग भी कहा जाता है. आमतौर पर देखा गया है कि हकलाने वाले लोगों में से ज्यादातर बड़े सामान्य तरीके से गाना गा पाते हैं. गाने के दौरान ना ही वे अटकते है और ना ही कहीं रुकते हैं.
हकलाने के कारण
हकलाना सिर्फ एक अवस्था या परेशानी का नाम नहीं है, बल्कि यह एक विकार हैं. किसी शब्द को उच्चारित करने में परेशानी होना, उसे साफ तरीके से ना बोल पाना, एक बार में पूरा शब्द ना बोल पाना सहित बहुत सी ऐसी अवस्थाएं हैं, जो हकलाने की श्रेणी में आती है. इसी प्रकार हकलाने के कारण भी अलग-अलग माने गए हैं, जिनमें से कुछ मुख्य कारण इस प्रकार है;
- अनुवांशिक : कई बार हकलाना या बोलने में समस्या का होना अनुवांशिक हो सकता है. ऐसी अवस्था में बच्चों के जींस में इस तरह का असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, जो उसकी साफ तरीके से बोलने की शक्ति को प्रभावित करता है.
- नकल उतारना : कई बार जब बच्चे छोटे होते हैं, तो अपने किसी ऐसे दोस्त या साथी, जो हकला कर बोलता हो, का मजाक उड़ाने के लिए उसी की तरह बोलना शुरू कर देते हैं, जो धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाता है. यहीं से उनमें हकलाने की शुरुआत हो जाती है, जो ध्यान ना देने पर कई बार गंभीर रूप भी ले लेती है.
- मानसिक विकार तथा तनाव : मानसिक अवस्थाओं तथा विकारों का भी हमारे बोलने की क्षमता पर काफी गहरा असर पड़ता है. चाहे किसी एक्सीडेंट में घायल होने के बाद शरीर में होने वाले न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की वजह से तथा कई बार इंफेरियारिटी कंपलेक्स यानी खुद को हीन या कम समझने की सोच के कारण उत्पन्न हुए तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं के कारण भी व्यक्ति हकलाने जैसी समस्या का शिकार हो जाता है. माता-पिता या शिक्षक का बच्चे को हद से ज्यादा डांटना भी कई बार बच्चे को इतना डरा देता है कि उसे बोलने में समस्या होने लगती है.
किस उम्र में शुरू होती है हकलाने की समस्या
डॉ. नागेंद्र बताते हैं कि आमतौर पर बच्चा दो से लेकर चार साल की उम्र तक सही तरीके से बोलना सीखता है. ऐसे में ज्यादातर जब वह नए शब्द तथा नए-नए वाक्य बोलना सीखता है, तो कई बार तुतला कर या कभी हकला कर अपने वाक्यों को पूरा करता है, लेकिन उम्र बढ़ने के बावजूद भी यदि वह बोलने में लगातार अटकता तथा हकलाता है, तो जरूरी है की एक बार उसकी जांच करवा ली जाये की कहीं वह हकलाने जैसे स्पीच डिसऑर्डर का शिकार तो नहीं है. सही समय पर चिकित्सक द्वारा जांच तथा समस्या के शुरुआती दौर में ही स्पीच थेरेपिस्ट या स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट के इलाज से बच्चें में इस समस्या को जड़ से मिटाया जा सकता है. लेकिन उम्र बढ़ने पर पीड़ित के इलाज में परेशानी आ सकती हैं.
कैसे संभव है हकलाहट का इलाज
डॉ. नागेंद्र बताते है कि पहले के समय में लोग कैसे बच्चों के लिए थेरेपिस्ट की मदद लेने में संकुचाते थे, लेकिन बदलते समय के साथ लोगों में इन विषयों को लेकर लोगों में बढ़ती जागरूकता के चलते बड़ी संख्या में लोग इन अवस्थाओं को लेकर चिकित्सकों से सलाह लेने लगे हैं. कुछ समय तक नियमित उपचार के बाद उनकी समस्या काफी हद तक दूर हो जाती है और वह सामान्य तरीके से बातचीत कर पाते हैं.
डॉ. नागेंद्र बताते हैं कि हकलाहट जैसे स्पीच डिसऑर्डर को ठीक करने का एकमात्र उपाय 'स्पीच थेरेपी' है. अलग-अलग चरणों में होने वाली विभिन्न प्रकार की स्पीच थेरेपी की मदद से हकलाहट तथा तुतलाहट को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है. यदि पीड़ित का इलाज बचपन से ही शुरु कर दिया जाता है, तो इस डिसऑर्डर को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. बशर्ते चिकित्सक के दिशा निर्देशों का सही तरीके से पालन किया जाए.