कोरोना को लेकर शोध तथा संघर्ष में जुटे लोग मानते हैं की यदि इस महामारी के संबंध में सही और जरूरी जानकारी सही लोगों के माध्यम से जनता तक पहुंचे, तो इस मानव निर्मित महामारी पर काफी हद तक काबू किया जा सकता है। आयुर्वेदाचार्य तथा रसायन के इतिहास विषय पर पीएचडी डॉक्टर पी. वी. रंगनायकुलु मानते हैं की इस महामारी के बारे में सही जानकारी महामारी विज्ञान से जुड़े लोग बेहतर तरीके से दे सकते हैं, इसलिए जरूरी है की कोविड-19 से जुड़ी जानकारियां उनके माध्यम से प्रसारित की जायें। ETV भारत सुखीभवा को वर्तमान कोविड-19 परिस्थितियों के मद्देनजर उठाए जाने वाले जरूरी कदमों के संबंध में डॉक्टर रंगनायकुलु ने विस्तार से जानकारी दी है।
जरूरी है मूल कारणों के बारे में जागरूकता का प्रसारण
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि लगभग 7 दशक से पहले गणितज्ञ, विद्वान तथा दर्शनशास्त्री बर्ट्रेंड रसेल ने अपने लेखन में मानव विकास की प्रक्रिया में विपरीत परिस्थितियों और समस्याओं को लेकर मानवों के चरणबद्ध संघर्ष और उन पर जीत हासिल करने का उल्लेख किया था। उदारहण के तौर पर उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था की किस तरह इंसानों ने सबसे पहले बड़े जानवरों जैसे हाथी, शेर से जंग जीती और धीरे-धीरे सूक्ष्म बैक्टीरिया तथा उनसे होने वाली समस्याओं पर कुछ हद तक नियंत्रण रखने में सफलता हासिल की। लेकिन मानवीय विकास के इस उल्लेख के विपरीत चिकित्सीय क्षेत्र में इतनी उन्नति के बावजूद आज भी इन बैक्टीरिया जनित समस्याओं पर पूरी तरह से लगाम लगाना या उनके जरिए होने वाली बीमारियों का पूरी तरह से इलाज करना कठिन है। जीव वैज्ञानिकों द्वारा इस संबंध में लगातार किए जा रहे शोधों में सामने आया है की वायरस यानी जीवाणु प्रकृति को जीवन देने वाले कुछ प्रमुख प्राकृतिक प्रयोगों का हिस्सा है। इनसे जनित समस्याएं तथा अवस्थाएं जीवन को प्रभावित करती हैं। कोविड-19 भी एक जीवाणु जनित समस्या है। यह नया वायरस दुनिया भर में हमारे परिस्थिति की तंत्र में घुसकर जनजीवन को प्रभावित कर रहा है।
अज्ञानता से बढ़ रहा है भ्रम
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते है की आमतौर पर संक्रमण का क्षेत्र सीमित माना जाता है और यह तब तक नहीं फैलता जब तक प्रभावित व्यक्ति अन्य क्षेत्रों में आवागमन ना करें। कोरोना संक्रमण देश-विदेश के वैज्ञानिकों के लिए नया नाम नहीं है। लेकिन इस वायरस ने अपने तीव्र स्वरूप में पहली बार बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया है। लेकिन इस परिस्थितियों को लेकर लोगों में डर और समाज में व्याप्त संत्रास का मुख्य कारण है की संक्रमण से जुड़ी मूल जानकारियों को लेकर लोगों में व्याप्त भ्रम और सही जानकारियों का अभाव।
वर्तमान समय में मीडिया की अलग-अलग विधाओं द्वारा कोरोना से जुड़ी सनसनीखेज खबरे फैलाई जा रहीं है। नतीजतन इस संक्रमण के मूल, इसकी प्रवृत्ति तथा उससे जुड़ी सही जानकारियों को लेकर ज्यादा सूचनाएं लोगों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। इसी प्रकार महामारी को लेकर एपिडेमियोलॉजिस्ट्स व तथा विरोलॉजिस्ट बेहतर और सटीक जानकारी दे सकते हैं। क्योंकि वे उनके मूल को समझ कर उनके नियंत्रण के लिए रणनीति तथा उपचार नीति तैयार करते हैं।
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि एपिडेमियोलॉजिस्ट तथा पैथोलॉजिस्ट लगातार शोधों और विभिन्न माध्यमों से कोरोनावायरस के व्यवहार, उसके जन्म से जुड़ी पैथोलॉजी के बारे में जानने का प्रयास कर रहें है। इसलिए बहुत जरूरी है कि कोविड-19 जैसी महामारी से जुड़ी सही जानकारियों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए इन विशेषज्ञों की मदद ली जाए।
सामाजिक मनोवैज्ञानिक समस्या बन गया है कोविड-19
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते है कि पिछले 1 साल के अनुभव को यदि ध्यान में रखा जाए, तो पता चलता है कि लगभग 81 प्रतिशत संक्रमित लोगों में आमतौर पर कम या मध्यम स्तर पर संक्रमण होने पर लक्षण नजर नहीं आते हैं या फिर बहुत ही कम नजर आते हैं, और उन्हें ठीक होने के लिए बहुत ज्यादा या किसी विशेष प्रकार के उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। यदि संक्रमण के बारे में जानकारी मिलने के बाद जरूरी सावधानियां बरती जाये, तो ना तो संक्रमण के ज्यादा फैलने का खतरा बढ़ेगा और ना लोगों में संत्रास। लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण या मानवीय प्रवत्ति को देखा जाए, तो आमतौर पर संक्रमित लोगों को दूसरों के संक्रमित होने पर इस बात की तसल्ली मिलती है कि दूसरे भी इस रोग से पीड़ित हैं और वह काफी सुरक्षित भी महसूस करते हैं। इसलिए जाने अनजाने में वह सामाजिक सुरक्षा मानकों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि यह एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक समस्या है।
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इंफ्रास्ट्रक्चर पर बढ़ता दबाव
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि बाकी बचे हुए 19 प्रतिशत संक्रमित लोग, जिनमें के लक्षण नजर आते भी हैं, उनमें से भी ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन इस संबंध में जानकारी के अभाव के चलते हमारी चिकित्सीय इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी दबाव पड़ता है। वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा की हमारा इंफ्रास्ट्रक्चर इतनी बड़ी संख्या में संक्रमण के रोगियों की देखभाल करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है और हमारी सरकारी व्यवस्था भी शिथिल होने लगी है।
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि किसी भी गलत सूचना या भ्रमित जानकारी से स्वयं को बचाने के लिए बहुत जरूरी है कि इन तथ्यों को ध्यान में रखा जाए।
- महंगी एंटीवायरल दवाइयां कुछ ही मामलों में फायदेमंद होती है. यह दवाइयां किसे देनी होती है, इसका निर्णय भी चिकित्सक सोच समझकर करते हैं। इसलिए इन दवाइयों की कालाबाजारी जैसी खबरों को ज्यादा तवज्जो ना दें।
- इस वायरस के कारण संक्रमण के दौरान खून में थक्के जम सकते हैं, इसलिए अपने चिकित्सक से संपर्क करें और उनके निर्देशानुसार जरूरत पड़ने पर एंटीकोगुलेंट्स यानी रक्त को सामान्य रखने जैसी दवाइयों का कुछ समय के लिए सेवन करें।
- एलोपैथिक दवाइयों के साथ ही आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर कुछ आयुर्वेदिक औषधियों जैसे वासारिष्ट, वसा कांताकारी लेह्यम, अगस्त्य हरीतकी लेयम, दशामुला हरितकी, यष्टिमधु तथा द्राक्षारिष्ट का सेवन किया जा सकता है।
- कोरोनावायरस आमतौर पर ठंडे स्थानों या ऐसे स्थानों पर जहां पर सापेक्षिक आद्रता 50 प्रतिशत से भी कम होती है, पनपता है, इसलिए जहां तक संभव हो सके इन गर्मियों में अपने घर में सापेक्षिक आद्रता को बनाए रखने का प्रयास करें।
- कोविड-19 संक्रमण के लक्षणों के बारे में पूरी जानकारी रखें। इस संक्रमण के सबसे मुख्य लक्षण बुखार, खांसी तथा थकान है। कुछ अन्य प्रसिद्ध लेकिन अपेक्षाकृत कम नजर आने वाले लक्षण है स्वाद तथा सुनने की क्षमता में कमी, शरीर में दर्द, सिरदर्द, गला खराब होना, नाक बंद होना, आंखों में लालिमा होना, डायरिया तथा त्वचा पर लाल चकत्ते नजर आना है।
- हमारी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में विटामिन डी, सी तथा जिंक जैसे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स काफी फायदा करते हैं, इसलिए इनका नियमित सेवन किया जा सकता है।
- कोरोना संक्रमण पानी के जरिए नहीं फैलता है, इसलिए स्विमिंग पूल के इस्तेमाल से यह संक्रमण नहीं फैल सकता है। लेकिन इस दौरान किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर यह संक्रमण प्रभावित कर सकता है।
- अल्कोहल का इस्तेमाल कोरोनावायरस से बचाव नहीं करता है।
- मक्खियां कोरोनावायरस के संक्रमण को नहीं फैलाती हैं।
- मात्र 2 फीसदी लोग ऐसे होते हैं, जिनको कोविड-19 संक्रमण होने के बाद उनकी जान का खतरा होता है। इसलिए रोग होने पर ज्यादा चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
- इनफ्लुएंजा ए तथा बी, बर्ड फ्लू ,स्वाइन फ्लू तथा कुछ अन्य संक्रमण भी मनुष्य के फेफड़ों को प्रभावित कर सकते हैं। कोरोनावायरस भी इसके जैसा ही एक संक्रमण है। यह सभी संक्रमण आत्म सीमित होते हैं।
- ऐसे लोग जो मोटापा, मधुमेह, श्वसन संक्रमण जैसी कोमोरबिडिटी से पीड़ित हो, उन्हें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है।
- चिंता और तनाव से बचने के लिए बहुत जरूरी है की संत्रास फैलाने वाली और भ्रमित खबरे प्रसारित करने वाली सोशल नेटवर्किंग साइट तथा मीडिया से जुड़े विभिन्न माध्यमों से थोड़ी दूरी बनाकर रखी जाए और केवल ऐसे पटल से जानकारी प्राप्त की जाए जो सही जानकारी दे रहे हो।
- यह जानना भी बहुत जरूरी है कि पल्स ऑक्सीमीटर कभी भी ऑक्सीजन का सटीक स्तर नहीं बताते हैं। ऑक्सीमीटर द्वारा बताए जाने वाले नतीजे आमतौर पर ऑक्सीजन की सही मात्रा से कम ही दर्शाते हैं।
- स्वयं तथा दूसरों की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है कि हमेशा मास्क का उपयोग किया जाए।
- चिकित्सा व्यवस्था में कमी होने पर सही जानकारी का उपयोग करते हुए स्वयं की सुरक्षा के लिए प्रयास किया जाना बहुत जरूरी है। सूचनाओं और जानकारियों को लेकर अस्पष्टता तथा कोरोना से बचाव करने का दावा करने वाली अन्य थेरेपियों की असफलता को लेकर कुछ भी बोलना या लोगों को दोष देना स्थिति को विकट बना सकता है।
- कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता है, यह बात कोरोनावायरस पर भी लागू होती है। यह विश्व का अंत नहीं है। हमारे मन में उत्पन्न आतंक शांकाये तथा डर सिर्फ हमें नुकसान पहुंचाता है, वायरस को नहीं।