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कोरोना के चलते उत्पन्न परिस्थितियां लोगों के मन में बढ़ा रही हैं नकारात्मक भाव - covid anxiety

महामारी के साएं में पिछले 1 साल में दुनिया भर में लोगों ने जितना त्रास सहा है उसने उनके मन मस्तिष्क को पूरी तरह से प्रभावित किया है। वर्तमान समय में हर दूसरा व्यक्ति कोरोना के चलते उत्पन्न नकारात्मक भावनाओं के प्रभाव में विभिन्न प्रकार की मानसिक समस्याओं जैसे  अनिश्चितता, डर, अवसाद और चिंता का शिकार है। लेकिन चिंता की बात यह है कि पिछले कुछ समय में कोरोना की दूसरी लहर के चलते हुए बड़ी संख्या में जनहानि की घटनाओं ने लोगों के मन में इन मानसिक समस्याओं के प्रभाव को दोगुना कर दिया है।

कोरोना , negativity, uncertainity
कोरोना के चलते नकारात्मक भाव
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Published : Jun 1, 2021, 11:21 AM IST

इंदौर में एक सोसाइटी में रहने वाली 35 वर्षीय कविता शिवहरे पिछले कुछ समय से गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर झेल रही हैं। कविता के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के चलते लगातार बढ़ रही जनहानि की घटनाओं के चलते उनके मन में अपने जीवन को लेकर भी अनिश्चितता का डर पैदा हो गया है। स्थिति इतनी गंभीर है कि यदि आजकल किसी के सामान्य रूप से बीमार पड़ने पर या सामान्य अवस्था में किसी की मृत्यु की खबर सुनने पर भी उन्हे बहुत ज्यादा बेचैनी और घबराहट होने लगती है।

कविता जैसा ही कुछ हाल देहरादून में रहने वाले राजेश अग्रवाल का भी है। 45 वर्षीय राजेश बताते हैं कि आए दिन अपने आसपास हर उम्र के लोगों की मृत्यु की खबर सुनकर बेहद तनाव महसूस होता है। पिछले दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट पर लगातार आ रहे कोरोना संक्रमण के चलते होने वाली मृत्यु संबंधी संदेशों को सुनकर और पढ़ कर मन में अजीब सा डर और घबराहट उत्पन्न होने लगी है। स्थिति ऐसी है कि आजकल किसी का फोन उठाने में या सोशल नेटवर्किंग साइट देखने तक में डर लगता है कि पता नहीं कब किस की खबर आ जाए।

यह सिर्फ कविता और राजेश की समस्या नहीं है हमारे देश में इस समय अधिकांश लोग इस प्रकार के डर और एंजाइटी का सामना कर रहे हैं। चिंता की बात यह है कि इस तरह की मानसिक अवस्था से पीड़ित लोगों में सिर्फ वे ही लोग शामिल नहीं है जिन्होंने कोरोना के कारण अपने परिजन या नजदीकी लोगों को खोया हो या फिर कोरोना के चलते गंभीर परिस्थितियों को झेला हो ।

वर्तमान परिस्थितियों के चलते लोगों के मन में पनपने वाली नकारात्मकता और गंभीर मानसिक समस्याओं की प्रभावों को लेकर ईटीवी भारत सुखी भव की टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर वीना कृष्णन से बात की।

भविष्य की चिंता बढ़ा रहा है समस्याएं

डॉक्टर कृष्णन बताती है कि आजकल उनके पास सलाह तथा इलाज के लिए आने वाले अधिकांश लोग किसी ना किसी कारण से भय, अनिश्चितता, दुख, डर, एंजाइटी और तनाव सहित कई मानसिक समस्याओं से पीड़ित होते हैं। यह सत्य है कि कोरोना की दूसरी लहर के चलते बड़ी संख्या में हुई जनहानि की घटनाओं ने लोगों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। बड़ी संख्या में लोगों के मन में यह डर घर कर गया है कि उनके जीवन का भी कोई भरोसा नहीं है। वहीं ऐसे लोग जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य, किसी नजदीकी व्यक्ति तथा दोस्त को खोया हो , उनके मन में दुख और एंजाइटी के साथ अपराध बोध जैसी भावनाएं भी घर करने लगी है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कठिन परिस्थितियों में अपने अपनों की मदद नहीं कर पाए और उनका जीवन बचाने में सफल नहीं हो पाए। उस पर यदि काल के ग्रास में समाने वाले व्यक्ति की उम्र कम हो तो उसके दोस्तों व परिजनों पर उसकी मृत्यु का ज्यादा प्रभाव नजर आ रहा है।

डॉक्टर कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियां ऐसी है कि लोग चाह कर भी लोगों से मिलजुल नहीं पाते हैं और प्रत्यक्ष तौर पर उनकी मदद नहीं कर पाते हैं जिससे उनके मन का अपराध बोध ज्यादा बढ़ जाता है।

ग्रीफ साइकिल के यह पांच चरण

एलिजाबेथ कूबलर रॉस ने 1969 में अपनी पुस्तक “ऑन द डेथ एंड डाईंग” में दुख के पांच चरणों का उल्लेख किया था। डॉक्टर कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियों में बड़ी संख्या में लोग इन पांचों चरणों को महसूस कर रहे हैं। ग्रीफ साइकिल के यह पांच चरण इस प्रकार हैं।

1. डिनायल यानी अस्वीकार्यता

इस स्तर में आमतौर पर लोग दुर्घटना को लेकर अस्वीकार्यता का भाव रखते हैं। आमतौर पर इस स्तर में लोग भ्रम, परिस्थितियों से बचने तथा सदमा जैसी भावनाओं का एहसास करते हैं।

2. एंगर यानी गुस्सा

इस स्तर पर पहुंचने पर आमतौर पर लोग बेचैनी, चिड़चिड़ापन, निराशा तथा कुंठा जैसी भावनाएं महसूस करते हैं।

3. बारगेनिंग यानी स्वयं से सवाल-जवाब की स्थिति

इस परिस्थिति तक पहुंचते-पहुंचते व्यक्ति दर्द , दुख और तकलीफ से बचने के लिए मन्नत मांगने, सब बेहतर करने की कामना लेकर ईश्वर के समक्ष गिड़गिड़ाने, और उससे मोलतोल करने लगते हैं। यह एक ऐसी अवस्था होती है जब पीड़ित वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उससे दूर रहने के लिए हर संभव प्रयास करता है।

4. डिप्रेशन यानी तनाव

इस स्तर में आमतौर पर लोग व्यग्रता, बेबसी या निसहायता तथा विरोध जैसी भावना महसूस करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप उनमें छोटी-छोटी बातों पर दूसरों से लड़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है।

5. एक्सेप्टेंस यानी स्वीकार्यता

इस स्तर पर पहुंचने के बाद व्यक्ति कहीं ना कहीं परिस्थितियों से समझौता कर लेता है तथा अपने साथ होने वाली दुर्घटना या दुख की घटना को स्वीकार भी कर लेता है। हालांकि इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उसका दर्द या दुख कम हो जाता हो लेकिन उस सत्य की स्वीकार्यता उसके लिए आगे बढ़ने की राह खोल देती है।

पढ़ें: क्यों देते हैं चिकित्सक कोविड-19 से लड़ने के लिए जिंक के सेवन की सलाह !

कैसे करें परिस्थितियों का सामना

डॉक्टर कृष्णन बताते हैं कि आमतौर पर लोग मानते हैं कि समय के साथ सब दुख दूर होने लगते हैं। जबकि सत्य यह है कि समय नहीं व्यक्ति की गतिविधियां और उसके कार्य उसके दुख और पीड़ा से उसे दूर रखते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि जब पीड़ित इस प्रकार की भावनाओं का शिकार होने लगे तो उसे स्वयं को ऐसी गतिविधियों में व्यस्त रखना चाहिए जिससे कुछ समय के लिए ही सही लेकिन उनका संपूर्ण ध्यान अपने दुख से हट जाए। यदि व्यक्ति स्वयं ऐसा न कर सके तो उसके आसपास के लोगों को उसे व्यस्त रखने में मदद करनी चाहिए। ऐसे समय में बहुत जरूरी है कि लोग आपस में संपर्क बनाए रखें और एक दूसरे का सहयोग करें।

हमारे देश में आमतौर पर ऐसी परिस्थितियों में ज्यादातर लोग प्रोफेशनल हेल्प यानी चिकित्सक की मदद नहीं लेते हैं, यहां तक कि अपने दुख को किसी और के साथ सांझा करने में भी कतराते हैं । ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि पीड़ित के परिजन और दोस्त उससे नियमित संवाद बनाए रखने का प्रयास करें। यदि परिस्थितियां किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण जटिल हुई हो तो दोस्त तथा अन्य परिजन उस व्यक्ति से जुड़ी अच्छी बुरी यादें साझा करके पीड़ित को ना सिर्फ उक्त व्यक्ति के जाने की सच्चाई को स्वीकार करने में मदद कर सकते बल्कि उसकी यादों के माध्यम से पीड़ित की मानसिक अवस्था को बेहतर करने में भी मदद कर सकते हैं।

डॉक्टर कृष्णन कहती हैं कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए जब ना सिर्फ शारीरिक समस्याएं बल्कि मानसिक समस्याएं भी लोगों के समक्ष एक बड़ी चिंता बनती जा रही हैं, बहुत जरूरी है कि सरकारी या प्रशासनिक स्तर पर “ ग्रीफमेन्ट क्लिनिक” यानी ऐसे स्वास्थ्य केंद्र खोले जाएं जहां लोगों के दुख के प्रबंधन के लिए उन्हे ग्रीफ थेरेपी तथा अन्य चिकित्सीय मदद दी जाए।

व्यक्तिगत स्तर पर देखा जाए तो इन परिस्थितियों के चलते लोगों को ऐसे 10 लोगों की सूची अपने पास तैयार रखनी चाहिए जिनसे आप विकट परिस्थितियों में मदद मांग सकते हैं।

इंदौर में एक सोसाइटी में रहने वाली 35 वर्षीय कविता शिवहरे पिछले कुछ समय से गंभीर एंजायटी डिसऑर्डर झेल रही हैं। कविता के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के चलते लगातार बढ़ रही जनहानि की घटनाओं के चलते उनके मन में अपने जीवन को लेकर भी अनिश्चितता का डर पैदा हो गया है। स्थिति इतनी गंभीर है कि यदि आजकल किसी के सामान्य रूप से बीमार पड़ने पर या सामान्य अवस्था में किसी की मृत्यु की खबर सुनने पर भी उन्हे बहुत ज्यादा बेचैनी और घबराहट होने लगती है।

कविता जैसा ही कुछ हाल देहरादून में रहने वाले राजेश अग्रवाल का भी है। 45 वर्षीय राजेश बताते हैं कि आए दिन अपने आसपास हर उम्र के लोगों की मृत्यु की खबर सुनकर बेहद तनाव महसूस होता है। पिछले दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट पर लगातार आ रहे कोरोना संक्रमण के चलते होने वाली मृत्यु संबंधी संदेशों को सुनकर और पढ़ कर मन में अजीब सा डर और घबराहट उत्पन्न होने लगी है। स्थिति ऐसी है कि आजकल किसी का फोन उठाने में या सोशल नेटवर्किंग साइट देखने तक में डर लगता है कि पता नहीं कब किस की खबर आ जाए।

यह सिर्फ कविता और राजेश की समस्या नहीं है हमारे देश में इस समय अधिकांश लोग इस प्रकार के डर और एंजाइटी का सामना कर रहे हैं। चिंता की बात यह है कि इस तरह की मानसिक अवस्था से पीड़ित लोगों में सिर्फ वे ही लोग शामिल नहीं है जिन्होंने कोरोना के कारण अपने परिजन या नजदीकी लोगों को खोया हो या फिर कोरोना के चलते गंभीर परिस्थितियों को झेला हो ।

वर्तमान परिस्थितियों के चलते लोगों के मन में पनपने वाली नकारात्मकता और गंभीर मानसिक समस्याओं की प्रभावों को लेकर ईटीवी भारत सुखी भव की टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर वीना कृष्णन से बात की।

भविष्य की चिंता बढ़ा रहा है समस्याएं

डॉक्टर कृष्णन बताती है कि आजकल उनके पास सलाह तथा इलाज के लिए आने वाले अधिकांश लोग किसी ना किसी कारण से भय, अनिश्चितता, दुख, डर, एंजाइटी और तनाव सहित कई मानसिक समस्याओं से पीड़ित होते हैं। यह सत्य है कि कोरोना की दूसरी लहर के चलते बड़ी संख्या में हुई जनहानि की घटनाओं ने लोगों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। बड़ी संख्या में लोगों के मन में यह डर घर कर गया है कि उनके जीवन का भी कोई भरोसा नहीं है। वहीं ऐसे लोग जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य, किसी नजदीकी व्यक्ति तथा दोस्त को खोया हो , उनके मन में दुख और एंजाइटी के साथ अपराध बोध जैसी भावनाएं भी घर करने लगी है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कठिन परिस्थितियों में अपने अपनों की मदद नहीं कर पाए और उनका जीवन बचाने में सफल नहीं हो पाए। उस पर यदि काल के ग्रास में समाने वाले व्यक्ति की उम्र कम हो तो उसके दोस्तों व परिजनों पर उसकी मृत्यु का ज्यादा प्रभाव नजर आ रहा है।

डॉक्टर कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियां ऐसी है कि लोग चाह कर भी लोगों से मिलजुल नहीं पाते हैं और प्रत्यक्ष तौर पर उनकी मदद नहीं कर पाते हैं जिससे उनके मन का अपराध बोध ज्यादा बढ़ जाता है।

ग्रीफ साइकिल के यह पांच चरण

एलिजाबेथ कूबलर रॉस ने 1969 में अपनी पुस्तक “ऑन द डेथ एंड डाईंग” में दुख के पांच चरणों का उल्लेख किया था। डॉक्टर कृष्णन बताती है कि वर्तमान परिस्थितियों में बड़ी संख्या में लोग इन पांचों चरणों को महसूस कर रहे हैं। ग्रीफ साइकिल के यह पांच चरण इस प्रकार हैं।

1. डिनायल यानी अस्वीकार्यता

इस स्तर में आमतौर पर लोग दुर्घटना को लेकर अस्वीकार्यता का भाव रखते हैं। आमतौर पर इस स्तर में लोग भ्रम, परिस्थितियों से बचने तथा सदमा जैसी भावनाओं का एहसास करते हैं।

2. एंगर यानी गुस्सा

इस स्तर पर पहुंचने पर आमतौर पर लोग बेचैनी, चिड़चिड़ापन, निराशा तथा कुंठा जैसी भावनाएं महसूस करते हैं।

3. बारगेनिंग यानी स्वयं से सवाल-जवाब की स्थिति

इस परिस्थिति तक पहुंचते-पहुंचते व्यक्ति दर्द , दुख और तकलीफ से बचने के लिए मन्नत मांगने, सब बेहतर करने की कामना लेकर ईश्वर के समक्ष गिड़गिड़ाने, और उससे मोलतोल करने लगते हैं। यह एक ऐसी अवस्था होती है जब पीड़ित वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उससे दूर रहने के लिए हर संभव प्रयास करता है।

4. डिप्रेशन यानी तनाव

इस स्तर में आमतौर पर लोग व्यग्रता, बेबसी या निसहायता तथा विरोध जैसी भावना महसूस करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप उनमें छोटी-छोटी बातों पर दूसरों से लड़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है।

5. एक्सेप्टेंस यानी स्वीकार्यता

इस स्तर पर पहुंचने के बाद व्यक्ति कहीं ना कहीं परिस्थितियों से समझौता कर लेता है तथा अपने साथ होने वाली दुर्घटना या दुख की घटना को स्वीकार भी कर लेता है। हालांकि इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उसका दर्द या दुख कम हो जाता हो लेकिन उस सत्य की स्वीकार्यता उसके लिए आगे बढ़ने की राह खोल देती है।

पढ़ें: क्यों देते हैं चिकित्सक कोविड-19 से लड़ने के लिए जिंक के सेवन की सलाह !

कैसे करें परिस्थितियों का सामना

डॉक्टर कृष्णन बताते हैं कि आमतौर पर लोग मानते हैं कि समय के साथ सब दुख दूर होने लगते हैं। जबकि सत्य यह है कि समय नहीं व्यक्ति की गतिविधियां और उसके कार्य उसके दुख और पीड़ा से उसे दूर रखते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि जब पीड़ित इस प्रकार की भावनाओं का शिकार होने लगे तो उसे स्वयं को ऐसी गतिविधियों में व्यस्त रखना चाहिए जिससे कुछ समय के लिए ही सही लेकिन उनका संपूर्ण ध्यान अपने दुख से हट जाए। यदि व्यक्ति स्वयं ऐसा न कर सके तो उसके आसपास के लोगों को उसे व्यस्त रखने में मदद करनी चाहिए। ऐसे समय में बहुत जरूरी है कि लोग आपस में संपर्क बनाए रखें और एक दूसरे का सहयोग करें।

हमारे देश में आमतौर पर ऐसी परिस्थितियों में ज्यादातर लोग प्रोफेशनल हेल्प यानी चिकित्सक की मदद नहीं लेते हैं, यहां तक कि अपने दुख को किसी और के साथ सांझा करने में भी कतराते हैं । ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि पीड़ित के परिजन और दोस्त उससे नियमित संवाद बनाए रखने का प्रयास करें। यदि परिस्थितियां किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण जटिल हुई हो तो दोस्त तथा अन्य परिजन उस व्यक्ति से जुड़ी अच्छी बुरी यादें साझा करके पीड़ित को ना सिर्फ उक्त व्यक्ति के जाने की सच्चाई को स्वीकार करने में मदद कर सकते बल्कि उसकी यादों के माध्यम से पीड़ित की मानसिक अवस्था को बेहतर करने में भी मदद कर सकते हैं।

डॉक्टर कृष्णन कहती हैं कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए जब ना सिर्फ शारीरिक समस्याएं बल्कि मानसिक समस्याएं भी लोगों के समक्ष एक बड़ी चिंता बनती जा रही हैं, बहुत जरूरी है कि सरकारी या प्रशासनिक स्तर पर “ ग्रीफमेन्ट क्लिनिक” यानी ऐसे स्वास्थ्य केंद्र खोले जाएं जहां लोगों के दुख के प्रबंधन के लिए उन्हे ग्रीफ थेरेपी तथा अन्य चिकित्सीय मदद दी जाए।

व्यक्तिगत स्तर पर देखा जाए तो इन परिस्थितियों के चलते लोगों को ऐसे 10 लोगों की सूची अपने पास तैयार रखनी चाहिए जिनसे आप विकट परिस्थितियों में मदद मांग सकते हैं।

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