"जिस दिन मुझे डॉक्टर ने बताया कि मेरी रिपोर्ट में ब्रेस्ट कैंसर कन्फर्म हुआ है, मुझे लगा कि दुनिया वहीं थम गई है. बीमारी से ठीक होने के बारें में सोचना तो दूर, मुझे यह लग रहा था की मै कब तक जी पाऊँगी.यह सब सोच-सोच कर मैं एक अलग ही तरह के तनाव का शिकार हो गई थी.” यह कहना है राजस्थान जयपुर की अरुणा वाजपेयी (वर्तमान आयु 45) का जिन्हें वर्ष 2016 में ब्रेस्ट कैंसर हुआ था. दुनिया भर में 1 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक स्तन कैंसर जागरूकता माह (Breast Cancer Awareness Month October) Pinktober मनाया जाता है. इस अवसर पर ETV भारत सुखीभव अपने पाठकों के साथ साझा कर रहा है कैंसर से जंग जीत चुकी कुछ सर्वाइवर के संघर्ष की कहानी. Breast Cancer Awareness Month October . Breast cancer awareness month theme together we rise . Breast cancer treatment .
अरुणा ही नहीं इस जटिल रोग की पुष्टि होते ही अधिकांश महिलाओं को लगता है कि उनकी जिंदगी खत्म होने वाली है. जिसका कारण इस रोग तथा उसके इलाज को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी तथा उनके मन में कैंसर को लेकर व्याप्त डर है. ज्यादातर लोगों को लगता है एक बार यह रोग हो जाए तो इसका पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है. जबकि सच यह है कि सही समय पर जांच और सही इलाज से Breast Cancer से मुक्ति संभव है.
अलग-अलग कारण: दुनिया भर में हर साल बड़ी संख्या में महिलायें अलग-अलग कारणों से Breast Cancer का शिकार होती हैं. यह महिलाओं में प्रचलित कैंसर का सबसे आम प्रकार है. आमतौर पर लोगों को लगता है की इस रोग का इलाज सिर्फ संक्रमित स्तन को आपरेशन के माध्यम से हटा देना ही है, जो पूरी तरह से सही नही है. यदि सही समय पर इस रोग की पुष्टि हो जाये तो दवाइयों और थेरेपियों की मदद से इसका इलाज काफी हद तक संभव है. इंडियन कैंसर सोसायटी (Indian Cancer Society) के अनुसार स्तन कैंसर के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं.
- स्तन में गांठ होना
- निप्पल के आकार या त्वचा के रंग में बदलाव होना
- स्तन का सख्त होना
- निप्पल पर खुजली
- निप्पल से रक्त या द्रव्य निकलना
- स्तन में दर्द
- बाहों के नीचे गांठ
- स्तन में सूजन आना
Breast Cancer Awareness Month October के उपलक्ष्य में इस विशेष आलेख का हिस्सा बनी सभी सर्वाइवर का कहना है स्तन कैंसर से संघर्ष की जंग सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी काफी कठिन होती है. क्योंकि ना सिर्फ इस रोग का इलाज लंबा और कष्टकारी है बल्कि इस अवधि में रोग से जुड़े भ्रम, ठीक ना होने का डर, दवाइयों का शरीर पर असर और बालों, सौन्दर्य व सेहत पर उसके प्रभाव मानसिक स्वस्थ को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं.
सर्वाइवर का संघर्ष (Survivor's Struggle) : अपने कैंसर से संघर्ष की कहानी बताते हुए अध्यापिका अरुणा वाजपेयी बताती हैं कि उन्हे दूसरी स्टेज में कैंसर के होने की बात पता चली थी. उनके दायें स्तन में एक गांठ थी जिसे वे कार्य की व्यस्तता तथा आलस के चलते लंबे समय से अनदेखा कर कर रही थीं लेकिन बाद में उस गांठ में थोड़ी असहजता के साथ कुछ अन्य प्रकार की शारीरिक समस्याएं महसूस होने लगी जैसे बुखार, उलटी जैसा महसूस होना, हार्मोन में गड़बड़ी आदि. वहीं स्तन के आकार में अंतर लग रहा था. ऐसे में जब उन्होंने चिकित्सक से परामर्श लिया तो उन्होंने जांच करने की सलाह दी. जिसमें Breast Cancer की पुष्टि हुई.
वह बताती हैं कैंसर के इलाज का सफर आसान नहीं था. स्तन की सर्जरी तथा अलग-अलग प्रकार की थेरेपी का सामना कष्टकारी रहा. कई बार नतीजे सकारात्मक आते थे तो कई बार स्थिति बिगड़ भी जाती थी. लेकिन चिकित्सक के प्रोत्साहन तथा स्तन कैंसर को लेकर ज्यादा जानकारी मिलने पर पहले उम्मीद बढ़ती रही और फिर विश्वास हो गया कि मैं इस रोग से जीत सकती हूं. हालांकि उन्हे इस बात का मलाल है कि उन्होंने चिकित्सकों को दिखाने में देरी क्यों की, वरना इलाज के दौरान कि परेशानियां कुछ कम हो सकती थी. लेकिन वह यह भी कहती हैं की इस सफर ने उन्हें मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत बना दिया है.
वहीं दिल्ली की नीलिमा वर्मा बताती हैं कि उन्हे 2014 में ब्रेस्ट कैंसर हुआ था. दरअसल उनके परिवार में पहले से स्तन कैंसर का इतिहास रहा था, और उनसे पहले उनकी माँ को यह बीमारी हो चुकी थी. वह बताती हैं पहले उनकी मां के एक स्तन में कैंसर की कोशिकाएं मिली थी. कैंसर थोड़ा फैल चुका था इसलिए सर्जरी कर के उनके एक स्तन को हटा दिया गया था. लेकिन कीमो तथा अन्य थेरेपी का प्रभाव उनके शरीर पर काफी पड़ा था. हालांकि इलाज और सही देखभाल के बाद वे कुछ सालों तक वे ठीक थी. लेकिन सर्जरी के कुछ सालों बाद उनकी माँ के दूसरे स्तन में भी कैंसर के होने पुष्टि हुई. लेकिन इस बार वे ज्यादा भाग्यशाली नहीं रही क्योंकि जब तक कैंसर के होने का पता चला तब तक स्तन में कैंसर तीसरे चरण में पहुंच चुका था. दूसरी सर्जरी में दूसरा स्तन हटवाने, कीमोथेरेपी तथा तमाम थेरेपियों के बाद भी उन्हे बचाया नहीं जा सकता था.
सावधानी का पालन : चूंकि नीलिमा को जानकारी थी कि परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास होने से उन्हे भी यह रोग होने की आशंका है, इसलिए उन्होंने पहले से ही सभी सावधानियों का पालन किया तथा वे नियमित अंतराल पर अपनी जांच करवाती थी. ऐसी ही एक जांच में उन्हे शुरुआती चरण में ब्रेस्ट कैंसर के होने की पुष्टि हुई. सही समय पर इलाज तथा तमाम सावधानियों को बरतने के बाद अब वो पूरी तरह से Breast Cancer से मुक्त हो गई .
इंदौर की भारती शर्मा को जब स्तन कैंसर की पुष्टि हुई तो उनके बच्चे की आयु लगभग एक साल थी. शुरुआत में स्तन में गांठ होने पर उन्हें तथा उनके घरवालों को लगा की यह स्तन में दूध जमने के कारण होने वाली गांठ होगी. इस दौरान वह मासिक धर्म संबंधित और हार्मोनल समस्याओं का सामना भी कर रही थी. जिन्हें पोस्ट डिलीवरी समस्या मान कर उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
लेकिन जब तमाम प्रयासों के बाद भी गांठ ठीक नहीं हुई तथा अन्य समस्याएं भी ज्यादा परेशान करने लगी तब उन्होंने अपनी विशेषज्ञ की सलाह पर मैमोग्राफी जांच कराई जिसमें कैंसर के बारें में पता चला. पहली बार मां बनने के कुछ समय उपरांत ही इस बीमारी की पुष्टि होने पर भारती भारी अवसाद में आ गई थी. जिसके लिए उन्होंने इलाज के साथ काउंसलिंग भी ली. यही नहीं उन्होंने एक कैंसर सर्वाइवर समूह को भी ज्वाइन किया. कैंसर से सफलतापूर्वक जीत चुके लोगों से मिलकर, काउंसलिंग की मदद से चिकित्सक के दिशा निर्देशों का पालन करके उन्होंने भी अपने इलाज को लेकर सकारात्मक रवैया अपनाया और आज वे पूरी तरह से Breast Cancer से मुक्त हैं.
Pinktober : लाइलाज नहीं है स्तन कैंसर, स्तन कैंसर जागरूकता माह