नयी दिल्ली : एक अध्ययन के अनुसार आंख की रेटिना में रक्त के प्रवाह में परिवर्तन से पता चल सकता है कि माइग्रेन के कुछ रोगियों को दृश्यता से संबंधित लक्षण क्यों अनुभव होते हैं. रेटिना अधिकांश कशेरुकी श्रेणी के और कुछ मोलस्का (स्थलीय अथवा जलीय) श्रेणी के प्राणियों की आंखों के ऊतकों की सबसे भीतरी, प्रकाश के प्रति संवेदनशील परत होती है. पत्रिका 'हेडेक: द जर्नल ऑफ हेड एंड फेस पेन' में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है. अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार माइग्रेन के रोगियों में इस अवलोकन का उपयोग चिकित्सक इस स्थिति के नैदानिक उपचार में सहायता के लिए कर सकते हैं.
माइग्रेन के रोगियों को अक्सर आंखों के आसपास दर्द, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता और दृश्यता संबंधी धुंधलापन जैसे लक्षणों का अनुभव होता है. इन लक्षणों के लिए क्या तंत्र जिम्मेदार है इसे अब तक अच्छी तरह से समझा नहीं गया है. अमेरिका में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिलिस के अनुसंधानकर्ताओं ने माइग्रेन के लक्षण उभरने के दौरान और बीच में माइग्रेन के रोगियों की रेटिना रक्त वाहिकाओं में परिवर्तन को देखने के लिए एक 'नॉन-इनवेसिव इमेजिंग' तकनीक का उपयोग किया जिसे ऑप्टिकल सुसंगत टोमोग्राफी एंजियोग्राफी या ओसीटीए के रूप में जाना जाता है.
ये प्रयोग औरा (कुछ कुछ समय के अंतराल पर दिखने वाले) लक्षणों वाले 37 माइग्रेन रोगियों, गैर 'औरा' लक्षणों वाले 30 माइग्रेन रोगियों और 20 स्वस्थ रोगियों पर किया गया था. अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि 'औरा' लक्षणों वाले और गैर 'औरा' लक्षणों वाले दोनों माइग्रेन रोगियों के लिए माइग्रेन के लक्षण उभरने के दौरान रेटिना में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है.
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