क्या आपने कभी ऐसे बच्चे को देखा है, जो बगैर थके लगातार दौड़ता रहता हो, किसी की बात नहीं सुनता हो, यहां तक की बार-बार कहने के बाद भी वह शांति से एक जगह बैठ नहीं पाता हो. उसे देखते ही मन में अचानक से यह विचार नहीं आता है की हे भगवान! कितना शरारती बच्चा है? हालांकि अतिसक्रियता या हाइपरएक्टिविटी बच्चों में सामान्य मानी जाती है. लेकिन कई बार जब यह अतिसक्रियता असामान्य लक्षणों के साथ बच्चे के व्यवहार पर असर डालने लगती है, तो वह मानसिक विकार कहलाने लगती है. बच्चों में यह विशेष अवस्था “अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर” यानि एडीएचडी कहलाती है. ETV भारत सुखीभवा टीम ने एडीएचडी के बारे में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से विस्तार से चर्चा की.
एडीएचडी और उसके कारण
डॉ. कृष्णन बताती है की एडीएचडी एक दिमाग से संबंधित विकार है, जो सिर्फ बच्चों में ही नहीं बड़ो में भी नजर आता है. बच्चों में आमतौर पर जब कोई अतिसक्रियता दिखाता है, तो उसके परिजन, उसके अध्यापक गण या जानकार लोग यह कहकर उसके व्यवहार को नजरंदाज कर देते है की कितना शैतान है, लेकिन बड़ा होकर सुधार जाएगा. लेकिन कई बार यह अवस्था बड़े होकर सुधरने वाली नहीं होती है और ध्यान ना देने पर मानसिक अस्वस्थता में तब्दील हो जाती है.
एडीएचडी के लक्षणों को नजरअंदाज करने पर बच्चे की मानसिक अवस्था पर काफी नकारात्मक असर दिखाई देने लगता है. आमतौर पर बच्चे हो या फिर बड़े इस मानसिक अवस्था या बीमारी के होने पर उनके व्यवहार में निराशाजनक अंतर आ जाता है, उसकी याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है और वह किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते है. यह समस्या लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ज्यादा होती है.
डॉ. कृष्णन बताती है की आंकड़ों की माने तो पिछले 20 वर्षों में एडीएचडी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. मरीजों में बच्चे और बड़े दोनों शामिल है. लेकिन ज्यादातर यह समस्या बच्चों में देखने में आती है. इसका कारण कई बार परिवार में तनाव भरा माहौल, कोई मस्तिष्क तंत्र संबंधी समस्या, पोषणयुक्त खानपान की कमी तथा दृष्टि दोष हो सकता है. कई बार यह समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है.
वहीं किशोरों और वयस्कों में एडीएचडी पारिवारिक, स्कूल या कार्यक्षेत्र के तनाव, किसी प्रकार के शारीरिक या सामाजिक शोषण का प्रभाव, बचपन में एडीएचडी की समस्या पर ध्यान ना देने के कारण हो सकती है.
बच्चों में एडीएचडी के लक्षण
बच्चों में एडीएचडी का सबसे मुख्य लक्षण है, अतिसक्रियता. जिसके चलते एक जगह पर ना बैठना, लगातार व्याकुल या बेचैन रहना, दूसरों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते रहना, स्कूल और घर सभी जगह लापरवाही बरतना, दूसरों की बात ना सुनना, ज्यादातर बाते भूल जाना, किसी भी कार्य को ढंग से ना करना, चिल्लाना और कई बार दूसरों से मार पिटाई करने जैसे लक्षण उसमें नजर आते हैं.
वयस्कों में एडीएचडी के लक्षण
डॉ. कृष्णन बताती हैं की बच्चों के मुकाबले बड़ों में एडीएचडी के लक्षण ज्यादा व्यापक तरीके से नजर आते हैं.
⦁ उनकी एकाग्रता में कमी, यानि वे किसी भी चीज पर ध्यान नहीं लगा पाते है.
⦁ भूलने की बीमारी, यानि वे किसी भी बात या चीज को याद नहीं रख पाते हैं.
⦁ कारण, अकारण हमेशा उदास रहते हैं.
⦁ बहुत जल्दी किसी भी बात को लेकर हाइपर या बेचैन हो जाते है.
⦁ निजी रिश्तों में सामंजस्य बैठाने में भी उन्हें समस्या होती है.
क्या है इलाज
चूंकि एडीएचडी एक व्यवहारपरक अवस्था है, इसलिए बच्चे हो या फिर बड़े उनके इलाज के लिए व्यवहारपरक थेरेपी की ही सहायता ली जाती है. एडीएचडी के लक्षणों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है, ध्यान ना देना, जरूरत से ज्यादा सक्रियता और असंतोष. इन्ही वर्गों के आधार पर उनके उपचार का निर्धारण किया जाता है. इस उपचार में साइकोथेरेपी के अलावा दवाइयों और ट्रेनिंग की भी मदद ली जाती है. डॉ. कृष्णन बताती है की बहुत जरूरी है की जैसे ही इस अवस्था के बारे में पता चले, पीड़ित का इलाज शुरू कर दिया जाए. क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ रोगी की अवस्था ज्यादा खराब होने लगती है और उसके उपचार में ज्यादा बाधाएं आ सकती है.
एडीएचडी पीड़ित बच्चों के लिए रखें एहतियात
⦁ एडीएचडी पीड़ित बच्चों को रचनात्मक कार्यों में लगाने का प्रयास करें.
⦁ उनके आस-पास कम से कम चीजें रखें, ताकि उनका मन ज्यादा ना भटके.
⦁ उन्हें प्रोत्साहन दें, उनके काम को सराहें और इनाम भी दें.
⦁ उनके साथ मारपीट बिल्कुल ना करें.
यदि वह कोई गलती करता है, तो उसे संयम और सूझ-बूझ के साथ समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि उसने जो किया है, वह गलत है.