हम कई बार देखते हैं कि कुछ बच्चे हमेशा बहुत ही ज्यादा सक्रिय होते हैं. सक्रिय होने से मतलब यह हैं कि लेकिन वो एक स्थान पर आराम या शांति से नहीं बैठ पाते हैं, बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और बहुत ज्यादा जिद व गुस्सा करते हैं, किसी काम में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं आदि. ऐसे बच्चों को आमतौर पर हायपर यानी अति उत्तेजित बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों का हाइपर व्यवहार हमेशा सामान्य बात नहीं होती है बल्कि कई बार यह “अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD)” Attention Deficit Hyperactivity Disorder का नतीजा भी हो सकता है. ADHD awareness month october theme understanding a shared experience .
ना सिर्फ बच्चों बल्कि वयस्कों में भी ADHD के कारणों, प्रभाव, इसके निवारण तथा इससे जुड़े भ्रमों को लेकर जागरूकता फैलाने तथा लोगों को सही समय पर इसके इलाज के लिए चिकित्सीय मदद लेने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अक्टूबर माह को “नेशनल एडीएचडी माह” के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष यह आयोजन “ understanding a shared experience “ यानी 'एक साझा अनुभव को समझना' थीम पर आयोजित किया जा रहा है.
इतिहास (Attention Deficit Hyperactivity Disorder history)
गौरतलब है कि इस आयोजन की शुरुआत सर्वप्रथम कुछ अमेरिकी संगठनों द्वारा की गई थी. राष्ट्रीय एडीएचडी जागरूकता माह की स्थापना वर्ष 2004 में कई संगठनों के संयुक्त प्रयास से हुई थी. दरअसल सबसे पहले अमेरिकी सीनेट द्वारा एडीएचडी जागरूकता दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में स्थापित किया गया था. जिसका समय बाद में बढ़ा कर एक माह कर दिया गया था. वर्तमान समय में इसे वैश्विक पटल पर कई देशों में ना सिर्फ एडीएचडी से जुड़ी संस्थाओं द्वारा बल्कि कई अन्य चिकित्सीय तथा सामाजिक संगठनों द्वारा भी मनाया जाता है.
क्या कहते हैं आँकड़े
ADHD से पीड़ितों कि संख्या को लेकर वैश्विक स्तर पर कई अध्ययन तथा सर्वे हो चुके हैं. उनमें से नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ केयर एंड एक्सीलेंस द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, बच्चों में एडीएचडी का अनुमानित वैश्विक प्रसार लगभग 5% है. वहीं कुछ अध्ययनों के नतीजे यह भी बताते हैं कि भारत में स्कूल जाने वाले लगभग 1.6 प्रतिशत से 12.2 प्रतिशत तक बच्चों में ADHD की समस्या पाई जाती है. यह मनोविकार लड़कियों की तुलना में लड़कों में ज्यादा पाया जाता है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) की एक रिपोर्ट के अनुसार एडीएचडी के लक्षण ज्यादातर प्री-स्कूल या केजी कक्षाओं के बच्चों में नजर आने शुरू हो जाते हैं. लेकिन सही समय पर तथा सही इलाज ना मिलने पर यह मनोविकार किशोरावस्था तथा वयस्कों तक को प्रभावित कर सकता है . यहां तक कि इससे उनका शैक्षिक, सामाजिक, व्यावसायिक तथा पारिवारिक जीवन भी काफी ज्यादा प्रभावित हो सकता है.
एडीएचडी के कारण तथा प्रकार (ADHD Cause and ADHD types)
गौरतलब है कि एडीएचडी के स्पष्ट कारणों को लेकर अभी भी काफी संशय तथा मतभेद हैं. लेकिन इसे एक न्यूरो डेवलपमेंटल स्थिति माना जाता है जो आनुवंशिक कारणों से भी हो सकती है. ADHD types तीन प्रकार के माने गए हैं , अतिसक्रिय, आवेगी और असावधान व्यवहार. इन तीनों ही प्रकारों में बच्चों तथा वयस्कों में कुछ लक्षण अलगअलग भी नजर आ सकते हैं, लेकिन यह पीड़ितों के निजी, कामकाजी तथा सामाजिक जीवन को काफी प्रभावित कर सकते हैं. जानकारों का कहना है कि इस मनोविकार का कोई कोई इलाज नहीं है, लेकिन क्लीनिकल एवं साइकोलॉजिकल जांच, काउंसलिंग, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी तथा कभी कभी जरूरत पड़ने पर दवाओं की मदद से भी इसे पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है.
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