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कोरोना प्रकोप के बीच 5 राज्यों में गर्भपात की गोलियों की कमी

लॉकडाउन के दौरान देश के कुछ राज्यों में गर्भपात गोलियों के स्टॉक पर अध्ययन किया गया. अध्ययन में 5 राज्यों में गर्भपात की गोलियों के स्टॉक में भारी कमी पायी गई हैं. अधिकांश केमिस्ट कानूनी और दस्तावेजीकरण के कारण दवाइयों का स्टॉक नहीं रखते. इसकी वजह से लाखों महिलाएं सुरक्षित गर्भपात विधि की पहुंच से वंचित हैं.

abortion pills
गर्भपात की गोली
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Published : Aug 11, 2020, 4:27 PM IST

Updated : Aug 12, 2020, 9:35 AM IST

कोरोनावायरस प्रकोप के बीच दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा और मध्य प्रदेश में स्टॉक की कमी के कारण पूरे देश में मेडिकल गर्भपात गोलियों की अत्यधिक कमी हो गई है. सोमवार को एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है.

'फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज' द्वारा 1,500 दवा विक्रेताओं (केमिस्ट) पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि, पंजाब में केवल एक प्रतिशत, तमिलनाडु और हरियाणा में दो-दो प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 6.5 प्रतिशत और दिल्ली में 34 प्रतिशत केमिस्टों के पास गर्भपात की दवाओं का स्टॉक है. वहीं, असम में 69.6 प्रतिशत केमिस्टों के पास स्टॉक है.

अध्ययन के अनुसार, दवाओं के नॉन-स्टॉकिंग को ड्रग कंट्रोल अधिकारियों द्वारा अति-विनियमन से जोड़ा मालूम पड़ता है. लगभग 79 प्रतिशत केमिस्ट कानूनी वजहों और अत्यधिक दस्तावेजीकरण जैसी आवश्यकताओं से बचने के लिए इन दवाओं का स्टॉक नहीं करते हैं.

यहां तक कि असम में, जहां सबसे अधिक स्टॉकिंग प्रतिशत है, 58 प्रतिशत केमिस्ट दवाओं के अति-विनियमन (ओवर रेगुलेशन) की बात कहते हैं. हरियाणा में 63 फीसदी केमिस्ट, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत, पंजाब में 74 फीसदी और तमिलनाडु में 79 फीसदी केमिस्टों ने कहा कि राज्य-वार कानूनी बाधाएं गर्भपात दवाओं के नॉन-स्टॉकिंग का एक प्रमुख कारण बनी हुई हैं.

एफआरएचएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वीएस चंद्रशेखर ने आईएएनएस को बताया, 'दवाओं का स्टॉक नहीं करने का स्थानीय दवा प्राधिकरणों का अति-विनियमन है. जबकि यह एक शेड्यूल के ड्रग है और यहां तक कि आशा कार्यकर्ताओं को समुदायों में वितरित करने के लिए दिया जाता है, कई खुदरा विक्रेता गलतफहमी और कानूनी बाधाओं के कारण उन्हें स्टॉक नहीं करते हैं.'

उन्होंने कहा कि चिकित्सा गर्भपात की दवाएं 81 फीसदी महिलाओं के लिए गर्भपात का सबसे पसंदीदा तरीका है और इसलिए उनकी उपलब्धता में कमी महिलाओं को प्रभावित करती है, जो सर्जिकल गर्भपात के तरीकों को नहीं अपनाना चाहती है.

चंद्रशेखर ने कहा, 'महामारी के बीच में जब लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित है और परिवार नियोजन के क्लीनिकल तरीके पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं, तो दवाओं के लिए अप्रतिबंधित पहुंच सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है.' चंद्रशेकर प्रतिज्ञा एडवाइजरी ग्रुप के सदस्य भी हैं.

हालांकि अध्ययन का उद्देश्य दवाओं की उपलब्धता की तस्दीक करना था, लेकिन निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि तमिलनाडु राज्य में केमिस्टों द्वारा आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों (ईसीपी) का स्टॉक नहीं किया जा रहा है.

राज्य में सर्वेक्षण में शामिल केमिस्टों में से केवल 3 प्रतिशत ने ईसीपी का स्टॉक किया है और 90 प्रतिशत ने नहीं किया है, उन्होंने कहा कि राज्य में गोलियां प्रतिबंधित हैं. आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां नॉन-प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाएं हैं और राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत आशा कार्यकर्ताओं द्वारा स्टॉक और वितरित भी की जाती हैं. केमिस्टों को ईसीपी की स्टॉक की अनुमति नहीं देना तमिलनाडु की महिलाओं को गर्भनिरोधक विकल्प का उपयोग करने के लिए एक सुरक्षित और आसान तरीके से मना करने जैसा है.

एमए दवाओं की अनुपलब्धता का मुख्य कारण यह गलत समझ है कि नियामक अधिकारियों के बीच जेंडर बायस्ड सेक्स सेलेक्शन के लिए मेडिकल अबॉर्शन कॉम्बिपैक्स का उपयोग किया जा सकता है. इसका उपयोग केवल नौ सप्ताह तक करने के लिए संकेत दिया जाता है. जबकि एक अल्ट्रासाउंड 13-14 सप्ताह के गर्भ में भ्रूण के लिंग का पता लगा सकता है. केमिस्ट हालांकि इस गलत धारणा को साझा नहीं करते हैं.

एफआरएचएस इंडिया की क्लीनिकल सर्विस की निदेशक डॉ. रश्मि आर्डी ने कहा, 'स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए कि भारत में नौ सप्ताह तक इस्तेमाल करने के लिए अनुमोदित एमए दवाओं का इस्तेमाल गर्भावस्था के सेक्स सेलेक्शन (लिंग चयनित) टर्मिनेशन के लिए नहीं किया जा सकता है.'

छानबीन और अधिक विनियमन, एमए दवाओं की अनुपलब्धता के लिए अग्रणी चिंता का एक प्रमुख कारण है और लाखों महिलाओं के सुरक्षित गर्भपात विधि तक पहुंच से वंचित होने की आशंका है. डब्ल्यूएचओ ने 2019 में, आवश्यक दवाओं की कोर सूची में एमए दवाओं को शामिल किया, और अपनी पहले की उस एडवाइजरी को हटा दिया, जिसमें दवाओं को लेते समय मेडिकल निगरानी की आवश्यकता थी.

एफआरएचएस इंडिया की सीनियर मैनेजर-पार्टनरशिप देबंजना चौधरी ने कहा कि एमए दवाओं के स्टॉकिंग में अनावश्यक बाधाओं को हटाने से यह सुनिश्चित होगा कि महिलाएं अपनी पसंद के विकल्प का उपयोग कर सकेंगी.

सौजन्य: आईएएनएस

कोरोनावायरस प्रकोप के बीच दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा और मध्य प्रदेश में स्टॉक की कमी के कारण पूरे देश में मेडिकल गर्भपात गोलियों की अत्यधिक कमी हो गई है. सोमवार को एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है.

'फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज' द्वारा 1,500 दवा विक्रेताओं (केमिस्ट) पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि, पंजाब में केवल एक प्रतिशत, तमिलनाडु और हरियाणा में दो-दो प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 6.5 प्रतिशत और दिल्ली में 34 प्रतिशत केमिस्टों के पास गर्भपात की दवाओं का स्टॉक है. वहीं, असम में 69.6 प्रतिशत केमिस्टों के पास स्टॉक है.

अध्ययन के अनुसार, दवाओं के नॉन-स्टॉकिंग को ड्रग कंट्रोल अधिकारियों द्वारा अति-विनियमन से जोड़ा मालूम पड़ता है. लगभग 79 प्रतिशत केमिस्ट कानूनी वजहों और अत्यधिक दस्तावेजीकरण जैसी आवश्यकताओं से बचने के लिए इन दवाओं का स्टॉक नहीं करते हैं.

यहां तक कि असम में, जहां सबसे अधिक स्टॉकिंग प्रतिशत है, 58 प्रतिशत केमिस्ट दवाओं के अति-विनियमन (ओवर रेगुलेशन) की बात कहते हैं. हरियाणा में 63 फीसदी केमिस्ट, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत, पंजाब में 74 फीसदी और तमिलनाडु में 79 फीसदी केमिस्टों ने कहा कि राज्य-वार कानूनी बाधाएं गर्भपात दवाओं के नॉन-स्टॉकिंग का एक प्रमुख कारण बनी हुई हैं.

एफआरएचएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वीएस चंद्रशेखर ने आईएएनएस को बताया, 'दवाओं का स्टॉक नहीं करने का स्थानीय दवा प्राधिकरणों का अति-विनियमन है. जबकि यह एक शेड्यूल के ड्रग है और यहां तक कि आशा कार्यकर्ताओं को समुदायों में वितरित करने के लिए दिया जाता है, कई खुदरा विक्रेता गलतफहमी और कानूनी बाधाओं के कारण उन्हें स्टॉक नहीं करते हैं.'

उन्होंने कहा कि चिकित्सा गर्भपात की दवाएं 81 फीसदी महिलाओं के लिए गर्भपात का सबसे पसंदीदा तरीका है और इसलिए उनकी उपलब्धता में कमी महिलाओं को प्रभावित करती है, जो सर्जिकल गर्भपात के तरीकों को नहीं अपनाना चाहती है.

चंद्रशेखर ने कहा, 'महामारी के बीच में जब लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित है और परिवार नियोजन के क्लीनिकल तरीके पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं, तो दवाओं के लिए अप्रतिबंधित पहुंच सुनिश्चित करने की सख्त जरूरत है.' चंद्रशेकर प्रतिज्ञा एडवाइजरी ग्रुप के सदस्य भी हैं.

हालांकि अध्ययन का उद्देश्य दवाओं की उपलब्धता की तस्दीक करना था, लेकिन निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि तमिलनाडु राज्य में केमिस्टों द्वारा आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों (ईसीपी) का स्टॉक नहीं किया जा रहा है.

राज्य में सर्वेक्षण में शामिल केमिस्टों में से केवल 3 प्रतिशत ने ईसीपी का स्टॉक किया है और 90 प्रतिशत ने नहीं किया है, उन्होंने कहा कि राज्य में गोलियां प्रतिबंधित हैं. आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां नॉन-प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाएं हैं और राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत आशा कार्यकर्ताओं द्वारा स्टॉक और वितरित भी की जाती हैं. केमिस्टों को ईसीपी की स्टॉक की अनुमति नहीं देना तमिलनाडु की महिलाओं को गर्भनिरोधक विकल्प का उपयोग करने के लिए एक सुरक्षित और आसान तरीके से मना करने जैसा है.

एमए दवाओं की अनुपलब्धता का मुख्य कारण यह गलत समझ है कि नियामक अधिकारियों के बीच जेंडर बायस्ड सेक्स सेलेक्शन के लिए मेडिकल अबॉर्शन कॉम्बिपैक्स का उपयोग किया जा सकता है. इसका उपयोग केवल नौ सप्ताह तक करने के लिए संकेत दिया जाता है. जबकि एक अल्ट्रासाउंड 13-14 सप्ताह के गर्भ में भ्रूण के लिंग का पता लगा सकता है. केमिस्ट हालांकि इस गलत धारणा को साझा नहीं करते हैं.

एफआरएचएस इंडिया की क्लीनिकल सर्विस की निदेशक डॉ. रश्मि आर्डी ने कहा, 'स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए कि भारत में नौ सप्ताह तक इस्तेमाल करने के लिए अनुमोदित एमए दवाओं का इस्तेमाल गर्भावस्था के सेक्स सेलेक्शन (लिंग चयनित) टर्मिनेशन के लिए नहीं किया जा सकता है.'

छानबीन और अधिक विनियमन, एमए दवाओं की अनुपलब्धता के लिए अग्रणी चिंता का एक प्रमुख कारण है और लाखों महिलाओं के सुरक्षित गर्भपात विधि तक पहुंच से वंचित होने की आशंका है. डब्ल्यूएचओ ने 2019 में, आवश्यक दवाओं की कोर सूची में एमए दवाओं को शामिल किया, और अपनी पहले की उस एडवाइजरी को हटा दिया, जिसमें दवाओं को लेते समय मेडिकल निगरानी की आवश्यकता थी.

एफआरएचएस इंडिया की सीनियर मैनेजर-पार्टनरशिप देबंजना चौधरी ने कहा कि एमए दवाओं के स्टॉकिंग में अनावश्यक बाधाओं को हटाने से यह सुनिश्चित होगा कि महिलाएं अपनी पसंद के विकल्प का उपयोग कर सकेंगी.

सौजन्य: आईएएनएस

Last Updated : Aug 12, 2020, 9:35 AM IST
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