नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निचली अदालतों में एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाली याचिकाओं को तेजी से निपटाने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती है. चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कानून में तय है कि मजिस्ट्रेट को ऐसी याचिकाओं को निपटाते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल करना होता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट किसी मामले की जांच का निर्देश देने के लिए बाध्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट चाहे तो ऐसी याचिकाओं को शिकायत की तरह ले सकते हैं और एफआईआर दर्ज हुए बिना अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 200 के तहत सीधे कार्यवाही शुरु कर सकते हैं. इसलिए ऐसी याचिकाओं के निपटारे के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती है. क्योंकि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए गए तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करना होता है. हाईकोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को लगता है कि मजिस्ट्रेट उसकी याचिका का तेजी से निपटारा नहीं कर रहे हैं तो वो दिशानिर्देश के लिए हाईकोर्ट आ सकता है.
याचिका विवेक कुमार गौरव ने दायर किया था. याचिका में कहा गया था कि कोर्ट से पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश दिया जाए कि वे संज्ञेय अपराध की सूचना मिलते ही उस पर एक तय समयसीमा के भीतर शुरुआती जांच पूरी करे. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील रोहित शुक्ला ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए दायर याचिकाओं के निपटारे में समयसीमा नहीं होने से इसमें काफी देरी होती है. इसी वजह से कानूनी प्रावधान बेअसर हो जाते हैं. समय बीतने के साथ सीसीटीवी फुटेज और डीएनए, फोरेंसिक और इलेक्ट्रॉनिक और साइंटिफिक साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं. ऐसे में जांच बेअसर हो जाती है.
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