नई दिल्ली: पश्चिमी दिल्ली के नारायणा गांव के लोग श्मशान जाने के रास्ते पर बने पैदल पारपथ पर रेलवे द्वारा लोहे के खम्भे लगाने से परेशान हैं. परेशानी इतनी कि दोबारा तो इस रास्ते की वजह से डेडबॉडी नीचे गिर गई. अब यहां के लोग रेलवे और सरकार से रास्ते को खोलने की गुहार लगा रहे हैं.
नारायणा गांव के लोग पिछले कई महीनों से अजीब समस्या से जूझ रहे हैं. दरअसल जो यहां श्मशान है वो रेलवे लाइन की दूसरी तरफ है. जहां जाने के लिए रेलवे ने सालों पहले पैदल पारपथ बनाया था, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि कुछ भू-माफिया और पार्किंग माफिया ने रेलवे और कोर्ट को गुमराह कर लॉकडाउन में इस पैदल पारपथ के रास्ते पर अलग से लोहे के खम्भे लगवा दिए.
जिसके कारण लोगों का पैदल निकलना मुश्किल हो गया और चूंकि श्मशान जाने का रास्ता यही है तो लोग कंधे पर शव को उठा दाह संस्कार के लिए ले जाते हैं लेकिन इस रास्ते पर लोहे के खम्भे लगा दिए जाने से लोगों को अकेले बिना किसी सामान के परेशानी होती है. डेडबॉडी लेकर निकलने में और अधिक परेशानी होती है.
ग्रामीणों का कहना है कि जब यहां से कोई ट्रैफिक नहीं निकलता, पैदल ही लोग आते जाते हैं. ऐसे में रेलवे का ये कदम मानवीयता के खिलाफ है और कम से कम रेलवे को ये समझना चाहिए कि आखिर अंतिम यात्रा के लिए लोग कैसे जाएंगे. इस लोहे के खंभे के कारण दो डेडबॉडी गिर चुकी हैं जो मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है. अब लोग सरकार और रेलवे से इसे खोलने की गुहार लगा रहे हैं.
मानवता हो रही शर्मसार, प्रशासन बेपरवाह
वाकई ये समस्या चौंकाने वाली है कि रेलवे के एक ऐसे कदम से उस परिवार पर मानो दुखों का दोहरा पहाड़ टूट पड़ता है जिनके घर में किसी की मौत हुई हो क्योंकि ऐसे हालात में डेडबॉडी को श्मशान तक लेकर जाना किसी चुनौती से कम नहीं है. हैरानी की बात ये भी कि पांच दशक से अधिक समय पहले जब डीडीए ने गांव की कई सौ एकड़ जमीन एक्वायर की थी तब श्मशान घाट को शिफ्ट कर रेलवे लाइन की दूसरी ओर बनाया गया था लेकिन गांव की इस समस्या पर कोई भी राजनीतिक दल कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं.
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