नई दिल्ली: जब किसी की रगों में देशप्रेम का जज्बा दौड़ता है तो फिर सामने देश के सिवा और कुछ नहीं दिखाई देता. ठीक ऐसा ही है नजफगढ़ के रहने वाले मन्नू सिंह के साथ. जिन्होंने अपने पिता के शहीद होने के बाद देश सेवा को चुना. मन्नू के पिता जब आखिरी बार 31 जनवरी, 2003 को घर से निकले तो मन्नू उनसे लिपट गए थे. सब इस बात से खुश थे 15 दिनों बाद शिवजी (मन्नू के पिता) सेनानृवित्त होकर घर वापस आ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और वह तिरंगे में लिपटकर घर वापस आए.
पिता की वीरता बनी प्रेरणा
अपनी मां से, पिता की वीरता की कहानियां सुन-सुन कर मन्नू बड़े हुए हैं. जिससे उनकी रंगो में भी देशभक्ति का खून दौड़ने लगा और अपनी मेहनत से वो भी सेना में भर्ती हो गए. 2017 में मन्नू का एमबीबीएस में आर्मी मेडिकल कॉलेज में चयन हुआ.
देवंती देवी को अपने पति के शहीद होने और बेटे के देश के प्रति प्रेम पर गर्व है. वो बताती हैं कि मन्नू में देश प्रेम की भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है. मन्नू की मां ने उनसे कहा अगर वह सेना में जाना चाहता है तो अधिकारी बनकर जाए जिससे वो किसी की मदद कर सके.
'देश सर्वोपरि है'
मन्नू की मां उनसे कहती है कि तुम्हारे पिता देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे क्योंकि देश सर्वोपरि है इसलिए तुम भी हर किसी की मदद करना. तब से आज तक शिवाजी के परिवार के सामने काफी कठिनाइयां सामने आने पर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी.
शिवजी सिंह ने दुश्मनों पर किया था करारा प्रहार
218 मीडियम रेजिमेंट के लांस नायक शिवजी 2003 में कुपवाड़ा में तैनात थे. जब वो गश्त कर रहे थे तभी अचानक घाट लगा कर बैठे आतंकवादियों ने हमला कर दिया. दोनों तरफ से गोलीबारी होने लगी. शिवजी अपनी टीम में सबसे आगे थे. जिससे कुछ गोलियां उनके हाथों में लगी पर फिर भी उन्होंने बंदूक की पकड़ ढीली नहीं होने दी.
साथ ही वो अपने साथियों का हौसला भी बढ़ा रहे थे. फिर आतंकियों की तरफ से गोलीबारी बंद हो गई, जिससे उन्हें लगा कि आतंकी ढेर हो गए हैं. जिसके बाद शिवजी आगे बढ़ने लगे पर फिर आतंकियों ने ग्रेनेड से हमला कर दिया.
जो शिवजी के सिर पर आकर लगा और वह शहीद हो गए. लगातार 20 दिनों तक गोलीबारी होने के कारण उनके साथी शिवजी जी के पास तक नहीं जा पाए. जब जवानों में आतंकवादियों को मार दिया तब जाकर शिवजी का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव छपरा ले जाया गया.