नई दिल्ली: साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिखाए रास्ते पर चलकर देशभर में सांसदों ने एक-एक गांव गोद लेकर इन्हें 'आदर्श' गांव की तरह विकसित करने का दावा किया था.
पश्चिमी दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा ने भी इसी क्रम में झड़ौदा कलां और दौलतपुर गांव को गोद लिया था. दावा किया गया था कि इन दोनों गावों को अलग तरीके से विकसित कर यहां वर्ल्ड क्लास सुविधाएं दी जाएंगी. हालांकि 5 साल का समय शायद इसके लिए कम पड़ गया है.
पश्चिमी दिल्ली के झड़ौदा कलां गांव में जाकर जब ईटीवी भारत की टीम ने जायजा लिया तब कुछ और ही बात सामने निकलकर आई. सांसद प्रवेश वर्मा के प्रयासों पर यहां लोग मिली-जुली बात तो करते हैं लेकिन जैसे ही बात आदर्श गांव की आई, वो उल्टा सवाल पूछने लग गए कि 'क्या उनका गांव आदर्श गांव लगता है?' हद तो तब हो गई जब यहां की महिलाओं ने कहा कि आज तक उन्होंने अपने सांसद को देखा तक नहीं है.
दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली का महत्वपूर्ण गांव
झड़ौदा कला गांव दक्षिण-पश्चिमी जिले का एक महत्वपूर्ण गांव है. साल 2014 में जब यहां के सांसद प्रवेश वर्मा ने इस गांव को गोद लिया था तब इसकी महत्ता और अधिक बढ़ गई थी. गांव में पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज के अलावा एक सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स का कैंप भी है. जहां दूर-दूर से लोग फिजिकल टेस्ट आदि के लिए आते हैं.
गांव में कई धर्म और जातियों के लोग रहते हैं लेकिन यहां बाबा हरिदास के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा है. शायद यही कारण है कि साल में 2 बार यहां बड़े-बड़े मेले लगाए जाते हैं जहां देशभर से लोग आते हैं.
जो अब है वो 5 साल पहले भी था
गांव के एक बड़ा तालाब है जो गांव में बहुत मशहूर है. यहां पहुंचने पर हमारी मुलाकात प्रधान राजेंद्र डागर से हुई. वो कहते हैं कि गांव में जो सुविधाएं आज हैं वो 5 साल पहले भी थीं. कुछ सड़कों का निर्माण पिछले दिनों कराया गया है. लेकिन इसमें 'आदर्श' गांव जैसा क्या है उन्हें नहीं पता. हालांकि वो इसमें सांसद प्रवेश वर्मा का दोष मानने से भी साफ इंकार करते हैं. राजेंद्र कहते हैं कि सांसद ने प्रयास भी किए लेकिन कुछ हो नहीं पाया. उदाहरण के लिए वो कहते हैं यहां न तो शिक्षा के लिए कुछ है और न ही बिजली और पानी ही लोगों को मिल पाता है.
युवाओं को रोजगार की तलाश
गांव के युवा कहते हैं कि उनके गांव की जमीन पुलिस और CRPF को दे दी गई लेकिन रोजगार के नाम पर आज भी गांव के लड़के बेरोजगार हैं. वो कहते हैं कि आदर्श गांव बनाना था तो यहां के लोगों के लिए भी कुछ भला करते लेकिन उनकी किसी को परवाह ही नहीं है. यहीं के रहने वाले मोहित जैन कहते हैं कि पिछले दिनों जब सांसद महोदय गांव में आए थे तब उन्होंने कहा था कि उनके पास आदर्श गांव के लिए अलग से कोई फण्ड नहीं है.
पानी और बिजली की समस्या
लोगों का मानना है कि बेशक पानी और बिजली राज्य सरकार के अधीन है लेकिन जब सांसद महोदय ने उनके गांव को आदर्श गांव बनाने का वादा किया ही था तो क्यों ना बिजली और पानी का सवाल भी उनसे पूछा जाए. आदर्श गांव में बिजली और पानी की समस्या के समाधान के लिए क्यों उन्होंने राज्य सरकार से बात नहीं की. इससे सबसे ज्यादा परेशान हैं वो महिलाएं जिन्हें घर में रहकर बिजली और पानी के इंतजार में अपने दिन काटने पड़ते हैं. खास बात है कि महिलाओं का कहना है कि उन्होंने आज तक अपने सांसद को कभी देखा भी नहीं है.
'पार्टी और नाम पर नहीं मुद्दों पर मिलेगा वोट'
यहां के लोगों से जब आगामी चुनावों में वोट देने के विषय पर सवाल किया गया तब उन्होंने साफ कहा कि अबकी बार वो किसी पार्टी या नाम पर नहीं बल्कि मुद्दों पर वोट करने वाले हैं. इसमें बिजली, पानी, सीवर और जमीन तक के सभी मुद्दे हैं. गांव वालों का तो ये भी कहना है कि उनके पास विकल्प कम हो गए हैं लेकिन उन्हें अब भी आस है कि उनका गांव एक दिन जरूर दूसरे गांवों के लिए आदर्श गांव बनेगा.
सांसद प्रवेश वर्मा ने गोद लिया था गांव
बता दें कि साल 2014 में स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से दिए गए भाषण में प्रत्येक सांसद को एक एक गांव गोद लेकर उसे आदर्श गांव के रूप में विकसित करने का आव्हान किया था. पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने यहां गोद लिए गए झड़ौदा और मटियाला दोनों ही गांव को अपने दिल के बेहद करीब बताते हुए बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त करने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाएं देने का वादा किया था. इसमें पानी बिजली सड़क नाली शिवा जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ शिक्षा केंद्र, नशा मुक्ति केंद्र, कंप्यूटर सुविधा आदि की बात कही गई थी.