नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस कमिश्नर का पदभार संभालने के साथ ही राकेश अस्थाना ने कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई बदलाव किए. उन बदलाव का दौर अभी भी जारी है. इनमें से एक प्रमुख पदों पर बैठे पदाधिकारी और अधिकारियों के ट्रांसफर और प्रमोशन को लेकर भी मुद्दा था.
हाल में हुए जबरदस्त तबादले के बाद कमिश्नर सहित दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के पास नेताओं और मंत्रियों के सिफारिश पत्र पहुंचने लगे थे. स्थिति यह हो गयी कि पुलिस कमिश्नर को इस समस्या से निजात पाने के लिए विशेष स्टैंडिंग कमिटी की बैठक करनी पड़ी, जिसमें विशेष रूप से आदेश जारी किया गया कि अगर किसी पुलिसकर्मी के तबादले, पदोन्नति या किसी अन्य कार्य के लिए किसी मंत्री, सांसद या विधायक का सिफारिश मौखिक या लिखित रूप से प्राप्त होता है, तो उसे सेंट्रल सिविल सर्विस रूल और दिल्ली पुलिस रूल 1980 का उल्लंघन मानते हुए संबंधित स्टाफ के खिलाफ डिपार्टमेंटल कार्रवाई की जाएगी.
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जानकारी के अनुसार इस स्टैंडिंग आर्डर में दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने आदेश दिया है कि दिल्ली पुलिस से अलग कोई भी बाहरी द्वारा अगर किसी पुलिसकर्मी के पदोन्नति, स्थानांतरण, पुरस्कार के लिए वरिष्ठ अधिकारी को सिफारिश पत्र भेजता है, तो इसका जिम्मेदार वह पुलिसकर्मी होगा. सेक्शन 21 दिल्ली पुलिस एक्ट 1978 के तहत दंडनीय है. राकेश अस्थाना ने अपने आदेश में कहा है कि अगर किसी अधिकारी को ऐसा पत्र मिलता है तो वह अधिकारी सही माध्यम से उक्त पुलिस कर्मी को चेतावनी पत्र जारी करने के साथ ही स्पष्टिकरण की मांग कर सकते हैं. साथ ही उस पत्र को उसके एसीआर डोजियर में भी जोड़ सकते हैं. ऑर्डर में उल्लेख किया गया है कि किसने और कब वह सिफारिश की थी. विशेष रूप से इस पर जोड़ दिया गया है कि अगर किसी कर्मी के लिए यह सिलसिला जारी रहता है, तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई के साथ ही जांच भी शुरू की जा सकती है.
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आदेश में कहा गया है कि अगर किसी पुलिसकर्मी को लगता है कि वह पदोन्नति या पुरस्कार के योग्य है, तो अपने उच्च अधिकारी के माध्यम से रिकमंडेशन करवा सकता है. यही नहीं कमिश्नर और स्पेशल कमिश्नर द्वारा लिए जाने वाले बैठकों में भी अपना पक्ष रख सकता है. लेकिन किसी भी पुलिस कार्य मे सिविल दखल अंदाजी बर्दास्त नहीं है.
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