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'बच्चों का पेट पालना है इसलिए मजबूरी में करते हैं खेती'

दिल्ली में खेती कर रहे किसानों का कहना है कि खेती से उसकी लागत ही निकल पाती है. कोई मुनाफा नहीं होता है. वहीं मजदूरों का कहना है कि पूरा दिन काम करने के बाद सिर्फ 250 रुपए मिलते हैं. इसमें केवल बच्चों का पेट पाल पाते हैं.

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Published : Dec 27, 2020, 8:23 AM IST

Updated : Dec 27, 2020, 9:37 AM IST

'no profit in farming, just feeding'
'खेती में कोई मुनाफा नहीं, बस पेट पाल रहे हैं'

नई दिल्ली: कृषि के क्षेत्र में सुधार व किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के दावे के साथ केंद्र सरकार तीन नए कृषि कानून लाई है. हालांकि इसका विरोध भी हो रहा है और इसको वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर किसान डटे हुए हैं. वहीं कृषि कानूनों पर शोर के बीच ईटीवी भारत की टीम ने दिल्ली के यमुना खादर इलाके मदनपुर खादर में खेती करने वाले किसानों से उनके खेतों में जाकर बातचीत की.

'खेती में कोई मुनाफा नहीं, बस पेट पाल रहे हैं'



12 हजार रुपए प्रति बीघा मिलती है जमीन

यमुना खादर में ठेके पर जमीन लेकर खेती करने वाले मनोज ने बताया कि उनके राई सरसों साग की खेती में प्रति क्यारी लागत ₹500 आई है और यह 8 से ₹10 प्रति किलो बिक रहा है. लागत मुश्किल से निकल रही है. जितनी लागत है उतना ही निकल रहा है. मुनाफा नहीं हो रहा है. वहीं उन्होंने बताया कि वह नए कृषि कानून के बारे में नहीं जानते. साथ ही उन्होंने बताया कि यहां पर सिंचाई के लिए इंजन का इस्तेमाल करते हैं जो डीजल से चलती है. यहां पर बिजली कनेक्शन नहीं मिलता है. वहीं ठेके पर जमीन 12 हजार में एक बीघा खेत एक साल के लिए ठेके पर मिलता है जिसमें वह खेती कर कर अपना जीवन यापन करते हैं.

खेत में निराई की मजदूरी 250 रुपए

बथुआ साग की क्यारी में निराई का काम करने वाली मीना ने बताया कि वह खुरपी से बथुआ की क्यारी से घास निकाल रही हैं. उनको इसके लिए मजदूरी के रूप में 250 रुपया मिलता है. इसके लिए उन्हें सुबह 8 से शाम 5 बजे तक काम करना पड़ता है. साथ ही उन्होंने बताया कि अब खेती फायदे का काम नहीं रहा सिर्फ पेट पाले जा रहे हैं. बच्चों का पालन पोषण किया जा रहा है.

2-3 महीने में तैयार होती है गोभी की फसल
ठेके पर जमीन लेकर गोभी की फसल लगाने वाले धर्मपाल ने बताया कि अपने गोभी की फसल की निराई कर रहे हैं और यह फसल 2 से 3 महीने में तैयार होती है. साथ ही उन्होंने कहा कि खेती में उनको थोड़ा बहुत फायदा होता है और पेट पालन होता है. वहीं धर्मपाल ने कहा कि वो नए कृषि कानूनों के बारे में नहीं जानते हैं.

100 रुपए किलो मिलता है मेथी का बीज
ठेके पर जमीन लेकर मेथी की खेती करने वाले नेकराम ने बताया कि उनकी मेथी ₹20 केजी बिक रही है. जबकि इस फसल का बीज ₹100 किलो आता है. इस फसल से सिर्फ लागत निकल रही है. आमदनी नहीं हैं. हम नए कृषि कानून के बारे में नहीं जानते. यहां बिजली का कनेक्शन नहीं मिलता है. हम डीजल से इंजन चला कर अपना काम करते हैं. इसलिए खेती में लागत ज्यादा आती है. यहां पर सरकारी सुविधा नहीं मिलती. हम यहां झुग्गियों में रहते हैं. यहां पर हम सब ठेके पर जमीन लेकर खेती करते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं.

दूसरे राज्यों के लोग भी करते हैं ठेके पर खेती

बता दें कि दिल्ली के यमुना किनारे खादर इलाके में अन्य राज्यों से आए लोग भी जमीन को ठेके पर लेकर खेती करते हैं. हालांकि यहां उनको सरकारी तौर पर कोई सुविधा नहीं मिलती और उनको खेतों की फसलो की सिंचाई करने के लिए डीजल से चलने वाले इंजन पर आश्रित रहना पड़ता है. क्योंकि बिजली से चलने वाले टियूबेल बिजली नहीं होने के वजह नहीं चलते.

नई दिल्ली: कृषि के क्षेत्र में सुधार व किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के दावे के साथ केंद्र सरकार तीन नए कृषि कानून लाई है. हालांकि इसका विरोध भी हो रहा है और इसको वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर किसान डटे हुए हैं. वहीं कृषि कानूनों पर शोर के बीच ईटीवी भारत की टीम ने दिल्ली के यमुना खादर इलाके मदनपुर खादर में खेती करने वाले किसानों से उनके खेतों में जाकर बातचीत की.

'खेती में कोई मुनाफा नहीं, बस पेट पाल रहे हैं'



12 हजार रुपए प्रति बीघा मिलती है जमीन

यमुना खादर में ठेके पर जमीन लेकर खेती करने वाले मनोज ने बताया कि उनके राई सरसों साग की खेती में प्रति क्यारी लागत ₹500 आई है और यह 8 से ₹10 प्रति किलो बिक रहा है. लागत मुश्किल से निकल रही है. जितनी लागत है उतना ही निकल रहा है. मुनाफा नहीं हो रहा है. वहीं उन्होंने बताया कि वह नए कृषि कानून के बारे में नहीं जानते. साथ ही उन्होंने बताया कि यहां पर सिंचाई के लिए इंजन का इस्तेमाल करते हैं जो डीजल से चलती है. यहां पर बिजली कनेक्शन नहीं मिलता है. वहीं ठेके पर जमीन 12 हजार में एक बीघा खेत एक साल के लिए ठेके पर मिलता है जिसमें वह खेती कर कर अपना जीवन यापन करते हैं.

खेत में निराई की मजदूरी 250 रुपए

बथुआ साग की क्यारी में निराई का काम करने वाली मीना ने बताया कि वह खुरपी से बथुआ की क्यारी से घास निकाल रही हैं. उनको इसके लिए मजदूरी के रूप में 250 रुपया मिलता है. इसके लिए उन्हें सुबह 8 से शाम 5 बजे तक काम करना पड़ता है. साथ ही उन्होंने बताया कि अब खेती फायदे का काम नहीं रहा सिर्फ पेट पाले जा रहे हैं. बच्चों का पालन पोषण किया जा रहा है.

2-3 महीने में तैयार होती है गोभी की फसल
ठेके पर जमीन लेकर गोभी की फसल लगाने वाले धर्मपाल ने बताया कि अपने गोभी की फसल की निराई कर रहे हैं और यह फसल 2 से 3 महीने में तैयार होती है. साथ ही उन्होंने कहा कि खेती में उनको थोड़ा बहुत फायदा होता है और पेट पालन होता है. वहीं धर्मपाल ने कहा कि वो नए कृषि कानूनों के बारे में नहीं जानते हैं.

100 रुपए किलो मिलता है मेथी का बीज
ठेके पर जमीन लेकर मेथी की खेती करने वाले नेकराम ने बताया कि उनकी मेथी ₹20 केजी बिक रही है. जबकि इस फसल का बीज ₹100 किलो आता है. इस फसल से सिर्फ लागत निकल रही है. आमदनी नहीं हैं. हम नए कृषि कानून के बारे में नहीं जानते. यहां बिजली का कनेक्शन नहीं मिलता है. हम डीजल से इंजन चला कर अपना काम करते हैं. इसलिए खेती में लागत ज्यादा आती है. यहां पर सरकारी सुविधा नहीं मिलती. हम यहां झुग्गियों में रहते हैं. यहां पर हम सब ठेके पर जमीन लेकर खेती करते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं.

दूसरे राज्यों के लोग भी करते हैं ठेके पर खेती

बता दें कि दिल्ली के यमुना किनारे खादर इलाके में अन्य राज्यों से आए लोग भी जमीन को ठेके पर लेकर खेती करते हैं. हालांकि यहां उनको सरकारी तौर पर कोई सुविधा नहीं मिलती और उनको खेतों की फसलो की सिंचाई करने के लिए डीजल से चलने वाले इंजन पर आश्रित रहना पड़ता है. क्योंकि बिजली से चलने वाले टियूबेल बिजली नहीं होने के वजह नहीं चलते.

Last Updated : Dec 27, 2020, 9:37 AM IST
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