नई दिल्ली: किसने सोचा था कि एक वक्त ऐसा भी आएगा जब एक-एक सांस की कीमत चुकानी होगी ? गनीमत यह की कीमत चुकाने पर भी सांस के लिए ऑक्सीजन भी मयस्सर न हो. अप्रैल से जून तक का वह खौफनाक मंजर कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने हमें ऐसा वक्त भी दिखाया जब सांस लेने के लिए मुफ्त ऑक्सीजन भी बेलगाम दाम में बिकने लगी. ऐसी परिस्थितियां बनी कि मुंह मांगे दाम देने के बाद भी ऑक्सीजन का एक अदद सिलेंडर नहीं मिल रहा था.
कई-कई जिंदगियां ऑक्सीजन के अभाव में घुट-घुट कर दम तोड़ गई. ऑक्सीजन के लिए ऐसा हाहाकार मचा कि लोगों ने जिसकी कभी कद्र नहीं की उसे मुंह मांगे दाम पर ले कर अपने घरों में ब्लैक स्टोरेज करने लगे. आशंका ऐसी कि अगर उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ तो यही ऑक्सीजन का सिलेंडर उनके लिए रामबाण साबित होगा.
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जिधर देखो उधर ऑक्सीजन के लिए मारामारी और अफरा-तफरी जैसी स्थिति पैदा हो गई. यह स्थिति तब और ज्यादा भयानक हो गई जब दिल्ली के दो बड़े अस्पतालों दक्षिण दिल्ली के बत्रा हॉस्पिटल और पश्चिमी दिल्ली के जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी के चलते 37 लोगों की जान चली गई. उसके बाद अस्पतालों में ऑक्सीजन के लिए उल्टी गिनती भी शुरू हुई. सभी हॉस्पिटल मैनेजमेंट को अपने अस्पताल में ऑक्सीजन की उपलब्धता के बारे में एक-एक घंटे की रिपोर्ट देनी पड़ी. अस्पतालों में बिस्तर खाली नहीं और सांस के लिए ऑक्सीजन नहीं. अस्पताल में एक अदद बेड के लिए उखड़ती सांसों के बीच जिंदगी और मौत की एक अघोषित जंग शुरू हो गई.
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12 अस्पताल, 12 घंटे और फिर ऑक्सीजन नहीं मिलने से उखड़ गई दीपक की सांस
दक्षिण दिल्ली के तारा अपार्टमेंट इलाके में रहने वाले दीपक ने अपने जीवन के सिर्फ 40 बसंत ही देखे थे कि कोरोना वायरस की लहर में पत्नी समेत खतरनाक संक्रमण की चपेट में आ गए. पत्नी के लक्षण थे, लेकिन दीपक को कोरोना वायरस का कोई स्पष्ट लक्षण नहीं था. शरीर में ऑक्सीजन का लेवल लगातार गिर रहा था. बत्रा हॉस्पिटल में कोरोना जांच भी करवाए. रिपोर्ट आने में 24 घंटे का वक्त था, लेकिन 24 घंटे के पहले ही ऑक्सीजन का लेवल लगातार नीचे गिरने लगा. उनके भाई सनोज मेहता उन्हें गाड़ी में बिठा कर एक अस्पताल के बाद दूसरी अस्पताल ऑक्सीजन और बेड के लिए भटकते रहे. लेकिन किसी अस्पताल में कोरोना की रिपोर्ट के बिना डॉक्टर देखने को भी तैयार नहीं थे. 18 घंटे बीतते-बीतते उनके शरीर में ऑक्सीजन का लेवल 62 तक पहुंच गया और फिर दो उल्टियों के बाद आखिरकार उनकी सांस उखड़ गई. 12 अस्पतालों में भटकने के बावजूद किसी ने भी दीपक की जान बचाने के लिए मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. ऑक्सीजन नहीं होने का हवाला देकर उन्हें एडमिट करने से मना कर दिया. अगर ऑक्सीजन दीपक को समय रहते मिल जाता तो उसे अपने पीछे एक नाबालिग बेटे और पत्नी को छोड़ असमय ही काल के गाल में समाना नहीं पड़ता.
बत्रा और जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी से 31 मरीजों ने गंवाई जान
कोरोना की दूसरी लहर जब पीक पर थी तो दिल्ली में औसतन हर रोज 28 हजार से ज्यादा नए मामले दर्ज किए जा रहे थे. मरीजों की पॉजिटिविटी रेट 36 फीसदी तक बढ़ गई थी, जो बाद में अप्रैल और मई महीने में 20 और 22 फीसदी तक रही. इसी दौरान लगभग 31 लोगों के ऑक्सीजन की कमी की वजह से मौत की खबर ने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया और ये दो हॉस्पिटल में ही 31 मरीजों की मौत की घटना हुई. एक पश्चिमी दिल्ली के जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल और दूसरा दक्षिणी दिल्ली का बत्रा हॉस्पिटल, जहां 12 मरीजों की ऑक्सीजन की कमी से मौत हो गई इनमें एक डॉक्टर भी शामिल थे.
किसी ने ऐसी स्थिति की नहीं की थी कल्पना
बत्रा हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. एससीएल गुप्ता बताते हैं कि किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि कोरोना इतना भयावह रूप ले लेगा और ऑक्सीजन की अचानक से भारी कमी हो जाएगी. सभी अस्पतालों में ऑक्सिजन की जितनी सामान्य जरूरत होती है उतनी तो आमतौर पर सप्लाई तो होती ही है. लेकिन जब कोरोना की वजह से लोग आईसीयू में एडमिट किए जाने लगे और उन्हें ऑक्सिजन सपोर्ट की जरूरत पड़ी तो अचानक से पूरे देश में ऑक्सीजन की भारी कमी होने लगी. डॉ. गुप्ता ने बताया कि बत्रा हॉस्पिटल 500 बेड का अस्पताल है और यहां रोजाना सामान्य तौर पर 1000 से 1200 किलो लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की हर रोज खपत है. 100 आईसीयू बेड हैं. आईसीयू में आमतौर पर चार या छह मरीजों को ही ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत होती है. दिल्ली एवं देश के सभी अस्पतालों में नॉर्मल रिक्वायरमेंट के हिसाब से ही ऑक्सीजन की सप्लाई हो रही थी. दिल्ली प्रदेश में ऑक्सिजन की कोई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट (Manufacturing units) नहीं थी. ऑक्सीजन के लिए हरियाणा और दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था. आइनॉक्स और गोयल जैसे सप्लायर इस समय जरूरत से अधिक ऑक्सिजन की सप्लाई करते ही थे.
मीडिया ने खौफ बढ़ाया तो ऑक्सीजन की होने लगी कालाबाजारी
डॉ. गुप्ता ने बताया कि अप्रैल के पहले सप्ताह के बाद कोरोना के मरीजों की इतनी संख्या बढ़ने लगे कि अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे. इसमें मीडिया की भी एक भूमिका रही, खबरें देखकर लोगों में खौफ का माहौल छा गया, जिन्हें भी कोरोना होता वह इस भ्रम में पड़ जाता कि अब तो ऑक्सीजन के बिना उनकी जान चली जाएगी. ऐसे बहुत सारे लोग थे जो कोरोना संक्रमित नहीं हुए थे, लेकिन उन्होंने आगे की सोचते हुए कि अगर उनके परिवार में या उन्हें खुद कोरोना होने पर ऑक्सिजन की जरूरत पड़ी तो वे क्या करेंगे ? इसलिए अपने घरों में ब्लैक से ऑक्सीजन खरीदकर स्टोर करने लगे. इस तरह चारों तरफ ऑक्सीजन का हाहाकार मच गया. ब्लैक से लोग ऑक्सीजन गैर कानूनी तरीके से अपने घरों में स्टोर करने लगे. एक अप्रैल से लेकर दस मई तक का जो माहौल था एक खौफनाक मंजर था. मरीजों की संख्या बेतहाशा बढ़ने लगी और ऑक्सीजन की डिमांड आसमान छूने लगी.
सामाजिक कार्यकर्ता ने 600 लोगों की बचाई जान
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान जब ऑक्सीजन की कमी के चलते हजारों लोगों की जानें जाने लगीं, तो ऐसे में कई सामाजिक कार्यकर्ता सामने आकर जरूरतमंद लोगों की मदद करने में जुट गए. इन्हीं में से एक थे त्रिनेत्रा महादेव वेलफेयर सोसाइटी के संचालक प्रमोद गुप्ता. उन्होंने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जब ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों की मौत होने लगी, तो उन्होंने त्रिनेत्रा महादेव वेलफेयर सोसाइटी के माध्यम से 200 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीनें खरीदीं और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त में मशीन देकर उनकी जान बचाई. इस तरह अप्रैल और मई महीने के दौरान उन्होंने कम से कम 600 लोगों की जान ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन देकर बचाई. इसके लिए उन्होंने किसी से किसी भी तरह की कोई फीस चार्ज नहीं किए. जिन मरीजों को ऑक्सिजन कंसंट्रेटर मशीन दी जाती थी और जब वह ठीक हो जाते थे तो उनसे वह मशीन लेकर किसी दूसरे जरूरतमंद को दे देते थे. इस तरह से उन्होंने 600 से ज्यादा लोगों की जान बचाई.
ऑक्सिजन की कमी के चलते कोविड-19 मरीजों की मृत्यु की संख्या का पता लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने पैनल बनाने के लिए एलजी से अनुमति मांगी, लेकिन वहां अनुमति नहीं दी गई. इस पर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार अपने स्वास्थ्य व्यवस्था की खराब तस्वीर दुनिया के सामने नहीं लाना चाहती है. इसलिए ऑक्सीजन की कमी से होने वाली कोरोना मरीजों की मृत्यु से संबंधित आंकड़े छुपा रही है. देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से कितने कोरोना मरीजों की मौत हुई, यह जानने का हक पूरे देशवासियों को है, जिसे केंद्र सरकार नहीं होने देना चाहती. उन्होंने उस वक्त कहा था कि दिल्ली में अप्रैल और मई महीना के दौरान जब कोरोना की दूसरी लहर पीक पर थी तो 25 हजार लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई थी. इनमें से कितने लोगों की मौत ऑक्सिजन की कमी से हुई इसका पता नहीं चल पाया है. जिन दो अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु हुई उनके आंकड़े मालूम हैं. जयपुर गोल्डन अस्पताल में 20 और बत्रा हॉस्पिटल में 12 कोरोना मरीजों की मौत ऑक्सिजन की कमी से हुई थी.
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