नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नीलम सुखरामानी ने जेल में सजा काट रहे कैदियों के बच्चों पर एक शोध किया है. जिसमें उन्होंने उन बच्चों के सामाजिक, शिक्षा और आर्थिक जीवन को लेकर जानकारी जुटाई है. इस शोध के बाद प्रोफेसर नीलम का कहना है कि माता-पिता में से किसी एक या दोनों के जेल जाने के बाद उस बच्चे के जीवन पर गहरा असर पड़ता है, जिस पर समाज और सरकार इतना ध्यान नहीं देती.
जेल में रह रहे कैदियों के बच्चों पर की गई रिसर्च, जानिए कैसा होता है उनका जीवन
प्रोफेसर नीलम का कहना था कि इस शोध के बाद यह निकल कर सामने आया कि सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि जो कैदी जेल में रह रहे हैं. उनके बच्चों का सही से पालन पोषण हो सके.
जामिया की प्रोफेसर ने की जेल में रह रहे कैदियों के बच्चों को लेकर रिसर्च
नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नीलम सुखरामानी ने जेल में सजा काट रहे कैदियों के बच्चों पर एक शोध किया है. जिसमें उन्होंने उन बच्चों के सामाजिक, शिक्षा और आर्थिक जीवन को लेकर जानकारी जुटाई है. इस शोध के बाद प्रोफेसर नीलम का कहना है कि माता-पिता में से किसी एक या दोनों के जेल जाने के बाद उस बच्चे के जीवन पर गहरा असर पड़ता है, जिस पर समाज और सरकार इतना ध्यान नहीं देती.
प्रोफेसर नीलम ने बताया कि हमारे कानून के मुताबिक यदि मां-बाप में से कोई जेल में जाता है, तो 6 साल की उम्र तक के बच्चे जेल में रह सकते हैं. लेकिन 6 साल के बाद जो बच्चे बाहर रहते हैं उनको लेकर कोई शोध हमारे समाज में नहीं किया गया है. बहुत कम ही ऐसे मामले हमें देखने को मिले हैं, जिसमें की 6 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे जिनके मां बाप में से कोई एक जेल में हैं उनकी स्थिति के बारे में जानकारी दी गई हो.18 साल तक के बच्चों से की गई बात
प्रोफेसर नीलम ने ईटीवी भारत को बताया कि हमने सबसे पहले जेल में रह रहे कैदियों से उनके बच्चों की जानकारी मांगी और बच्चों से बात कर उनकी मानसिक स्थिति और समाज में आने वाली परेशानियों के बारे में चर्चा की. प्रोफेसर नीलम ने बताया कि हमने 6 से 8 और 12 से 18 साल के बच्चों की कैटेगरी बनाकर अलग-अलग बात की, जिसमें हमें उनकी कई समस्याएं जानने को मिली.कैदियों के बच्चों की जिम्मेदारी पर सवाल?
प्रोफेसर नीलम का कहना था कि इस शोध के बाद यह निकल कर सामने आया कि सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि जो कैदी जेल में रह रहे हैं. उनके बच्चों का सही से पालन पोषण हो सके. इसके लिए सरकार को चाहिए कि जो कैदी जेल में जाता है, उससे उसके बच्चे की जानकारी ले और उस बच्चे से संपर्क कर उसे हर संभव मदद दी जाए. इसी के साथ जो कैदी जेल में हैं, उनसे यदि उनके बच्चे मिलना चाहते हैं तो इसके लिए चाइल्ड फ्रेंडली विजिट की सुविधा भी की जानी चाहिए.
प्रोफेसर नीलम ने बताया कि हमारे कानून के मुताबिक यदि मां-बाप में से कोई जेल में जाता है, तो 6 साल की उम्र तक के बच्चे जेल में रह सकते हैं. लेकिन 6 साल के बाद जो बच्चे बाहर रहते हैं उनको लेकर कोई शोध हमारे समाज में नहीं किया गया है. बहुत कम ही ऐसे मामले हमें देखने को मिले हैं, जिसमें की 6 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे जिनके मां बाप में से कोई एक जेल में हैं उनकी स्थिति के बारे में जानकारी दी गई हो.18 साल तक के बच्चों से की गई बात
प्रोफेसर नीलम ने ईटीवी भारत को बताया कि हमने सबसे पहले जेल में रह रहे कैदियों से उनके बच्चों की जानकारी मांगी और बच्चों से बात कर उनकी मानसिक स्थिति और समाज में आने वाली परेशानियों के बारे में चर्चा की. प्रोफेसर नीलम ने बताया कि हमने 6 से 8 और 12 से 18 साल के बच्चों की कैटेगरी बनाकर अलग-अलग बात की, जिसमें हमें उनकी कई समस्याएं जानने को मिली.कैदियों के बच्चों की जिम्मेदारी पर सवाल?
प्रोफेसर नीलम का कहना था कि इस शोध के बाद यह निकल कर सामने आया कि सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि जो कैदी जेल में रह रहे हैं. उनके बच्चों का सही से पालन पोषण हो सके. इसके लिए सरकार को चाहिए कि जो कैदी जेल में जाता है, उससे उसके बच्चे की जानकारी ले और उस बच्चे से संपर्क कर उसे हर संभव मदद दी जाए. इसी के साथ जो कैदी जेल में हैं, उनसे यदि उनके बच्चे मिलना चाहते हैं तो इसके लिए चाइल्ड फ्रेंडली विजिट की सुविधा भी की जानी चाहिए.
Last Updated : Mar 2, 2020, 8:57 AM IST