नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली समेत देशभर में कोरोना के थमते ही बर्ड फ्लू का डर फैल रहा है. दिल्ली में एवियन फ्लू पर नजर रखने और इसको लेकर आम लोगों को शिक्षित और जागरूक करने के लिए एनडीएमसी ने एक रैपिड एक्शन फोर्स टीम का भी गठन कर दिया है.
यह टीम मूर्गी, बत्तख, कबूतर और कौवे समेत हर तरह की पक्षियों पर नजर रखेगी. बर्ड फ्लू के बढ़ते खतरे को देखते हुए बड़ी संख्या में पक्षियों को बेरहमी से मारा जा रहा है. पशुक्रूरता के खिलाफ काम करने वाली एनजीओ पेटा इंडिया ने इसको लेकर सख्त आपत्ति जताई है. अभी हाल ही में पशु क्रूरता को लेकर भारत सरकार ने इन नोटिफिकेशन जारी किया है.
पशु क्रूरता अधिनियम 1960 में यह है प्रावधान..
'पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960' व 'पशुओं में संक्रमण एवं संक्रामक रोगों के प्रसार पर रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 2009' के अनुसार यह अनिवार्य है कि पशुओं में कोई महामारी फैल जाने पर उस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए अत्यधिक तादात में पशुओं को एक साथ मार दिए जाने की जरूरत हो, तो ऐसे में पशुओं को जीवन से मुक्ति दे दी जानी चाहिए. मुक्ति दिए जाने से पहले उस पक्षी या जानवर को बिना पीड़ा दिए बेहोश करना जरूरी है.
'मौजूदा तरीका क्रूरतापूर्ण'
बता दें कि इसके वर्तमान में प्रचलित तरीके बेहद क्रूर हैं. महामारी या बीमारी के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले पक्षियों व जानवरों को मारने के लिए उन्हें बेहोश किए बिना ऐसे रसायन से भरे इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जिससे अत्यधिक पीड़ा के साथ उनका दिल व फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं. प्लास्टिक की थैलियों से मुंह ढक कर दम घोट कर मार दिया जाता है. उनके जिंदा रहते ही उन्हें उठाकर दफना या जला दिया जाता है. मौजूदा समय में एवियन फ्लू की आशंकाओं के चलते कुछ राज्यों में जानवरों को इन्हीं तरीकों से मुक्ति देने की घटनाएं सामने आई हैं.
'पशुओं को भी सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार'
पेटा इंडिया का मानना है कि पक्षी या जानवर किसी भी तरह से हमारा दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं है. हर जीवित प्राणी को सम्मानपूर्वक जीने और मरने का अधिकार है. लेकिन प्रजातिवाद एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें इंसान स्वयं को इस दुनिया में सर्वोपरि मानकर अपने फायदे के लिए अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है.
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