नई दिल्ली: एम्स में पिछले कई माह से बनकर तैयार राष्ट्रीय एजिंग सेंटर में जेरियाट्रिक विभाग फैकल्टी स्तर के डाक्टरों की कमी से जूझ रहा है. इस वजह से जेरियाट्रिक मेडिसिन में मेडिकल स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाले छात्रों का प्रमुख गाइड कैंसर विशेषज्ञ को बनाया गया है.
डॉक्टर बताते हैं कि सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है. मेडिकल पीजी की पढ़ाई करने वाले छात्र के शोध का विषय यदि दूसरे संकाय से जुड़ा हो तो उससे संबंधित दूसरे विभाग का फैकल्टी सहायक गाइड होता है. लेकिन प्रमुख गाइड मूल विभाग का फैकल्टी ही होता है. फिलहाल जेरियाट्रिक विभाग में दो स्थायी फैकल्टी और तीन अनुबंध पर नियुक्त अस्थायी सहायक प्रोफेसर हैं. अस्थायी सहायक प्रोफेसर एम्स में गाइड नहीं बनाए जाते. विभाग में अभी करीब 15 से ज्यादा रेजिडेंट डाक्टर हैं. एम्स के एक वरिष्ठ फैकल्टी ने बताया कि नियमानुसार एक फैकल्टी पीजी, सुपर स्पेशिएलिटी और पीएचडी को मिलाकर पांच छात्रों के गाइड हो सकते हैं. ऐसे में 16 रेजिडेंट डॉक्टरों का गाइड दो फैकल्टी को बनाना संभव नहीं है.
बुजुर्गों के बेहतर इलाज के लिए वर्ष 2012 में एम्स में मेडिसिन विभाग से अगल जेरियाट्रिक विभाग शुरू किया गया. इसके बाद 29 जून 2018 में केंद्र सरकार ने 250 करोड़ की लागत से एम्स में राष्ट्रीय एजिंग सेंटर की आधारशिला रखी. फरवरी 2020 में निर्माण पूरा कर इसे शुरू करने का लक्ष्य था. ढाई साल के विलंब से यह बनकर पूरी तरह तैयार तो है लेकिन जेरियाट्रिक विभाग में डाक्टरों की कमी इसे शुरू करने में आड़े आ रही है. स्थिति यह है कि जेरियाट्रिक विभाग के विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉक्टर नवीत विग संभाल रहे हैं. उनके पास तीन विभागों की जिम्मेदारी है.
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एम्स के रजिस्ट्रार डॉक्टर संजीव लालवानी ने कहा कि दूसरे विभाग के फैकल्टी भी प्रमुख गाइड बन सकते हैं. जेरियाट्रिक विभाग में डाक्टरों की कमी है, इसलिए अधिकृत प्राधिकारी के स्वीकृति से कैंसर विशेषज्ञों को जेरियाट्रिक विभाग के पीजी छात्रों का गाइड बनाया गया है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, पहले भी ऐसा हो चुका है.
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