नई दिल्ली: पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी का दौर ऐसा चल रहा है कि इस दौरान सबसे खतरनाक बीमारी कैंसर के बारे में चर्चा ही खत्म हो गई है. नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की रिपोर्ट पर अगर विश्वास करें तो पिछले चार सालों में भारत में कैंसर रोगियों की संख्या में लगभग 10% की वृद्धि दर्ज की गई है. अभी देश में कैंसर की 13.9 लाख मामले हैं. यह आंकड़ा 2025 तक 15.7 लाख तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है. रिपोर्ट में 2016 में 12.6 लाख मामले थे एवं 2019 में 13.62 लाख होने का अनुमान लगाया गया है. ये अनुमान 2012 और 2016 के बीच हुए डाटा कलेक्शन पर आधारित है.
निसंदेह आंकड़े डराने वाले हैं लेकिन कोरोना के डर के आगे इस डर का कोई परवाह नहीं कर रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि चिकित्सा विज्ञान में हुई नई तरक्की और नई-नई तकनीकों के आजाद होने के बाद खतरनाक कैंसर की बीमारियों का इलाज भी आसान हुआ है. उचित इलाज के बाद न सिर्फ सर्वाइवल रेट बढ़ा सकते हैं, बल्कि सर्वाइवल टाइम भी बढ़ाना आसान हुआ है. एक्शन कैंसर हॉस्पिटल नई दिल्ली के कंसल्टेंट एवं मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. सुशांत मित्तल बताते हैं कि यह सच है कि कैंसर जानलेवा बीमारी है, लेकिन इससे रिकवरी संभव है. बहुत कैंसर पेशेंट ऐसे भी हैं जिन्होंने कैंसर को मात देकर लंबी जिंदगी जी है या जी रहे हैं. आजकल उन्नत तकनीक और दवाओं के जरिए इस पर काबू पाया जा सकता है.
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डॉ. सुशांत मित्तल बताते हैं कि बहुत से लोग घबराते हैं कि कैंसर हो गया, एंड ऑफ लाइफ हो गई, कोई इलाज नहीं है, लेकिन कैंसर के इलाज में साइंस ने काफी तरक्की कर ली है. नई-नई दवाईयों और नए-नए टेस्ट के जरिए हम कैंसर का बेहतर इलाज कर सकते हैं. हर एक कैंसर के लिए इलाज अलग-अलग है. सभी कैंसर के लिए कीमोथिरेपी थेरेपी नहीं की जाती है. जिस प्रकार से दो कोविड, दो मलेरिया और दो टाइफाइड के मरीज सेम नहीं होते हैं, उसी प्रकार दो कैंसर के मरीज भी सेम नहीं हो सकते. उसी तरीके से ब्रेस्ट, ओवरी और यूट्रस के सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट (surgical oncologist) अलग-अलग होते हैं. सबकी अपनी-अपनी विशेज्ञता होती है. उनकी वजह से हम जीवन को और भी बेहतर बना सकते हैं.
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डॉक्टर सुशांत का कहना है कि आजकल इंडिविजुअलाइज थेरेपी (Individualize Therapy) आ गई है, जिसको कस्टमाइज थेरेपी (customized therapy) कहते हैं. हम पेशेंट के डीएनए की जांच कर पता लगाते हैं कि मरीज का कौन सा डीएनए खराब है. जिसकी वजह से कैंसर हुआ और उस डीएनए पर कौन सी दवाई काम करेगी. उनका कहना है कि आजकल पेट स्कैन की दवाइयों से भी कैंसर का इलाज किया जाता है. ये बात सही है कि जब एडवांस स्टेज में बीमारी के बारे में पता चलता है तो थोड़ी दिक्कतें आतीं हैं. इस स्टेज में मरीज का जीवन बहुत लंबा नहीं होता, लेकिन विज्ञान की तरक्की की वजह से हम जीवन को और भी बेहतर बना सकते हैं. उन्होंने बताया कि आज से 15 साल पहले लंग्स कैंसर (lung cancer) के मरीज का जीवन अगर छह माह होता था तो हम मरीज को घर भेज देते थे, क्योंकि इलाज मुमकिन नहीं होता था, लेकिन अब डीएनए टेस्ट, जेनेटिक टेस्ट, इम्यूनोथेरेपी की मदद से मरीज का जीवन पांच से छह साल लंबा होने लगा है, धीरे-धीरे लाइफ और भी लंबी होने लगेगी.
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डॉ. सुशांत ने बताया कि जब बीमारी स्टेज वन या टू में पकड़ में आती है तो सर्जरी से ही काम चल जाता है तो उसके लिए कीमोथेरेपी और रेडिएशन की जरूरत नहीं पड़ती है. कई सारे ब्लड कैंसर के मरीजों का इलाज दवाओं से ही हो जाता है. नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंस (next generation sequence) के जरिए पता लगाया जाता है कि शरीर का कौन सा स्पेशलाइज जीन खराब है, जिसकी वजह से कैंसर हुआ है और हम कौन सी दवाएं दे सकते हैं. लेटेस्ट आजकल इम्यूनो थेरेपी है जोकि बॉडी की इम्यूनिटी को मजबूत बना देती है. इसमें साइड इफेक्ट जैसे- बालों का झड़ना, उल्टी जैसा होना और लूज मोशन होना होता है. लंग्स कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, यूरिनरी ब्डर कैंसर में इम्यूनो थेरेपी का परिणाम बहुत ही उत्साहजनक रहा है. हम इम्यूनो थेरेपी में इंजेक्शन लगाते हैं और मरीज कुछ घंटों में घर चले जाते हैं. ये दवाएं शरीर की इम्यूनिटी को इतनी मजबूत कर देती है ताकि बॉडी खुद ही कैंसर सेल्स को मारने में सक्षम हो जाए.
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इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian council of medical research) और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (National Center for Disease Informatics and Research) की तरफ से जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल कैंसर प्रभावित पुरुषों की संख्या 6.8 लाख है, जबकि महिलाओं की संख्या 7.1 लाख रह सकता है. 2025 तक पुरुषों में कैंसर के 7.6 लाख मामले एवं महिलाओं में 8.1 लाख मामले होने का अनुमान लगाया गया है.
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