नई दिल्ली: राजधानी में मानव अंग के खरीद-फरोख्त का भंडाफोड़ हुआ है. एक दसवीं पास ओटी टेक्नीशियन किडनी ट्रांसप्लांट का एक सिंडिकेट चला रहा था. इस घटना से एक बार फिर किडनी की खरीद-फरोख्त और अंग प्रत्यारोपण की व्यवस्था पर सवाल उठाए जाने लगे हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं कि देश में किडनी के मरीजों की संख्या अधिक और अंगदान का अनुपात कम होने के कारण किडनी एवं अन्य मानव अंगों के खरीद-फरोख्त का रैकेट बड़े पैमाने पर चल रहा है. आखिरकार मानव अंगों का कारोबार इतना फल फूल क्यों रहा है ? जाहिर सी बात है मानव अंग किसी फैक्ट्री में बनाए नहीं जा सकते. अंगदान के जरिए ही इस कमी को पूरा किया जा सकता है. मानव अंगों की मांग और पूर्ति के बीच कितना बड़ा अंतर है और इस अंतर को कैसे पाटा जा सकता है विशेषज्ञ बता रहे हैं.
विशेषज्ञ बताते हैं कि मानव शरीर एक बेहतरीन मशीन है. इसमें जानदार अंग लगे हैं, जिनकी मदद से इंसान एक स्वस्थ जीवन जीता है, लेकिन इंसान और मशीन में एक बुनियादी फर्क है. मशीन के कलपुर्जे फैक्ट्री में बन सकते हैं, लेकिन अंग किसी लैब या किसी फैक्ट्री में नहीं बनते हैं. लेकिन मशीन की तरह इंसानों को भी नई जिंदगी दी जा सकती है. इसके लिए अंगदान बेहद जरूरी है.
अंगों की मांग और सप्लाई के बीच बड़ा गैप
एम्स के ओर्बो डिपार्टमेंट के मेडिकल सोशल वर्क ऑफिसर राजीव मैखुरी बताते हैं कि हर साल लाखों लोग अंगदान का इंतजार करते-करते असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं. वेटिंग लिस्ट काफी लंबी है. राजीव अंगों के लिए वेटिंग लिस्ट के बारे में बताते हैं कि हमारे देश की जनसंख्या अधिक होने के बावजूद ऑर्गन डोनेशन नहीं होते हैं. हमारे देश में हर साल तकरीबन 15 से 16 हजार किडनी ट्रांसप्लांट होते हैं. हर साल कम से कम एक लाख लोग किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार करते हैं, लेकिन केवल 15-16 हजार लकी लोगों को ही किडनी मिल पाता है.
केवल 0.1 फीसदी अंगों की मांग ही पूरी हो पाती है
राजीव बताते हैं कि भारत सरकार के तहत नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन के वेबसाइट पर नजर डालने से पता चल जाता है कि अंगदान करने वाले और अंग दान प्राप्त करने वाले के बीच एक लंबा गैप है. हर साल 10-15 हजार हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन 250 भाग्यशाली लोगों का ही हर साल ट्रांसप्लांट हो पाता है. हालांकि पहले की तुलना में यह गिनती थोड़ी बढ़ी है. ऐसा डोनेशन बढ़ने से हुआ है. लोगों में जागरूकता आ रही है और लोग अंगदान के लिए आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद अंगों की मांग और सप्लाई में काफी बड़ा अंतर है. हमें हर साल एक लाख किडनी, 50 से 60 हजार लीवर, 10 से 20 हजार हार्ट की जरूरत होती है. इनमें से 0.1 फीसदी ऑर्गन जरूरतमंद लोगों को मिल पाता है. सबसे ज्यादा कॉर्निया का डोनेशन होता है, जिसे हम टिशूज कहते हैं. 25 हजार के आसपास टिशूज डोनेशन होता है, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है. 35 से 40 हजार टिशूज की जरूरत होती है.
अंगदान से नई जिंदगी पाने वाले जागरूकता के लिए आएं आगे
राजीव उन लोगों से अपील कर रहे हैं, जिन्होंने किसी के डोनेशन से एक नई जिंदगी पाई है. अगर वह आगे बढ़ कर लोगों को डोनेशन के लिए अपील करेंगे तो लोग जागरूक होंगे और स्वेच्छा से अंगदान के लिए सामने आएंगे.
भारत में अंगदान के आंकड़े दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम
फीजिशियन डॉ दशरथ सिंह बताते हैं कि भारत में अंगदान के आंकड़े दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत ही कम है. अंगों की मांग और आपूर्ति के बीच एक बहुत बड़ा फासला है. अगर किडनी को ही ले लें तो हर साल भारत में लगभग दो लाख लोगों को किडनी की जरूरत होती है, लेकिन पूरे भारत में सिर्फ 7 से 8 हजार ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पाते हैं. 20 हजार लोग डायलिसिसस पर हैं और बाकी के लोग भगवान से भरोसे हैं. 50-60 हजार लोगों को लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन 900 या हजार लोग ही लीवर ट्रांसप्लांट करा पाते हैं. हर साल लोग अंगदान नहीं होने की वजह से अंगों के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं.
सभी को अंगदान का संकल्प लेना चाहिए
डॉ दशरथ बताते हैं कि अंग दान महादान है. लोगों को इस महादान का संकल्प लेना चाहिए. जिंदगी के बाद भी और जिंदगी के साथ भी वह इस महादान के माध्यम से मानवता को बरकरार रख सकते हैं. दुर्घटनवश किसी की मृत्यु होने पर उनके परिजनों को अनिवार्य रूप से अंग दान कर देना चाहिए. ऐसा कर अपने खोए हुए परिजनों को दूसरे के शरीर में जीवित कर पाएंगे और दूसरे व्यक्ति जिन्हें अंग की सख्त जरूरत होती है, उन्हें नया जीवन मिल पायेगा और साथ ही अंगदान बढ़ने से अंगों के व्यापार पर भी रोक लग पायेगा.
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