नई दिल्ली: डॉक्टर बनने के सपने देखने वाले दिल्ली के सीलमपुर निवासी मोहम्मद चांद आज मुर्दा ढोने का काम कर रहे हैं. लॉकडाउन के कारण पिता की नौकरी छूटी तो उनके सामने आर्थिक तंगी आ गई. ऐसे में 8 सदस्यों के परिवार को चलाना बेहद मुश्किल बन गया था. वे खुद ओपन से 12वीं की पढ़ाई कर रहे थे और घर में 3 बहनें पढ़ने वाली हैं. मोहम्मद चांद ने आखिरकार हारकर एलएनजेपी अस्पताल में कोरोना से मरने वाले लोगों के शवों को श्मशान पहुंचाने का काम शुरू कर दिया.
पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर निवासी मोहम्मद चांद 6 भाई-बहनों में सबसे बड़ा है. बड़े होने का उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. परिवार की आर्थिक तंगी के कारण अपने डॉक्टर बनने के सपने को पीछे छोड़ते हुए एलएनजेपी अस्पताल में उन शवों को ढोकर श्मशान पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है, जिन शवों के आसपास उनके बेहद करीबी भी जाने से कतरा रहे हैं. जिन शवों का कोई अंतिम संस्कार करने वाला नहीं मिलता है उन शवों का ये खुद अंतिम संस्कार कर रहे हैं.
17 हजार मासिक वेतन मिलना तय
मोहम्मद चांद ने बताया कि कॉन्ट्रेक्टर के माध्यम से उन्हें 17 हजार रुपये महीने की नौकरी मिली है. यह पैसा मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं. इसके लिए मैं हर रोज मौत से लड़ता हूं. अपनी जान को जोखिम में डालता हूं. जिन कोरोना के मरीजों को डॉक्टर भी छूना नहीं चाहते हैं, उनके शवों को हाथ से उठाकर एम्बुलेंस में डालता हूं. काम बेहद जोखिम वाला है, पर फिर भी करना है. क्योंकि इस काम के बदले मिलने वाले पैसों से मेरे घर का खर्चा चलता है. मेरी बहनों की पढ़ाई का खर्च निकल सकता है और मेरी पढ़ाई भी फिर से शुरू हो सकती है.
'मां की दुआओं में बड़ा असर'
चांद अपने इरादे का जितना पक्का है उतना ही निडर भी है. खतरनाक कोविड मरीजों के शव के साथ काम करने में भी उसे कोई डर नहीं है. चांद का कहना है कि उसकी अम्मी और पिताजी रोज उसके लिए खुदा से सलामती की दुआ करते हैं. मां की दुआओं में बड़ा असर होता है. मुझे कुछ नहीं हो सकता है.
डॉक्टर तो बनना ही है
चांद ने बताया कि अस्पताल में लोगों के हालात को देखकर बहुत दुख होता है. यह काम करते हुए डॉक्टर बनने का मेरा इरादा और मजबूत हो गया है. मैं चाहता हूं कि मैं लोगों की सेवा कर सकूं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) ने मुझे मेरे सपने पूरा करने का भरोसा दिलाया है.