नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े अस्पताल दिल्ली एम्स में एक अलग सुविधा की शुरुआत की जा रही है. ये सुविधा ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी के लिए शुरू की जा रही है. ट्रांसजेंडर्स के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की शुरुआत जल्द की जाएगी. इस सेंटर के तहत ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी. इस सेंटर में सेक्स चेंज से लेकर सामान्य ओपीडी सेवा तक का लाभ इस समुदाय के लोगों को मिलेगा. साथ ही ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की हेल्थ, मेंटल हेल्थ और डायवर्सिटी को समझा जाएगा और इलाज किया जाएगा.
बिना भेदभाव के इलाज देने का मकसद: प्लास्टिक एवं बर्न डिपार्टमेंट के हेड डॉ. मनीष सिंघल ने बताया कि दिल्ली एम्स के अलग-अलग डिपार्टमेंट के डॉक्टर मिलकर इस क्लीनिक में मरीजों का इलाज करेंगे. जल्द एम्स के इस विभाग में ट्रांसजेंडर केयर की सोच के साथ क्लीनिक की शुरुआत की जाएगी. इस पहल का उद्देश्य एक ऐसे स्पेशल क्लीनिक की शुरुआत करना है, जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के बच्चे और बुजुर्ग सभी अपनी परेशानी और अपनी बीमारी डॉक्टर को आसानी से बता सकें और उनका बिना किसी भेदभाव के साथ इलाज एक ही जगह पर किया जा सके. इस दिशा में पिछले एक वर्ष से तेजी से काम चल रहा है.
मिलेगा पूरा मेडिकल केयर: इस विभाग में सर्जरी से लेकर साइकेट्रिक ट्रीटमेंट तक की सुविधा दी जाएगी. डॉ सिंघल ने बताया कि सेंटर फॉर एक्सीलेंस का मतलब है कि हम ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी को सभी मेडिकल केयर एक जगह पर देना चाहते हैं. इसके लिए वर्ल्ड हेल्थ प्रोफेशनल्स या विदेशी डॉक्टर्स की भी मदद ली जाएगी. आमतौर पर भेदभाव के कारण ट्रांसजेंडर इलाज के लिए आगे नहीं आते हैं.
इलाज तो बाद में होगा, पहले उनका हॉस्पिटल तक आना जरूरी है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर ये क्लीनिक बनाया जा रहा है, जिसमें किसी को अलग महसूस न हो और सबका इलाज आसानी से हो सके. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की संयुक्त पहल के तहत इस पर काम किया जा रहा है.
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भारत में 8 प्रतिशत तक ट्रांसजेंडर: डॉ संजय शर्मा ने बताया कि भारत की आबादी में 2 से 8 प्रतिशत आज ट्रांसजेंडर की संख्या है. सामाजिक भेदभाव के कारण वो लोग हेल्थ फैसिलिटी का लाभ नहीं उठा पाते हैं. उन्हें भी विशेष देखभाल की आवश्यकता है. साथ ही उनकी मेंटल हेल्थ का भी ध्यान रखने को जरूरत है. उन्होंने बताया कि आज तक हमारे देश में कोई मां बाप अपने किसी ट्रांस बच्चे को डॉक्टर को दिखाने नहीं लेकर आते. इससे हमें समझ आता है कि कितनी जरूरत है एक ऐसी जगह की जहां पर ट्रांसजेंडर खुलकर अपनी परेशानी और अपनी बीमारी की बात कर सकें.
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