नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में ओपीडी सेवा की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि लोगों के अंदर कोरोना का इस कदर डर बैठा है कि कोई भी ओपीडी में इलाज के लिए नहीं जाना चाहता हैं. कभी मरीजों की बेतहाशा वृद्धि से हमेशा भीड़-भाड़ से भरी जगह अब बिल्कुल वीरान दिख रही है.
25 मई से ओपीडी की सेवा की शुरुआत होने के बावजूद लोग कोरोना का रिस्क उठाने को तैयार नहीं हैं. खासकर बुजुर्गों के इलाज वाला विभाग जेरियाटिक विभाग में पंजीकृत मरीज भी फॉलो-अप के लिये जाने से कतरा रहे हैं. एम्स के जेरियेटिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार मानते हैं कि कोरोना ने पेशेंट्स के व्यवहार को बदल दिया है.
डॉ. विजय बताते हैं कि उनके विभाग में बुजुर्ग मरीजों का इलाज किया जाता है. संयोग से कोरोना का सबसे ज्यादा असर बुजुर्ग और पहले से बीमार मरीजों के ऊपर होता है. क्योंकि इनकी बीमारियों से लड़ने वाला प्रतिरक्षा तंत्र अपेक्षाकृत कमजोर होता है. उन्होंने बताया कि उनके विभाग में मरीज नहीं पहुंच पा रहे हैं. कोरोना ने टेली कन्सलटेंसी को भी मरीजी की सेवा का एक माध्यम बनाया है. एम्स में 2007 से ही यह सेवा चालू है, लेकिन बहुत कम मरीज इसका लाभ उठा पाते थे.
डॉक्टर भी नहीं चाहते हैं बुजुर्ग मरीज आये
डॉ. विजय ने बताया कि एक डॉक्टर के नाते फिलहाल दिल्ली में कोरोना के जो हालात हैं, उसको देखते हुए हम भी नहीं चाहते हैं कि बुजुर्ग मरीज अपनी जान को जोखिम में डालकर ओपीडी में डॉक्टर से मिलने आएं. वे फोन पर कन्सलटेंसी ले रहे हैं. इससे उन्हें अस्पताल आने की मजबूरी नहीं होती है और फोन पर ही उन्हें तसल्ली से देखते हैं और दवाइयां बताते हैं. जिसे वो अपने नजदीकी केमिस्ट शॉप से खरीद सकते हैं. बुजुर्ग उतने टेक्नोसेवी नहीं होते हैं, लेकिन उनके नई पीढ़ी के बच्चे उनकी मदद कर रहे हैं.
मरीजों ने उठाया टेली कन्सलटेंसी का लाभ
लॉकडाउन के दौरान जब ओपीडी सेवा बंद थी तब 61,000 मरीजों को टेली कंसल्टेंसी के माध्यम से सेवा दी गई. कोविड महामारी के दौरान एम्स ने कोविड के साथ-साथ नॉन कोविड मरीजों की भी सेवा प्रदान करना जारी रखा.
हालांकि कोविड इन्फेक्शन के फैलने के खतरे को देखते हुए यह बहुत बड़े पैमाने पर तो नहीं हो पाया, लेकिन इसने बड़ी संख्या में नॉन कोविड मरीजों को भी इलाज उपलब्ध कराया. लॉकडाउन के दौरान 15,810 मरीजों को ओपीडी की सेवा उपलब्ध कराई. हालांकि इनमें नए मरीज नहीं थे. एम्स में पहले से जिनका इलाज चल रहा था, वे ही मरीज फॉलो अप ट्रीटमेंट ले पाये.