नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को निर्देश दिया है कि वे अपने नियमों में 6 महीने के अंदर संशोधन कर सीआईएसएफ में कांस्टेबल सह ड्राइवर और फायर सर्विस में ड्राइवर जैसे पदों पर महिलाओं की नियुक्ति सुनिश्चित करें. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश जारी किया. मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई 2024 को होगी.
हाईकोर्ट ने यह बात तब कही जब केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि इस साल मई में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था सरकार इन पदों पर महिलाओं की भर्ती पर विचार कर रही है और इसके लिए नियमों में जल्द बदलाव किए जा रहे हैं. लेकिन अभी तक यह तय नहीं है कि इसे आखिर कब तक अमल में लाया जाएगा. कोर्ट ने कहा कि सीआईएसएफ का रुख इतना अस्पष्ट कैसे हो सकता है.
दरअसल, याचिकाकर्ता और वकील कुश कालरा ने सीआईएसएफ की नियुक्तियों में महिलाओं के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए याचिका दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि 2018 में सीआईएसएफ की ओर से भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था. याचिका में कहा गया था कि फिलहाल सीआईएसएफ में कांस्टेबल सह ड्राइवर और फायर सर्विस में ड्राइवर जैसे पदों पर अभी सिर्फ पुरुषों की ही नियुक्ति होती है. आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील चारु वली खन्ना ने कहा कि केंद्र सरकार ने मई में कहा था कि नियमों में बदलाव किया जाएगा, लेकिन अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया.
गंगा और यमुना के बीच की जमीनों पर स्वामित्व का दावा करने वाली याचिका खारिजः वहीं, एक दूसरे मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने गंगा और यमुना के बीच की कई राज्यों की जमीनों के स्वामित्व का दावा करने वाली याचिका खारिज कर दिया. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता कुंवर महेद्र ध्वज प्रसाद सिंह पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया.
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिका गलत और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. साथ ही न्यायिक समय की बर्बादी है. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने दावे के लिए केवल कुछ नक्शे और लेख ही दाखिल किए हैं, जो बेसवान के अविभाजित राज्य परिवार के अस्तित्व का संकेत नहीं देते. न ही इस बात पर कोई प्रकाश डालते हैं कि उन्हें उक्त रियासत में कोई अधिकार कैसे प्राप्त है.
कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने यूपी के आगरा, मेरठ, अलीगढ़ और दिल्ली, गुड़गांव और उत्तराखंड की 65 राजस्व संपत्तियों पर स्वामित्व का दावा किया था. याचिका में दावा किया गया था कि आज भी याचिकाकर्ता का परिवार एक रियासत का दर्जा रखता है और उनके स्वामित्व वाले सभी क्षेत्र कभी भी भारत सरकार को हस्तांतरित नहीं किए गए, क्योंकि 1947 में भारत की आजादी के बाद भारत सरकार ने बेसवान अविभाज्य राज्य बेसवान के साथ ना कोई विलय समझौता किया और ना ही कोई संधि की.