नई दिल्ली: दिल्ली में बच्चों के प्रति बढ़ते अपराध को लेकर अब दिल्ली बाल संरक्षण अधिकार आयोग ने 'मेरी आवाज' नाम से एक ऐप लॉन्च किया है. जिसके जरिए ना सिर्फ माता पिता बल्कि आम लोग और बच्चे खुद सीधे तौर पर बाल आयोग को अपने साथ हुए घटनाक्रम की शिकायत कर सकेंगे. इस ऐप से जुड़ी जानकारी को लेकर हमने डीसीपीसीआर की मेंबर ज्योति राठी से बात की जिन्होंने हमें इस ऐप के बारे में पूरी जानकारी दी.
आईआईटी के छात्र ने डिवेलप किया ऐप
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान ज्योति राठी ने बताया कि दिल्ली में चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज को लेकर काम कर रहे समाधान अभियान के साथ मिलकर इस पहल की शुरुआत की गई है. इस ऐप को आईआईटी के एक छात्र ने बनाया जिस पर दिल्ली बाल आयोग ने पूरे 10 महीने तक काम कर इसको लांच किया.
'प्ले स्टोर से करें ऐप डाउनलोड'
ज्योति राठी ने बताया कि जिस तरीके से पिछले कई महीनों से लगातार बच्चों के साथ बर्बरता की घटनाएं बढ़ रही है. उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी गहरी चिंता व्यक्त की थी. जिसके बाद शहर डिपार्टमेंट की ओर से यह ऐप लॉन्च किया गया, जिसमें फॉर चाइल्ड फॉर पैरंट्स फॉर टीचर हर एक ऑप्शन रखा गया है. जिसमें हर एक बच्चा और हर एक व्यक्ति जो मोबाइल फोन यूज करता है. वह इस ऐप को प्ले स्टोर से जाकर डाउनलोड कर सकता है और अपने आसपास किसी भी बच्चे के साथ होती कोई भी घटना को लेकर सीधे शिकायत दर्ज करा सकता है.
शिकायतकर्ता की जानकारी गुप्त
अधिकारी ने बताया कि यह 3 भाषाओं में जारी किया गया है. हिंदी-इंग्लिश और मराठी इसके अलावा 24 घंटे आप इस ऐप पर कभी भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. शिकायत के तुरंत बाद आपके लोकेशन ट्रेस होने के बाद आप से संपर्क किया जाएगा और मदद दी जाएगी.
उनका कहना था क्योंकि चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज जैसे मामलों में कई बार बच्चे या उनके माता-पिता पुलिस के पास जाने से या किसी से कहने से डरते हैं ऐसे में यह मोबाइल एप बनाया गया है. जिस पर पूरी तरीके से उनकी जानकारी को गुप्त रखा जाएगा और आप हर अपनी बात साफ तौर पर इसके जरिए बाल आयोग से कह पाएंगे.
दिल्ली एजुकेशन डिपार्टमेंट को एडवाइजरी जारी
इसके अलावा अधिकारी ज्योति राठी ने बताया कि इस ऐप को लेकर दिल्ली एजुकेशन डिपार्टमेंट को भी एक एडवाइजरी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि सभी सरकारी स्कूलों की टीचर्स को यह ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा जाए और स्कूलों में और क्लास रूम में बच्चों को उनके माता-पिता को इसके बारे में जानकारी दी जाए. जिससे बच्चे और उनके माता-पिता इसको लेकर जागरूक हो सके और इन मामलों में कमी आ सके.