नई दिल्ली: कोरोना काल में राजधानी दिल्ली की स्वास्थ्य सुविधाएं किस कदर चरमरा गई है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 15 दिन के नवजात के इलाज के लिए परिजन अस्पताल दर अस्पताल चक्कर काटते रहे, लेकिन किसी ने बच्चे को दाखिल तक नहीं किया, जिसकी वजह से नवजात की मौत हो गई.
हार्ट की थी परेशानी
ईडब्लयूएस मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य अशोक अग्रवाल ने बताया कि नवजात के जन्म के 13 वें दिन से उसे कुछ परेशानियां होने लगी. परिजन इलाज के लिए अस्पताल भागे, लेकिन सरकारी अस्पतालों में नवजात के इलाज से मुंह फेर लिया.
मजबूरी में परिजनों ने एक छोटे से नर्सिंग होम में बच्चे को दाखिल कराया. यहां डॉक्टर ने जांच के बाद बच्चे के दिल में परेशानी बताते हुए उसे बड़े अस्पताल ले जाने की सलाह दी. अग्रवाल बताते हैं कि परिजनों ने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के अस्पतालों के चक्कर काटे, लेकिन किसी ने भी बच्चे को भर्ती नहीं किया.
निजी अस्पतालों ने ईडब्लयूएस के नाम पर मोड़ा मुंह
अशोक अग्रवाल बताते हैं कि बच्चे के अभिभावक यमुनापार के इलाके में रहते हैं और गरीब हैं, जो बड़े निजी अस्पतालों का खर्च वहन नहीं कर सकते. इसलिए जब उन्होंने ईडब्लयू एस कैटेगरी के तहत निजी अस्पतालों से मदद मांगी तो उन्होंने बच्चे के बिगड़ते हालात का हवाला देते हुए इलाज से साफ इंकार कर दिया. जिसकी वजह से मात्र 15 दिनों में ही नवजात को दुनिया को अलविदा कहना पड़ गया.