नई दिल्ली: आज वर्ल्ड वेटलैंड्स डे के मौके पर राजधानी के जगतपुर इलाके में स्थित बायोडायवर्सिटी पार्क में दिल्ली के अलग-अलग विभागों से पहुंचे विद्वानों और पर्यावरण पर शोध कर रहे छात्रों ने इसमें अपनी भागीदारी दी. इस मौके पर पर्यावरण को किस तरीके से भविष्य के लिए समृद्ध ओर साफ सुथरा बनाया जाए, इसपर विद्वानों ने अपनी राय रखी. साथ ही इसपर भी चर्चा की गई कि वेटलैंड्स को प्रदूषण मुक्त बनाने में किस तरीके से लोगों की भूमिका तैयार की जा सकती है.
पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. फैयाज खुदसर ने बताया कि हर साल 2 फरवरी को वेटलैंड्स डे मनाया जाता है. वेटलैंड्स यानी भूमि का गिला हिस्सा जहां पर ज्यादातर समय नमी बनी रहती है, जिसमें पानी और जमीन आपस में मिलते हैं. ऐसी जमीनों पर सालभर या ज्यादातर समय पानी भरा होता है. इस तरह की जमीन कई मायनों में प्रकृति के लिए फायदेमंद होती है. नदियों, झीलों व तालाबों आदि की स्थिति को देखते हुए पहली बार साल 2 फरवरी 1971 में ईरान के रामसर में वेटलैंड्स कन्वोकेशन का आयोजन किया गया था. तब से लगातार वर्ल्ड वेटलैंड्स डे मनाया जा रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि, दिल्ली में 7 बायोडायवर्सिटी पार्क हैं, जिन्हें विकसित करने के लिए पर्यावरणविद और सरकार काम कर रही है. पर्यावरण को बचाने के लिए आम लोगों को भी जागरूक होना होगा, तभी भविष्य के लिए साफ-सुथरे पर्यावरण की कल्पना की जा सकती है. दिल्ली में यमुना किनारे बहुत सारी जमीन है, जो ज्यादातर आद्रता या नमी के कारण गीली रहती है. इसे संरक्षित करने के लिए यमुना किनारे के इलाकों में वृक्ष और घास उगा कर विकसित किया जा रहा है, ताकि बरसात के समय में मिट्टी का कटाव ना हो और जल का संचयन आसानी से किया जा सके. सरकार प्रकृति को बचाने के लिए कृत्रिम तरीकों से झील व तालाब आदि बनाकर जल संचयन का काम कर रही है. जरूरी है कि इन जगहों पर कंक्रीट की सतह को बढ़ावा ना दिया जाए. कच्ची सतह पर पशु-पक्षी आसानी से अपना घर बनाते हैं, जहां पर हरे भरे वृक्ष और घास हों.
वहीं डीडीए के प्रिंसिपल कमिश्नर राजीव कुमार तिवारी ने कहा कि सरकार लगातार काम कर रही है, लेकिन इसके लिए दिल्ली के लोगों को भी जागरूक होना होगा. दिल्ली में लगातार जमीन कम हो रही है. लोगों को जागरूक होने के साथ, सरकार के साथ कदम मिलाकर चलना होगा. इसी तरह से दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भी वेटलैंड्स को बढ़ावा दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि, जगतपुर स्थित बायोडायवर्सिटी पार्क को साल 2007 में विकसित करने की छोटी सी कोशिश की गई थी और अब करीब 300 एकड़ से ज्यादा जमीन पर इसे विकसित किया जा चुका है. वहीं यमुना के जल को साफ करने के लिए भी जल संचय करने की जरूरत है. हमें बरसात के दिनों में जल का संचयन करना होगा और प्रकृति के भावों को लोगों को समझना होगा तभी बेहतर और साफ-सुथरे पर्यावरण की कल्पना की जा सकती है.
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पर्यावरणविद डॉ. फैयाज खुदसर ने कहा की कोरोना काल में लोगों की आवाजाही कम हो गई थी और प्रकृति ने एक बार फिर से अपने पुराने रूप को धारण किया था. उस समय नदियों का पानी साफ दिखने लगा था. लोगों को जागरूक करने के लिए यह प्रकृति का इशारा है कि कैसे प्रकृति को स्वच्छ बनाया जा सकता है.
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