नई दिल्ली: 26 जनवरी 2023 को भारत में 73 वां गणतंत्र दिवस (Republic Day 2023) मनाया जाएगा. दुनिया के पटल पर भारत की असली बुनियाद इसी दिन पड़ी, जब संविधान सभा के तैयार किए गए संविधान को अपने ऊपर लागू किया गया, जिसमें देशभर के लोगों के लिए अधिकारों का वर्णन है. संविधान में दिए गए अधिकारों का पालन कर्तव्य के साथ किया जाता है, लेकिन आज के मौजूदा समय में संविधान में वर्णित अधिकारों का पालन देश की सरकार और जनता दोनों ही ओर से होता दिखाई नहीं दे रहा है. जिसपर गणतंत्र के सारथियों की राय अलग-अलग है.
73 वें गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में बुधावर को संविधान में वर्णित अधिकारों के बारे में बात करेंगे. देश के जानें-मानें पर्यावरणविद डॉ फैयाज अहमद खुदसर ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21A में लोगों के जीने के अधिकार है. जिसके लिए साफ पर्यावरण का होना बहुत जरूरी है. नदी, झरने, झील और आसपास पेड़ होंगे तो तभी लोगों का जीवन अच्छा रहेगा. भारत मे नदियों को जीवनदायनी कहा जाता है, जैसे एक बच्चे के लिए माँ महत्वपूर्ण है, उसी तरह नदियां भी देश के विकास और जनता दोनों के लिए महत्व रखती है. लेकिन आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में सरकार देश की तरक्की के लिए काम कर रही है, जोकि बहुत जरूरी है. लेकिन देशभर में हाइवे बनाने के लिए बड़े-बड़े पेड़ों को काटा जा रहा है, जिससे एक राज्य को दूसरे राज्य से बहुत आसानी से जोड़ा जा रहा है. इन हाईवे के बनने से पेड़ों का कटाव हो रहा है, जिसका असर मानव जीवन और नदियों पर पड़ रहा है. पेड़ों की कटाई की वजह से नदियां भी अपना रास्ता बदल रही है. संविधान में दिए गए सभी अधिकारों से अलग जीने का अधिकार मौजूदा समय में सबसे जरूरी है, जिसको लेकर देश की सरकार को काम करना चाहिए. ताकि आज के समय मे प्रदूषित होते वातावरण को सही किया जा सके और लंबे जीवन के लिए एक बार फिर से प्राचीन समय में लौटा जाए. नदियों को दोबारा से जीवन देना होगा और जंगलों का विस्तार करना होगा.
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वही पिछले ढाई दशक से लोगों की समस्याओं को उठाकर सरकार के दरवाजे तक पहुंचाने वाले समाजसेवी हरपाल राणा का कहना है कि संविधान में सभी अधिकार देश की जनता को ध्यान में रखकर दिए गए हैं. लेकिन मौजूदा समय में सरकार द्वारा संविधान में दिए गए अधिकारों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती है. लेकिन धरातल पर उन अधिकारों का पालन नहीं हो रहा है, कहीं ना कहीं सरकार भी अपने कर्तव्य पथ से भटकती हुई नजर आ रही है. संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों में शिक्षा व समानता का अधिकार का वर्णन है. हाल के दिनों में भारत के दूरदराज के इलाकों में लोगों में शिक्षा का अभाव है, जिसके कारण लोगों को सही शिक्षा नहीं मिल पा रही है और उन्हें अपने अधिकारों के बारे में भी जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता का अधिकार है, जो देश के सभी नागरिकों को समान दर्जा देता है. वहीं एक तरफ तो सरकार सभी को समान नागरिक होने का अधिकार देती है, लेकिन वही जब सरकार द्वारा किसी योजना पर अमल करने की बात आती है तो वहां पर अलग-अलग तरह से जनता के साथ बर्ताव किया जाता है. जिसका असर देश के सबसे निचले पायदान के लोगों पर पड़ रहा है. देश मे कोरोना महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को सरकार पेंशन दे रही है लेकिन किसी हादसे में सामान्य तौर पर अनाथ हुए बच्चों के लिए सरकार की ओर से कोई उचित कदम नहीं उठाया जा रहा है. ऐसे मौजूदा समय में कई उदाहरण है जिस पर सरकार को अमल करनी चाहिए.
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गौरतलब है कि देश के अधिकांश जनता हिंदीभाषी है. भारत मे बहुत बड़ा तबका अंग्रेजी को अच्छी तरह से लिख-पढ़ और समझ नहीं सकता. उसके बावजूद भी न्यायालय में न्याय प्रक्रिया अंग्रेजी में की जाती है, जिससे कम पढ़े-लिखे लोगों को कुछ समझ नहीं आता और उन्हें समय पर न्याय भी नहीं मिलता. हरपाल राणा ने बताया कि खुद अपने एक मुकदमे में देश के सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका हिंदी में लगाकर हिंदी में कार्रवाई करने की मांग की. जिस पर सालों बाद अमल किया गया और सर्वोच्च न्यायालय में एक हिंदी विधिक कमेटी का गठन किया गया. आदेश दिया गया कि किसी भी व्यक्ति को हिंदी भाषा में कार्रवाई की जरूरत है तो विधिक कमेटी की सहायता से अपने कार्रवाई को आगे बढ़ा सकता है. सामान्यतः जिन लोगों को अधिकारों की जानकारी है वह उनका अच्छे से प्रयोग कर रहे हैं. आजादी के 73 साल बाद भी देश में अधिकारों की लड़ाई को लेकर जनता आज भी परेशान है.