नई दिल्ली: उत्तराखंड के ऋषिकेश में महिलाओं के सम्मान में नारी संसद (Lok Sansad organized in honor of women) का अगला जुटान आगम 8-9 अक्तूबर 2022 होगा (Lok Sansad organized on 8th and 9th October). माता ललिता देवी सेवाश्रम ट्रस्ट और परमार्थ निकेतन के संयुक्त प्रयास से होने वाले इस आयोजन के विमर्श के केंद्र में भारतीय नारी रहेगी, नारी संसद लगेगी, जिसके दो दिवसीय इस संसद के चार सत्र होंगे. चूंकि भारतीय समाज की प्राथमिक इकाई परिवार है और इसके केंद्र में महिला है तो पहला सेशन परिवार की संरचना और कार्य संचालन पर रहेगा. दूसरे सत्र में विदुषी वक्ता खुद बताएंगी कि भारतीय नारी के लिए क्या-क्या करना ठीक रहेगा, उसके सपने क्या हैं और चुनौती कहां आ रही है. तीसरा सत्र नारी शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यावरण से जुड़ा है.
पहले और तीसरे सत्र के दो हिस्से हैं. जबकि दूसरा हिस्सा संवाद है, जिसमें बुनियादी महलों पर जमीन पर करने वाली महिलाएं व इनका समूह अपना अनुभव शेयर करेगा. यह हिस्सा Knowledge Sharing और Network Building से जुड़ा है. हर सत्र में परमार्थ निकेतन के बच्चे लघु नाटिका से विषय विशेष पर नाट्य मंचन भी करेंगे.
नारी संसद के सहसंयोजक ने बताया कि इसके अलग-अलग सत्रों में मुख्य अतिथि के तौर पर आरिफ मोहम्मद खान राज्यपाल केरल, आनंदी बेन पटेल राज्यपाल उत्तर प्रदेश, केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, विधानसभा अध्यक्ष उत्तराखंड ऋतु खंडूरी भूषण भी शामिल होंगे.
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दो दिवसीय नारी संवाद के आयोजन का मकसद महिलाओं के अतीत और वर्तमान पर संजीदा विमर्श को आगे बढ़ाना है. इससे व्यावहारिक ज्ञान की धारा निकलेगी, उससे भविष्य की कार्ययोजना के प्रस्ताव तैयार होंगे. केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि "नारी को लेकर भारत की जो समझ है, देश-समाज की चेतना है, वह यह कि परस्पर पूरकता ही समाज में संपूर्णता लाती है. लेकिन पिछले 200 साल की स्थितियों में बड़ा बदलाव आया है. आज पश्चिमी सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित विचार हावी होने लगे हैं. इसमें नारी का Commodification, वस्तुकरण होने लगा है. नारी वस्तु समझी जाने लगी है. यह बाजारवाद की अधिकता का नतीजा है. यहां सुख मतलब केवल भौतिक सुख, सुख मतलब केवल मेरा सुख रह गया है. यह वातावरण के प्रदूषण का परिणाम है. आज के दौर में इन सबकी मीमांसा की जानी चाहिए. नारी की समाज में, घर में, बाहर में भूमिका क्या हो, इस पर एक बार पुनः चिंतन की जरूरत है. नारी संसद इसी की जमीन तैयार करेगी. यही नहीं, इससे ज्यादा जरूरी भी कई दूसरी चीजें हैं. घर की सत्ता, संपत्ति और सम्मान में नारी की भागीदारी हो, गृहलक्ष्मी की भूमिका में वह घर की धुरी कैसे रहे, आज की नारी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक तीनों दायित्वों में संतुलन बिठा सके, घर में उसकी भूमिका, घर के बाहर उसकी भूमिका, काम करने वाली महिला की भूमिका, मजदूरी करने वाली महिला की भूमिका, जो समाज के अलग-अलग स्तरों पर महिला की भूमिका है, उसका भी एक बार विचार, समालोकन होने की आवश्यकता है".
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उन्होंने कहा कि, "कोशिश इन सवालों के जवाब भी ढूढ़ने की होगी कि नारी की स्वतंत्रता और समानता की व्याख्या कौन करेगा और वह क्या होगी? नारी सशक्तिकरण की परिभाषा तय कौन करेगा? परिवार का ढांचा क्या होना चाहिए? क्या हम ऐसे समाज और परिवार की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें मां न हो, संबंध न हों? मातृत्व जवाबदेही है या जिम्मेदारी? नारी शिक्षा, स्वास्थ्य, सतत विकास जैसे मसलों का कैसे माकूल हल निकला जाए? घर और बाहर कैसे सुरक्षा सुनिश्चित की जाए? नारी संसद में इन सब बेहद जरूरी मुद्दों पर कई फलप्रद विचार सामने आएंगे और संतों का मार्गदर्शन भी समाज के लिए प्राप्त होगा".
गोविंदाचार्य ने आगे कहा कि, "गंगा जी हम सबकी मां हैं. एक पहाड़ों में हैं और दूसरी मैदान में. सागर तट तक पहुंचते-पहुंचते मां कुछ और हो जाती हैं, बावजूद इस फर्क के मां गंगा उत्तर भारत के लोगों को सीधे तौर पर और दक्षिण को परोक्ष तौर पर बांधे रखती है. गंगा जी के आंचल में आयोजित नारी संसद गंगा जी के लोक को साथ ला रहा है". ऋषिकेश, गंगा जी के तट पर लोक संस्कृतियों का भी मिलन होगा. 8-9 अक्तूबर की शाम 'लोक में गंगा' के नाम से आयोजित कार्यक्रम में पहाड़ से सागर तट के लोक कलाकार साथ-साथ प्रस्तुति दें.
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