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20 साल पहले पाकिस्तान जेल से आई भारतीय सैनिकों की चिट्ठी आपको रुला देगी! - india

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 54 भारतीय सैनिक लापता हो गए थे. लापता सैनिकों के परिवारों को उनके बारे में आजतक कोई जानकारी नहीं है. हाल ही में एक आरटीआई से खुलासा हुआ कि इसकी एक बड़ी वजह सरकार की नाकामी भी है.

भारत-पाक युद्ध के दौरान 54 भारतीय सैनिक लापता हो गए थे
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Published : Mar 27, 2019, 1:57 PM IST

नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच 2 बार युद्ध हुए. पहला युद्ध 1965 तो दूसरा 1971 में. हालांकि दोनों ही युद्धों में विजय भारत की हुई, लेकिन इस दौरान भारत के 54 सैनिक लापता हो गए. विजय दिवस भले ही मनाए जाते हों, लेकिन इस बात को याद रखना जरूरी हो जाता है कि युद्ध सिर्फ बर्बादी देता है और इसी बर्बादी का एक अंश था 54 सैनिकों का लापता हो जाना.

'54 लापता सैनिकों को भारतीय सरकार छुड़वाने में नाकाम रही'

सैनिकों के नाम पर अक्सर ही राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि असल में सरकारें आर्मी के लिए कितना करती हैं? हाल ही में एक आरटीआई के जवाब से खुलासा हुआ कि 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान लापता 54 सैनिकों को अब तक भारतीय सरकार छुड़वाने में नाकाम रही. सालों बीत जाने के बाद भी लापता सैनिकों के बारे में परिवारों को कोई जानकारी नहीं है.

'चिट्ठी पढ़कर रूह रोई थी'

उन्हीं लापता सैनिकों में से एक मेजर कंवलजीत भी थे, जिन्हें पाकिस्तान ने कोट लखपत जेल में बंदी बना रखा था. आखिरी बार करीब 20 साल पहले पाक जेल से एक चिट्ठी आई. लिखा था- "हमें यहां पर तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं, जिसकी वजह से कई सैनिक तो पागल हो चुके हैं और कई पागल होने की कगार पर हैं. हमें यहां से जल्दी निकालिए."

'सरकार की नाकामी'

उसके बाद से परिवार वालों को ये तक नहीं पता कि अब वो लोग जिंदा भी हैं या नहीं. आरोप है कि भारतीय सरकार अभी तक उन्हें छुड़ाने में नाकाम रही है. भारत सरकार ने एक अभिनंदन को तो छुड़वा लिया, लेकिन अभी भी पाकिस्तान की जेलों में आरटीआई के जवाब के अनुसार 54 अभिनंदन बन्द हैं, जिन्हें छुड़वाने के लिए सरकार कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर सकी. जिसकी वजह से वो पाक जेलों में तरह-तरह की यातनायें झेलते रहे और शायद आज भी झेल रहे होंगे.

आरटीआई में पूछे गए सवाल

आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा ने बताया कि वो पिछले कई साल से आरटीआई लगाकर 1965 और 1971 की भारत-पाक लड़ाई के दौरान लापता भारतीय सैनिकों की सूची मांग रहे थे. उन्हें सरकार की ओर से इसमें कोई जानकारी नहीं दी जा रही थी. आखिरी बार उन्होंने जनवरी 2019 में आरटीआई लगाकर सरकार से जानना चाहा की 1965 और 71 के भारत पाकिस्तान लड़ाई के दौरान लापता भारतीय सैनिकों का क्या हुआ? कितने सैनिकों को सरकार ने अब तक छुड़ाया है? क्या सरकार के पास जानकारी है कि कितने भारतीय सैनिक पाकिस्तान में बंदी हैं और उनकी क्या हालत है?

ये मिला जवाब

कई साल की कोशिश के बाद हरपाल राणा के पास 28 फरवरी 2019 को भारत के रक्षा मंत्रालय की तरफ से जवाब आया कि 1965 और 71 के भारत-पाक लड़ाई के दौरान 54 भारतीय सैनिक लापता हुए हैं. साथ ही बताया गया कि साल 2007 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल सैनिकों के परिवार के लोगों के साथ पाक जेलों में अपनों की तलाश के लिए गया था, लेकिन भारतीय सैनिक वहां वहीं मिले थे. अभी तक न तो सरकार के पास और न ही परिवार के पास ये जानकारी है कि लापता भारतीय सैनिक अभी तक जिंदा हैं या सभी पाकिस्तनी जेलो में मारे गए.

नहीं मिला शहीद का दर्जा

बता दें कि सरकार की तरफ से उन्हें शहीद का दर्जा नहीं दिया गया और ना ही सेना की ओर से उनका फंड और पेंशन पूरी तरह से परिवार को मिल पा रही है. इस बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा ने परिवार से मिलकर जानकारी ली. जब उन्होंने कई परिवारों से मुलाकात की तो पता चला कि अभी तक सैनिकों को शहीद का दर्जा नहीं मिला है. पाकिस्तान जेलों में बंद भारतीय सैनिकों ने कई बार चिट्ठी भी लिखी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान द्वारा यातनायें दी जाने की बात लिखी. आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा के अनुसार पाक जेलों से परिवार के पास चिट्ठी आई थी, जिसमें लिखा था कि उन्हें जेल के अंदर बने तहखानों में रखा जा रहा है.

छोड़ दिए थे 90,000 पाक सैनिक

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 90,000 पाक सैनिकों को वापस बिना किसी शर्त के छोड़ दिया था, लेकिन अपने 54 सैनिकों को छुड़वाने में नाकाम रही. आरटीआई एक्टिविस्ट ने भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से युद्ध के दौरान बनाए गए बन्दी सैनिकों के बारे में कई और भी बातें भी जाननी चाही.

सरकार उठाए कदम

पाकिस्तान जेलों में अब जितने भी युद्ध बंदी बचे हैं, उनके बारे में हरपाल राणा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर उन्हें छुड़ाने के संदर्भ में बात करेंगे. साथ ही जो भी युद्ध बंदी सैनिक पाकिस्तानी जेलों में मारे जा चुके हैं, उनके बारे में परिवार को जानकारी दी जाए और परिवारों को फंड और पेंशन दी जाए.

बात जरा सी है... युद्ध अपने पीछे चीख-पुकार के सिवा कुछ नहीं छोड़ता. इन सब बातों में साहिर लुधियानवी की एक नज्म याद आती है...

"बम घरों पर गिरें कि सरहद पर,

रूह-ए-तामीर जख्म खाती है.

खेत अपने जलें कि औरों के,

जीस्त फाकों से तिलमिलाती है.

टैंक आगे बढ़ें कि पिछे हटें,

कोख धरती की बांझ होती है.

फतह का जश्न हो कि हार का सोग,

जिंदगी मय्यतों पे रोती है."

नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच 2 बार युद्ध हुए. पहला युद्ध 1965 तो दूसरा 1971 में. हालांकि दोनों ही युद्धों में विजय भारत की हुई, लेकिन इस दौरान भारत के 54 सैनिक लापता हो गए. विजय दिवस भले ही मनाए जाते हों, लेकिन इस बात को याद रखना जरूरी हो जाता है कि युद्ध सिर्फ बर्बादी देता है और इसी बर्बादी का एक अंश था 54 सैनिकों का लापता हो जाना.

'54 लापता सैनिकों को भारतीय सरकार छुड़वाने में नाकाम रही'

सैनिकों के नाम पर अक्सर ही राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि असल में सरकारें आर्मी के लिए कितना करती हैं? हाल ही में एक आरटीआई के जवाब से खुलासा हुआ कि 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान लापता 54 सैनिकों को अब तक भारतीय सरकार छुड़वाने में नाकाम रही. सालों बीत जाने के बाद भी लापता सैनिकों के बारे में परिवारों को कोई जानकारी नहीं है.

'चिट्ठी पढ़कर रूह रोई थी'

उन्हीं लापता सैनिकों में से एक मेजर कंवलजीत भी थे, जिन्हें पाकिस्तान ने कोट लखपत जेल में बंदी बना रखा था. आखिरी बार करीब 20 साल पहले पाक जेल से एक चिट्ठी आई. लिखा था- "हमें यहां पर तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं, जिसकी वजह से कई सैनिक तो पागल हो चुके हैं और कई पागल होने की कगार पर हैं. हमें यहां से जल्दी निकालिए."

'सरकार की नाकामी'

उसके बाद से परिवार वालों को ये तक नहीं पता कि अब वो लोग जिंदा भी हैं या नहीं. आरोप है कि भारतीय सरकार अभी तक उन्हें छुड़ाने में नाकाम रही है. भारत सरकार ने एक अभिनंदन को तो छुड़वा लिया, लेकिन अभी भी पाकिस्तान की जेलों में आरटीआई के जवाब के अनुसार 54 अभिनंदन बन्द हैं, जिन्हें छुड़वाने के लिए सरकार कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर सकी. जिसकी वजह से वो पाक जेलों में तरह-तरह की यातनायें झेलते रहे और शायद आज भी झेल रहे होंगे.

आरटीआई में पूछे गए सवाल

आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा ने बताया कि वो पिछले कई साल से आरटीआई लगाकर 1965 और 1971 की भारत-पाक लड़ाई के दौरान लापता भारतीय सैनिकों की सूची मांग रहे थे. उन्हें सरकार की ओर से इसमें कोई जानकारी नहीं दी जा रही थी. आखिरी बार उन्होंने जनवरी 2019 में आरटीआई लगाकर सरकार से जानना चाहा की 1965 और 71 के भारत पाकिस्तान लड़ाई के दौरान लापता भारतीय सैनिकों का क्या हुआ? कितने सैनिकों को सरकार ने अब तक छुड़ाया है? क्या सरकार के पास जानकारी है कि कितने भारतीय सैनिक पाकिस्तान में बंदी हैं और उनकी क्या हालत है?

ये मिला जवाब

कई साल की कोशिश के बाद हरपाल राणा के पास 28 फरवरी 2019 को भारत के रक्षा मंत्रालय की तरफ से जवाब आया कि 1965 और 71 के भारत-पाक लड़ाई के दौरान 54 भारतीय सैनिक लापता हुए हैं. साथ ही बताया गया कि साल 2007 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल सैनिकों के परिवार के लोगों के साथ पाक जेलों में अपनों की तलाश के लिए गया था, लेकिन भारतीय सैनिक वहां वहीं मिले थे. अभी तक न तो सरकार के पास और न ही परिवार के पास ये जानकारी है कि लापता भारतीय सैनिक अभी तक जिंदा हैं या सभी पाकिस्तनी जेलो में मारे गए.

नहीं मिला शहीद का दर्जा

बता दें कि सरकार की तरफ से उन्हें शहीद का दर्जा नहीं दिया गया और ना ही सेना की ओर से उनका फंड और पेंशन पूरी तरह से परिवार को मिल पा रही है. इस बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा ने परिवार से मिलकर जानकारी ली. जब उन्होंने कई परिवारों से मुलाकात की तो पता चला कि अभी तक सैनिकों को शहीद का दर्जा नहीं मिला है. पाकिस्तान जेलों में बंद भारतीय सैनिकों ने कई बार चिट्ठी भी लिखी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान द्वारा यातनायें दी जाने की बात लिखी. आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा के अनुसार पाक जेलों से परिवार के पास चिट्ठी आई थी, जिसमें लिखा था कि उन्हें जेल के अंदर बने तहखानों में रखा जा रहा है.

छोड़ दिए थे 90,000 पाक सैनिक

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 90,000 पाक सैनिकों को वापस बिना किसी शर्त के छोड़ दिया था, लेकिन अपने 54 सैनिकों को छुड़वाने में नाकाम रही. आरटीआई एक्टिविस्ट ने भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से युद्ध के दौरान बनाए गए बन्दी सैनिकों के बारे में कई और भी बातें भी जाननी चाही.

सरकार उठाए कदम

पाकिस्तान जेलों में अब जितने भी युद्ध बंदी बचे हैं, उनके बारे में हरपाल राणा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर उन्हें छुड़ाने के संदर्भ में बात करेंगे. साथ ही जो भी युद्ध बंदी सैनिक पाकिस्तानी जेलों में मारे जा चुके हैं, उनके बारे में परिवार को जानकारी दी जाए और परिवारों को फंड और पेंशन दी जाए.

बात जरा सी है... युद्ध अपने पीछे चीख-पुकार के सिवा कुछ नहीं छोड़ता. इन सब बातों में साहिर लुधियानवी की एक नज्म याद आती है...

"बम घरों पर गिरें कि सरहद पर,

रूह-ए-तामीर जख्म खाती है.

खेत अपने जलें कि औरों के,

जीस्त फाकों से तिलमिलाती है.

टैंक आगे बढ़ें कि पिछे हटें,

कोख धरती की बांझ होती है.

फतह का जश्न हो कि हार का सोग,

जिंदगी मय्यतों पे रोती है."

Intro:नॉर्थ वेस्ट दिल्ली

feed.ftp.. 27 mar. 1965 &1971 warriors prison at pak.. चिट्ठी की एक वीडियों ftp से प्रयोग में ले ।

बाईट-- आरटीआई एक्टिविस्ट हर पाल राणा

स्टोरी... एक आरटीआई के जवाब से खुलासा हुआ की 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान लापता 54 भारतीय सैनिकों को अब तक भारतीय सरकार छुड़वाने में रही नाकाम । सालों बीत जाने के बाद भी 54 लापता भारतीय सैनिकों के बारे में नहीं है परिवार वालों को कोई जानकारी । आखरी बार करीब 20 साल पहले पाक जेल से आई थी परिवार वालों के पास । चिट्ठी में लिखा था कि हमें यहां पर तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं, जिसकी वजह से कई सैनिक तो पागल हो चुके हैं और कई पागल होने के कगार पर हैं । उसके बाद से परिवार वालों को यह तक नहीं पता कि अब वे लोग जिंदा भी हैं या नहीं । लेकिन भारतीय सरकार अभी तक उन्हें छुड़ाने में नाकाम रही है । भारत सरकार ने एक अभिनंदन को तो छुड़वा लिया लेकिन अभी भी पाकिस्तान की जेलों में आरटीआई के जवाब के अनुसार 54 अभिनंदन बन्द है । जिन्हें सरकार छुड़वाने के लिए सख्त कार्यवाही नही कर सकी । जिसकी वजह से आजतक पाक जेलों में तरह तरह की यातनाये झेल रहे है ।


Body:आरटीआई एक्टिविस्ट हर पाल राणा ने बताया कि वह पिछले कई सालों से सरकार से आरटीआई लगाकर 1965 और 71 की भारत-पाक लड़ाई के दौरान लापता भारतीय सैनिकों की सूची मांग रहे थे । लेकिन उन्हें सरकार की ओर से इस में कोई जानकारी नहीं दी जा रही थी । आखरी बार उन्होंने जनवरी 2019 में आरटीआई लगाकर सरकार से जानना चाहा की 1965 और 71 के भारत पाकिस्तान लड़ाई के दौरान लापता भारतीय सैनिकों की क्या हुआ ? कितने सैनिकों को सरकार ने अब तक छुड़ाया है ? क्या सरकार के पास जानकारी है कि कितने भारतीय सैनिक पाकिस्तान में बंदी हैं और उनकी क्या हालत है ?

कई सालों की कोशिश के बाद हर पाल राणा के पास 28 फरवरी 2019 को भारत के रक्षा मंत्रालय की तरफ से जवाब आया कि 1965 और 71 के भारत-पाक लड़ाई के दौरान 54 भारतीय सैनिक लापता हुए हैं । जिनकी सूची उन्हें दी गई साथ ही बताया गया कि साल 2007 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल सैनिकों के परिवार के लोगों के साथ पाक जेलों में अपनो की तलाश के लिए गया लेकिन भारतीय सैनिकों ने वहां पर नहीं मिले । अभी तक न तो सरकार के पास और न ही परिवार के पास यह जानकारी है कि लापता भारतीय सैनिक अभी तक जिंदा है या सभी पाकिस्तनी जेलो में मारे गए । लेकिन परिवार के लोगों को उम्मीद है कि उनके अपने अभी भी पाक जेलों में बंद हैं और पाकिस्तान उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दे रहा है । बावजूद इसके सरकार की तरफ से उन्हें शहीद का दर्जा नही दिया गया है और ना ही सेना की ओर से उनका फंड और पेंशन पूरी तरह से परिवार को मिल पा रही है । इस बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट हर पाल राणा ने परिवार से मिलकर जानकारी ली ।

जब उन्होंने कई परिवारों से मुलाकात की तो परिवार के लोगों ने बताया कि अभी तक सैनिकों को शहीद का दर्जा नहीं मिला है । लेकिन पाकिस्तान जेलों में बंद भारतीय सैनिकों ने कई बार चिट्ठी भी लिखी जिसमें उन्होंने खुद और अपने साथियों को यातनाये दी जाने की बात कही । जिसमें बताया गया कि कुछ लोग तो पागल हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद भी पाकिस्तान यह मानने को तैयार नहीं है कि 1965 और 71 के दौरान भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान में युद्ध बंदी बनाया है और वह पाकिस्तान के पास भी हैं । परिवार से कोई बात का आधार पर आरटीआई एक्टिविस्ट हर पाल राणा की मानें तो पाक जेलों से परिवार के पास चिट्ठी आई है । जिसमें लिखा हुआ था कि उन्हें जेल के अंदर बने थे खानों में रखा जा रहा है । जब वे लोग सरकार के प्रतिनिधि मंडल के साथ पाकिस्तान जेलों में अपनों की तलाश के लिए गए तो वहां पर उन्हें कोई नहीं मिला । लेकिन इनका कहना है कि वह समय-समय पर जेल बदलते रहते हैं ताकि भारतीय युद्ध बंदियों के बारे में सरकार को जानकारी ना मिल सके ।

परिवार से हुई मुलाकात के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट ने बताया कि परिवार का दर्द उस समय ज्यादा बढ़ जाता है की जब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने 90000 पाक सैनिकों को वापस बिना किसी शर्त के छोड़ दिया था लेकिन अपने 54 सैनिकों को छुड़वाने में नाकाम रही । परिवार के पास 20 साल पहले की जानकारी है कि उनके परिजन पाके जेलो में बंद थे लेकिन उसके बाद यह नहीं पता कि उनका अभी तक क्या हुआ है । आरटीआई एक्टिविस्ट ने भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से युद्ध के दौरान बनाए गए बन्दी सैनिकों के बारे में कई और भी बातें जाननी चाही ।


Conclusion:पाकिस्तान जेलों में अब जितने भी युद्ध बंदी बचे हुए हैं उनके बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट हर पाल राणा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर और मिलकर उन्हें छुड़ाने के संदर्भ में बात करेंगे । जिस तरह से एक अभिनंदन को भारत सरकार छुड़वाने में सफल रही है उसी तरह से जो भी भारतीय सैनिक युद्ध के दौरान युद्ध बंदी बनाकर पाक जेलों में बंद है उनकी रिहाई के लिए भी सख्त से सख्त कदम उठाएं । जो भी युद्ध बंदी सैनिक पाकिस्तानी जेलों में यातनाएं झेल कर मारे जा चुके हैं उनके बारे में परिवार को जानकारी दी जाए, साथ ही उनके फंड और पेंशन भी परिवार को दिए जाएं ।
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