नई दिल्ली: राजधानी के दिल्ली देहात में शहरी इलाकों के मुकाबले सुविधाएं कम हैं. इसके कई कारण हैं. बिजली, पानी, सड़कें, परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा को बेहतर बनाने की जो रफ्तार शहरों में होती है वैसी ग्रामीण इलाकों में नहीं होती. नतीजतन बेहतर सुविधाओं की आस में लोग गांवों से पलायन करते हैं. हम देश के दूर-दराज के इलाकों की बात नहीं कर रहे. बल्कि देश की राजधानी दिल्ली के ही कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर ग्रामीण इलाकों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.
अच्छी सड़कें और परिवहन सेवा हो तो दूरियां मायने नहीं रखतीं. लोग आसानी से आ जा सकते हैं और उन्हें सुविधाएं मिल सकती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.
बवाना डिपो बना कबाड़ बसों का अड्डा
दिल्ली में विधानसभा का गठन होने के बाद बाहरी दिल्ली में बवाना विधानसभा अस्तित्व में आया. स्थानीय लोगों के मुताबिक इलाके में दो दशक पहले जैसी सार्वजनिक परिवहन सेवा थी उसमें आज भी कुछ खास सुधार नहीं हुआ है. दिल्ली परिवहन निगम का जब गठन हुआ था तो सबसे पहले बवाना क्षेत्र में ही बस डिपो बनाया गया. वह बस डिपो आज कबाड़ बसों को खड़े करने में इस्तेमाल हो रहा है.
दिल्ली देहात इलाके में बसें सीमित मात्रा में चलती हैं. स्थानीय लोगों की माली हालत इतनी अच्छी नहीं है कि वे कैब, ऑटो, टैक्सी कर अपने गंतव्य स्थल तक पहुंच सकें. मेट्रो सेवा का विस्तार करने की बात भी सालों से चल रही है. अभी मेट्रो को दस्तक देने में कितना वक्त लगेगा, कुछ तय नहीं है.
पहले काम का सबूत दो फिर वोट लो
चंद महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. लोग इस बार वोट देने से पहले चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों से यह भी मांग करेंगे कि वो पहले सार्वजनिक परिवहन सेवा को दुरुस्त करें, पुख्ता आश्वासन दें, वे तभी उन्हें वोट देंगे. हर चुनाव में नेता ग्रामीण इलाकों में आते हैं और इस समस्या के समाधान का खोखला वादा कर चले जाते हैं. इसके बाद वे अगले 5 साल तक अपने वादे को भूल जाते हैं. अगला चुनाव आते ही उन्हें अपने वादे फिर से याद आ जाते हैं.
नेताओं के भूलने और याद आने के बीच सबसे अधिक परेशानी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को होती है. हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव में ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक परिवहन को दुरुस्त करने का मामला बड़ा मुद्दा बन सकता है.
नहीं हो रहा निर्धारित मानकों का पालन
ग्रामीण इलाकों में डीटीसी डिपो से चलने वाली बसों की मियाद पूरी हो चुकी है. नियम है कि बसों के 10 साल पूरे होने पर या फिर 5 लाख किलोमीटर चलने के बाद उन्हें हटा लिया जाता है. लेकिन हैरानी है कि डीटीसी की ओर से निर्धारित मानकों का पालन नहीं किया जाता. बवाना विधानसभा इलाके में दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां सिर्फ सुबह और शाम को ही बसें आती-जाती हैं. दिल्ली का इलाका होने के बाद भी यहां के निवासी जो मध्य दिल्ली या नई दिल्ली इलाके में काम करते हैं. वे अपने गांव, अपने घरों में न रह कर दूर किराए पर रहने को मजबूर हैं.