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मुफ़लिसी में कभी आत्महत्या करने की सोची थी, आज 200 परिवारों को रोजगार दे रही हैं फूलबासन बाई

पद्मश्री से सम्मानित फूलबासन बाई यादव(Phoolbasan Bai Yadav) एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी कहानी आज हर कोई सुनना चाह रहा है. वह जेएनयू में चल रहे stree 2020 में बतौर वक्ता शामिल हुई थीं. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

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Published : Nov 26, 2022, 7:53 PM IST

नई दिल्ली: गरीबी में पैदाइश, घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब कि खाने को अनाज तक उपलब्ध नहीं. कम उम्र में शादी और उसके बाद भी जिंदगी नहीं बदली.. और फिर एक दिन बच्चों के साथ ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या करने का मन बना लिया. लेकिन बच्चों की बात ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. इसके बाद एक लंबा संघर्ष और आज वह पद्मश्री से सम्मानित हैं और दूसरों को जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की फूलबासन बाई यादव((Phoolbasan Bai Yadav)) की. वे बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के बहुचर्चित शो केबीसी में बतौर कंटेस्टेंट हिस्सा ले चुकी हैं. उन्हें देश के विभिन्न राज्यों के कॉलेजों में बतौर वक्ता बुलाया जाता है. वह लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं. पद्मश्री से सम्मानित फूलबासन बाई यादव एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी कहानी आज हर कोई सुनना चाह रहा है. वह जेएनयू में चल रहे stree 2020 में बतौर वक्ता शामिल हुई थीं. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

ये भी पढ़ें: चीन के मुद्दे पर 'अडिग' रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी_ जयशंकर

फूलबासन बाई का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके माता-पिता एक होटल में बर्तन धोने का काम करते थे. हालत यह थी कि एक वक्त का खाना बड़ी मुश्किल से जुट पाता था. 10 साल की आयु में ही उनकी शादी हो गई, लेकिन उनके संघर्ष का दौर खत्म नहीं हुआ.

पद्मश्री फूलबासन बाई यादव

फूलबासन (पद्मश्री) ने बताया कि जब वह आत्महत्या करने जा रही थीं तो उनके बच्चों ने उनसे कहा कि मां मुझे मरना नहीं है. बच्चों की इस बात ने उन्हें अंदर तक हिला दिया. उन्होंने अपना इरादा बदल लिया. यहां से उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि अब जीना है तो समाज और गरीब महिलाओं के लिए. कहा कि जिदंगी में लोगों के लिए लड़ते-लड़ते मर जाना मेरे लिए बहुत गर्व की बात होगी. उन्होंने बताया कि साल 2001 में दो रुपये और दो मुट्ठी चावल से 11 महिलाओं के साथ महिला समूह का काम शुरू किया. इस दौरान उनको समाजिक विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अपने मजबूत हौसले से हर प्रतिरोध का सामना करते हुए उन्होंने बम्लेश्वरी जनहितकारी स्व सहायता समूह का गठन किया. फूलबासन बाई मां बम्लेश्वरी स्व सहायता समूह की अध्यक्ष हैं. उन्होंने बताया कि इनके समूह में दो लाख से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं, जो अपने आप में एक मिसाल है.

जेएनयू में चल रहे stree 2020 में अपने जीवन के सघर्ष को बयां करते हुए कहा कि किस तरह उनके हौसले ने उन्हें आपके बीच ला खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा कि महिला अगर कुछ करने की ठान ले, तो वह करके ही रहती है. उन्होंने कहा कि उनका संगठन छ्त्तीसगढ़ राज्य के अगल-अलग जिलों में लड़कियों को कराटे की ट्रेनिंग देने का काम कर रहा है. जिससे लड़कियां किसी भी स्थिति से खुद निपटने में सक्षम हो सकें. पूरे राज्य में करीब 3 हजार लड़कियों को ट्रेनिंग दी जा रही है. इसमें 13 साल की बच्ची से लेकर 40 वर्ष की महिलाएं शामिल हैं.

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नई दिल्ली: गरीबी में पैदाइश, घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब कि खाने को अनाज तक उपलब्ध नहीं. कम उम्र में शादी और उसके बाद भी जिंदगी नहीं बदली.. और फिर एक दिन बच्चों के साथ ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या करने का मन बना लिया. लेकिन बच्चों की बात ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. इसके बाद एक लंबा संघर्ष और आज वह पद्मश्री से सम्मानित हैं और दूसरों को जीवन जीने की प्रेरणा दे रही हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की फूलबासन बाई यादव((Phoolbasan Bai Yadav)) की. वे बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के बहुचर्चित शो केबीसी में बतौर कंटेस्टेंट हिस्सा ले चुकी हैं. उन्हें देश के विभिन्न राज्यों के कॉलेजों में बतौर वक्ता बुलाया जाता है. वह लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं. पद्मश्री से सम्मानित फूलबासन बाई यादव एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी कहानी आज हर कोई सुनना चाह रहा है. वह जेएनयू में चल रहे stree 2020 में बतौर वक्ता शामिल हुई थीं. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

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फूलबासन बाई का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके माता-पिता एक होटल में बर्तन धोने का काम करते थे. हालत यह थी कि एक वक्त का खाना बड़ी मुश्किल से जुट पाता था. 10 साल की आयु में ही उनकी शादी हो गई, लेकिन उनके संघर्ष का दौर खत्म नहीं हुआ.

पद्मश्री फूलबासन बाई यादव

फूलबासन (पद्मश्री) ने बताया कि जब वह आत्महत्या करने जा रही थीं तो उनके बच्चों ने उनसे कहा कि मां मुझे मरना नहीं है. बच्चों की इस बात ने उन्हें अंदर तक हिला दिया. उन्होंने अपना इरादा बदल लिया. यहां से उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि अब जीना है तो समाज और गरीब महिलाओं के लिए. कहा कि जिदंगी में लोगों के लिए लड़ते-लड़ते मर जाना मेरे लिए बहुत गर्व की बात होगी. उन्होंने बताया कि साल 2001 में दो रुपये और दो मुट्ठी चावल से 11 महिलाओं के साथ महिला समूह का काम शुरू किया. इस दौरान उनको समाजिक विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अपने मजबूत हौसले से हर प्रतिरोध का सामना करते हुए उन्होंने बम्लेश्वरी जनहितकारी स्व सहायता समूह का गठन किया. फूलबासन बाई मां बम्लेश्वरी स्व सहायता समूह की अध्यक्ष हैं. उन्होंने बताया कि इनके समूह में दो लाख से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं, जो अपने आप में एक मिसाल है.

जेएनयू में चल रहे stree 2020 में अपने जीवन के सघर्ष को बयां करते हुए कहा कि किस तरह उनके हौसले ने उन्हें आपके बीच ला खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा कि महिला अगर कुछ करने की ठान ले, तो वह करके ही रहती है. उन्होंने कहा कि उनका संगठन छ्त्तीसगढ़ राज्य के अगल-अलग जिलों में लड़कियों को कराटे की ट्रेनिंग देने का काम कर रहा है. जिससे लड़कियां किसी भी स्थिति से खुद निपटने में सक्षम हो सकें. पूरे राज्य में करीब 3 हजार लड़कियों को ट्रेनिंग दी जा रही है. इसमें 13 साल की बच्ची से लेकर 40 वर्ष की महिलाएं शामिल हैं.

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