नई दिल्ली: एक तरफ जहां पूरे देशभर में दिल्ली समेत कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन का चौथा चरण बदस्तूर जारी है. वहीं राजधानी दिल्ली में पिछले कुछ दिनों में आगजनी की घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गई है. इसी बीच 21 मई को राजधानी दिल्ली के कीर्ति नगर क्षेत्र में हरिजन बस्ती की झुग्गियों में भीषण आग लगी थी. जिसमें डेढ़ सौ परिवारों के सर से आशियाना छिन गया. साथ ही इस दर्दनाक हादसे के लगभग 6 दिन बीत जाने के बाद भी इन लोगों तक किसी भी प्रकार से कोई भी मदद स्थानीय प्रशासन या फिर सांसद, विधायक और पार्षद की ओर से नहीं पहुंची है.
झुग्गियों में भीषण आग
हरिजन बस्ती के झुग्गियों में रहने वाले गरीब लोगों को दिल्ली सरकार से मदद की आस है. 21 मई को आग लगने से डेढ़ सौ परिवारों का आशियाना छिन गया था. लेकिन अभी तक दिल्ली सरकार और प्रशासन की तरफ से किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली है. लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं. कुछ लोगों ने अपने पड़ोसियों के घर में आसरा लिया हुआ है. स्थानीय सांसद विधायक और पार्षद से अब तक लोगों को मदद नहीं मिली है.
'दिल्ली सरकार दे मुआवजा'
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान हरिजन बस्ती की झुग्गियों के लोगों ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि आग लगने की वजह से उनका बहुत ज्यादा नुकसान हो गया है. जिसकी भरपाई अब वो उम्र भर नहीं कर सकते. एक इंसान की पूरी जिंदगी लग जाती है घर बनाने में, लेकिन इस तरह के दर्दनाक हादसे से चंद लम्हों में उसकी सारी पूंजी तबाह हो जाती है. स्थानीय लोगों ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जिस तरह दिल्ली सरकार ने तुगलकाबाद के क्षेत्र में झुग्गियों में रहने वाले लोगों की सहायता की है और उन्हें ₹25 हजार का मुआवजा दिया है. उन्हें भी दिल्ली सरकार की तरफ से उसी तरह से वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए. हम कोई अनाथ नहीं है. दिल्ली सरकार के ही मतदाता हैं. जिन्हें दिल्ली सरकार अब जो है अनाथों की तरह छोड़ कर भूल गई है.
'खाने को भी हुए मोहताज'
21 मई की उस दर्दनाक रात को कीर्ति नगर हरिजन बस्ती की झुग्गियों में भीषण आग लगी थी. जिसमें किसी की जान तो नहीं गई. लेकिन डेढ़ सौ परिवारों के सिर से घर की छत या फिर कहा जाए तो उनका आशियाना छीन गया. ईटीवी भारत से हरिजन बस्ती की झुग्गियों के लोगों ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि उनकी सहायता के लिए यहां कोई नहीं आया. इक्का-दुक्का नेता या फिर विधायक कुछ देर के लिए आए तो थे. लेकिन बिना किसी से मिले चले गए और ना ही अभी तक किसी प्रकार की कोई सहायता हम लोगों को मिली है. कुछ गैर सरकारी संगठन है जो एक वक्त का खाना हम लोगों को मुहैया करा देते हैं. उसके अलावा हमें कोई सहायता नहीं मिली, हम लोग अब खुले आसमान के नीचे अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. क्योंकि ना तो हमारे पास रहने के लिए घर है और ना ही पहनने के लिए कपड़े.