नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा है कि कुछ छात्रों ने गुजरात दंगों को लेकर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध के बावजूद उसकी स्क्रीनिंग में हिस्सा लिया. इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है. बिना इजाजत के छात्रों का स्क्रीनिंग और विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेना घोर अनुशासनहीनता माना जाएगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ये जवाब कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव लोकेश चुघ की ओर से दायर उस याचिका के जवाब में दाखिल किया है, जिसमें उसने यूनिवर्सिटी से खुद के एक साल के निष्कासन को चुनौती दी है.
दिल्ली विश्वविद्यालय का कहना है कि लोकेश चुघ 27 जनवरी को यूनिवर्सिटी कैंपस में हुए विरोध प्रदर्शन का मास्टरमाइंड था और विवादित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में उसकी सक्रिय भूमिका थी. उसकी मंशा यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक कामकाज में बाधा डालने की थी और उसकी इन हरकतों से यूनिवर्सिटी की साख को भी धक्का पहुंचा है. हाईकोर्ट अब बुधवार को इस मामले पर सुनवाई करेगा. कोर्ट ने मंगलवार तक दोनों पक्षों को लिखित दलीलें जमा करने को कहा है.
यह था पूरा मामलाः 27 जनवरी 2023 को डीयू कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया गया था. इस दौरान लोगों को दिखाने के लिए इंडिया: द मोदी क्वेश्चन शीर्षक वाली बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई. इसके बाद पुलिस ने कथित रूप से प्रतिबंधित स्क्रीनिंग के लिए कुछ छात्रों को हिरासत में लिया. बाद में छात्रों ने पुलिस पर परेशान करने का आरोप लगाया था.
याचिका में खुद पर डीयू द्वारा लगाए गए प्रतिबंध पर लोकेश चुघ ने कहा था कि डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के मामले में उन पर पुलिस ने किसी भी प्रकार की उकसाने, शांति भंग या हिंसा करने का आरोप नहीं लगाया है और न ही उन्हें हिरासत में लिया था. इसके बावजूद डीयू प्रशासन ने हमें 16 फरवरी को कारण बताओ नोटिस जारी कर कहा था कि वह स्क्रीनिंग के दौरान विश्वविद्यालय में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ने में शामिल थे. नोटिस के बाद 10 मार्च को एक और नोटिस जारी कर विश्वविद्यालय में उनका प्रवेश वर्जित कर दिया. जबकि, विरोध प्रदर्शन के समय वह मौके पर मौजूद भी नहीं थे. बल्कि मीडिया से बातचीत कर रहे थे.