नई दिल्ली : दिल्ली में नगर निगम को कई मायनों में सरकार से अधिक अधिकार मिले हैं. निगम में सत्ता हासिल कर राजनीतिक दलों को दिल्ली की जनता के सबसे करीब होने का अवसर मिलता है. इसलिए राजनीतिक दल व नेता लोकसभा व विधानसभा चुनाव से अधिक गंभीर होकर यह चुनाव लड़ते हैं. पहले जहां दिल्ली नगर निगम (Municipal Corporation of Delhi) यानी एमसीडी तीन होती थी.अब दक्षिणी, उत्तरी और पूर्वी एमसीडी मिलकर एक हो गई है. यानी पहले से अधिक ताकतवर. एकीकरण के बाद इस चुनाव में लंबे अर्से बाद त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा. एमसीडी में लगातार तीन बार यानी 15 सालों तक बीजेपी की सत्ता रही है. उससे पहले 10 वर्षों तक लगातार कांग्रेस का निगम पर राज रहा. इस बीच आम आदमी पार्टी के आने से इस बार मुकाबला रोचक हो गया है. 4 दिसंबर को चुनाव की तारीख का ऐलान हो चुका है. सोमवार से नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है लेकिन अभी तक न तो बीजेपी, न ही कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी ने एमसीडी की 250 सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया है.
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वोट बैंक के लिए अहम है एमसीडी : एमसीडी के पूर्व सूचना अधिकारी योगेंद्र मान बताते हैं कि दिल्ली नगर निगम के जरिए कई ऐसे कार्य किए जाते हैं जो लंबे समय में सभी राजनीतिक दलों के वोट बैंक के लिए बेहद अहम होता है. सड़क निर्माण से लेकर स्कूल और टैक्स कलेक्शन आय का बड़ा स्रोत होता है. निगम पर कब्जा करके राजनीतिक दल बड़ी आबादी के हितों के लिए काम कर सकते हैं. इसलिए राजनीतिक दल काफी सोच समझकर इस चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान करती हैं. एमसीडी चुनाव की तैयारियां एक तरह विधानसभा चुनाव की तैयारी होती है, क्योंकि इसके बाद पार्टियां विधानसभा चुनाव में जाती थीं और फिर लोकसभा चुनाव होता था. पिछले दो चुनाव से आम आदमी पार्टी भी मजबूती से चुनाव में उतर रही है.
एमसीडी का बजट : दिल्ली नगर निगम का सालाना बजट करीब 15 हजार करोड़ के आसपास का होता है. इससे कई सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया जाता है. ऐसे में इतने बड़े बजट वाले एमसीडी पर कब्जा करने की हसरत सभी दलों की रहती है. एमसीडी को केंद्र से स्थानीय निकायों के मद में आवंटित फंड के अलावा दिल्ली सरकार से भी खर्चे के लिए बजट मिलता है.
एमसीडी के अधिकार और कार्य : एमसीडी के पास कई तरह के अधिकार होते हैं. इसके अपने अस्पताल व डिस्पेंसरी भी हैं. ड्रेनेज सिस्टम की देखभाल, बाजारों की देखरेख करना, पार्कों का निर्माण करना और उसकी देखभाल का प्रबंध करना. सड़क और ओवर ब्रिज का निर्माण और रखरखाव करना, कचरे के निस्तारण का प्रबंध. स्ट्रीट लाइट, प्राइमरी स्कूल, संपत्ति कर वसूलना और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, दिल्ली में किसी भी तरह के निर्माण कार्य शुरू करने के लिए नक्शा की स्वीकृति देना, एनओसी जारी करना, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, श्मशान और जन्म और मृत्यु प्रमाण-पत्र जैसे बेहद अहम काम एमसीडी के जरिए होते हैं.
दिल्ली सरकार और निगम में अलग-अलग दल टकराव की बड़ी वजह : निगम पर कब्जे की लड़ाई के पीछे एक कारण यह भी है कि दिल्ली सरकार और निगम दोनों पर अलग-अलग राजनीतिक दल का कब्जा है. जब एक ही राजनीतिक दल का शासन दोनों पर होगा तो टकराव नहीं होगा. क्योंकि दिल्ली में दिल्ली सरकार और एमसीडी दोनों सड़क और नाले की सफाई का काम करवाती है. 60 फीट से ज्यादा चौड़ी सड़क के मरम्मत का काम दिल्ली सरकार का होता है जबकि इससे कम चौड़ी सड़क का काम एमसीडी का होता है. इसी तरह लाइसेंस देने का काम भी दोनों पक्ष करते हैं. दिल्ली सरकार बड़े वाहनों का लाइसेंस जारी करती है जबकि एमसीडी छोटे वाहनों को लाइसेंस जारी करता है. वहीं, एमसीडी प्राइमरी स्कूल संचालित करता है वहीं दिल्ली सरकार बड़े बच्चों के स्कूल, कॉलेज और प्रोफेशनल संस्थानों का संचालन करती है. ऐसे में राजनीतिक दल बेहतर शासन चलाने के लिए दमखम से एमसीडी चुनाव में उतरते हैं. इसे जीतना दलों के लिए नाक का सवाल बन जाता है.
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