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स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन को लेकर घमासान, मेयर जितनी अहम क्यों होती है स्टैंडिंग कमेटी जानिए

राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सियासी जंग मेयर और डिप्टी मेयर पद को लेकर नहीं है, बल्कि स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों को लेकर है. ऐसा इसलिए कि दिल्ली नगर निगम का प्रमुख भले ही मेयर हैं, लेकिन अहम फैसले और विकास योजनाओं की नीति बनाने की जिम्मेदारी स्टैंडिंग कमेटी होती है.

दिल्ली नगर निगम
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Published : Jan 18, 2023, 3:21 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में इस बार एमसीडी के इंटरनल चुनाव को लेकर दिलचस्पी काफी बढ़ गई है. लोगों के बीच मेयर चुनाव से ज्यादा स्टैंडिंग कमिटी के चुनाव को लेकर उत्सुकता देखी जा रही है. दरअसल, एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी एक तरह से वित्तीय विभाग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती है. जिसके पास योजनाओं और नीतियों को बनाने के साथ सभी जरूरी वित्तीय और खर्चों के फैसले लेने की संवैधानिक शक्ति होती है. मेयर चुनाव में जहां आम आदमी पार्टी, वहीं स्टैंडिंग कमेटी में बीजेपी की जीत के समीकरण बनते नजर आ रहे हैं. यदि ऐसा हुआ तो एमसीडी में आने वाला समय हंगामे से भरा होगा.

दिल्ली में इन दिनों एमसीडी के इंटरनल चुनाव को लेकर आप और बीजेपी में सियासी खींचतान जारी है. दरअसल, दिल्ली के अंदर परिसीमन के बाद नए स्वरूप में सामने आई 250 सीटों वाली एमसीडी में मेयर, डिप्टी मेयर के साथ स्टैंडिंग कमेटी के 6 सदस्यों के महत्वपूर्ण चुनाव आगामी 24 जनवरी को होने हैं. इससे पहले 6 जनवरी को एमसीडी के सदन में जबर्दस्त हंगामे और पार्षदों के बीच हाथापाई होने के चलते कार्रवाई को स्थगित कर दिया गया था.

मेयर के साथ स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव क्यों होता हैं अहमः दिल्ली के अंदर एमसीडी में जितना महत्वपूर्ण मेयर होता है उतनी ही महत्वपूर्ण स्टैंडिंग कमेटी और इसका चुनाव होता है. क्योंकि मेयर के पास जहां नीतियों और योजनाओं को लागू करने की अंतरिम साइनिंग अथॉरिटी होती हैं. वहीं इन नीतियों और योजनाओं को बनाने के साथ स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में पेश करने और उन्हें पास कर सदन में भेजने का अधिकार स्टैंडिंग कमेटी के पास होता है. दिल्ली में सिविक एजेंसी के तौर पर एमसीडी द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों और नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाओं में कितना खर्च किया जाए जैसे जरूरी वित्तीय फैसले भी स्टैंडिंग कमेटी द्वारा लिए जाते हैं. इसलिए कमेटी एमसीडी के अंदर सबसे अहम होती है.

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कैसे बनती है स्टैंडिंग कमेटीः दिल्ली एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी बनाने की प्रक्रिया मेयर चुनाव और डिप्टी मेयर के चुनाव संपन्न होने के बाद शुरू होती है. जहां एमसीडी सदन से सीधे तौर पर छह सदस्यों को स्टैंडिंग कमेटी के लिए नॉमिनेट किया जाता है. स्टैंडिंग कमिटी के नॉमिनेट किए जाने वाले पार्षद के पास लगभग 37 पार्षदों का समर्थन सदन में होना चाहिए. जिसके बाद दिल्ली के सभी 12 जॉन से 1-1 पार्षद को वार्ड कमिटी से बहुमत के आधार पर चुनकर भेजा जाता है.

उदाहरण के तौर पर केशवपुरम जोन में बीजेपी के पास 15 पार्षद है और आम आदमी पार्टी के पार्षदों की संख्या कम है. ऐसे में बहुमत के आधार पर स्टैंडिंग कमिटी में भेजे जाने वाला पार्षद बीजेपी से ही होगा. इसी तरह बाकी सभी 11 वार्ड कमेटियों से एक-एक पार्षद को बहुमत के आधार पर चुनकर स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाता है. स्टैंडिंग कमेटी में कुल सदस्यों की संख्या 18 होती है. जिसमें हर साल 33% सदस्य बदल जाते हैं. जबकि, कुछ सदस्यों को 2 साल के लिए नॉमिनेट किया जाता है. इन्हीं 18 सदस्यों में से स्टैंडिंग कमेटी चेयरमैन और डिप्टी चेयरमैन के चुनाव होते हैं. जिसमें यही चुनकर आए 18 सदस्य मतदान के अधिकार का प्रयोग करते हैं. स्टैंडिंग कमेटी के पास एमसीडी के वित्तीय मामलों को लेकर फैसला लेने का पूर्ण अधिकार होता है और यह एमसीडी की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर कमेटी होती है।

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प्रशासनिक स्तर पर कितनी अहम होती है एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटीः प्रशासनिक स्तर पर बात की जाए तो दिल्ली एमसीडी के अंदर संविधान के आधार पर मेयर और स्टैंडिंग कमेटी दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं. यानी दोनों ही पद एक दूसरे के बिना अधूरे हैं. दोनों के बिना एक साथ आए ना तो विकास कार्य हो पाएंगे और ना ही कोई फैसला लिया जा सकेगा. स्टैंडिंग कमिटी का काम योजनाएं और नीतियां बनाने के साथ वित्तीय तौर पर लिए जाने वाले में अहम फैसलों पर निर्णय लेकर सदन में प्रस्ताव पारित करवाकर मेयर के पास भेजना होता है. इसके बाद मेयर के अंतरिम हस्ताक्षर होने के बाद मंजूरी मिलने के साथ ही इन योजनाओं नीतियों और फैसलों को पारित किया जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए तो दिल्ली में जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए नीति और योजना बनाने की जिम्मेदारी स्टैंडिंग कमेटी के होती है. वहीं उस योजना को लागू करवा कर इंप्लीमेंट करवाने की जिम्मेदारी मेयर की होती है.

नई दिल्ली: दिल्ली में इस बार एमसीडी के इंटरनल चुनाव को लेकर दिलचस्पी काफी बढ़ गई है. लोगों के बीच मेयर चुनाव से ज्यादा स्टैंडिंग कमिटी के चुनाव को लेकर उत्सुकता देखी जा रही है. दरअसल, एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी एक तरह से वित्तीय विभाग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती है. जिसके पास योजनाओं और नीतियों को बनाने के साथ सभी जरूरी वित्तीय और खर्चों के फैसले लेने की संवैधानिक शक्ति होती है. मेयर चुनाव में जहां आम आदमी पार्टी, वहीं स्टैंडिंग कमेटी में बीजेपी की जीत के समीकरण बनते नजर आ रहे हैं. यदि ऐसा हुआ तो एमसीडी में आने वाला समय हंगामे से भरा होगा.

दिल्ली में इन दिनों एमसीडी के इंटरनल चुनाव को लेकर आप और बीजेपी में सियासी खींचतान जारी है. दरअसल, दिल्ली के अंदर परिसीमन के बाद नए स्वरूप में सामने आई 250 सीटों वाली एमसीडी में मेयर, डिप्टी मेयर के साथ स्टैंडिंग कमेटी के 6 सदस्यों के महत्वपूर्ण चुनाव आगामी 24 जनवरी को होने हैं. इससे पहले 6 जनवरी को एमसीडी के सदन में जबर्दस्त हंगामे और पार्षदों के बीच हाथापाई होने के चलते कार्रवाई को स्थगित कर दिया गया था.

मेयर के साथ स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव क्यों होता हैं अहमः दिल्ली के अंदर एमसीडी में जितना महत्वपूर्ण मेयर होता है उतनी ही महत्वपूर्ण स्टैंडिंग कमेटी और इसका चुनाव होता है. क्योंकि मेयर के पास जहां नीतियों और योजनाओं को लागू करने की अंतरिम साइनिंग अथॉरिटी होती हैं. वहीं इन नीतियों और योजनाओं को बनाने के साथ स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में पेश करने और उन्हें पास कर सदन में भेजने का अधिकार स्टैंडिंग कमेटी के पास होता है. दिल्ली में सिविक एजेंसी के तौर पर एमसीडी द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों और नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाओं में कितना खर्च किया जाए जैसे जरूरी वित्तीय फैसले भी स्टैंडिंग कमेटी द्वारा लिए जाते हैं. इसलिए कमेटी एमसीडी के अंदर सबसे अहम होती है.

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कैसे बनती है स्टैंडिंग कमेटीः दिल्ली एमसीडी में स्टैंडिंग कमेटी बनाने की प्रक्रिया मेयर चुनाव और डिप्टी मेयर के चुनाव संपन्न होने के बाद शुरू होती है. जहां एमसीडी सदन से सीधे तौर पर छह सदस्यों को स्टैंडिंग कमेटी के लिए नॉमिनेट किया जाता है. स्टैंडिंग कमिटी के नॉमिनेट किए जाने वाले पार्षद के पास लगभग 37 पार्षदों का समर्थन सदन में होना चाहिए. जिसके बाद दिल्ली के सभी 12 जॉन से 1-1 पार्षद को वार्ड कमिटी से बहुमत के आधार पर चुनकर भेजा जाता है.

उदाहरण के तौर पर केशवपुरम जोन में बीजेपी के पास 15 पार्षद है और आम आदमी पार्टी के पार्षदों की संख्या कम है. ऐसे में बहुमत के आधार पर स्टैंडिंग कमिटी में भेजे जाने वाला पार्षद बीजेपी से ही होगा. इसी तरह बाकी सभी 11 वार्ड कमेटियों से एक-एक पार्षद को बहुमत के आधार पर चुनकर स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाता है. स्टैंडिंग कमेटी में कुल सदस्यों की संख्या 18 होती है. जिसमें हर साल 33% सदस्य बदल जाते हैं. जबकि, कुछ सदस्यों को 2 साल के लिए नॉमिनेट किया जाता है. इन्हीं 18 सदस्यों में से स्टैंडिंग कमेटी चेयरमैन और डिप्टी चेयरमैन के चुनाव होते हैं. जिसमें यही चुनकर आए 18 सदस्य मतदान के अधिकार का प्रयोग करते हैं. स्टैंडिंग कमेटी के पास एमसीडी के वित्तीय मामलों को लेकर फैसला लेने का पूर्ण अधिकार होता है और यह एमसीडी की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर कमेटी होती है।

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प्रशासनिक स्तर पर कितनी अहम होती है एमसीडी की स्टैंडिंग कमेटीः प्रशासनिक स्तर पर बात की जाए तो दिल्ली एमसीडी के अंदर संविधान के आधार पर मेयर और स्टैंडिंग कमेटी दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं. यानी दोनों ही पद एक दूसरे के बिना अधूरे हैं. दोनों के बिना एक साथ आए ना तो विकास कार्य हो पाएंगे और ना ही कोई फैसला लिया जा सकेगा. स्टैंडिंग कमिटी का काम योजनाएं और नीतियां बनाने के साथ वित्तीय तौर पर लिए जाने वाले में अहम फैसलों पर निर्णय लेकर सदन में प्रस्ताव पारित करवाकर मेयर के पास भेजना होता है. इसके बाद मेयर के अंतरिम हस्ताक्षर होने के बाद मंजूरी मिलने के साथ ही इन योजनाओं नीतियों और फैसलों को पारित किया जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए तो दिल्ली में जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए नीति और योजना बनाने की जिम्मेदारी स्टैंडिंग कमेटी के होती है. वहीं उस योजना को लागू करवा कर इंप्लीमेंट करवाने की जिम्मेदारी मेयर की होती है.

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