नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में दो चुनाव बेहद ही महत्वपूर्ण होते हैं. पहला छात्र संघ का चुनाव और दूसरा शिक्षक संघ का चुनाव. आज बात दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) की करेंगे. यह चुनाव डीयू में पढ़ाने वाले गेस्ट, एडहॉक और रेगुकर शिक्षकों के लिए बेहद ही जरूरी है, क्योंकि इनकी आवाज को बुलंद करने के लिए कोई प्रतिनिधि इनके पास होता है. शिक्षकों के वेतन से लेकर अन्य डिपार्टमेंट के मुद्दे भी डूटा प्रतिनिधि के द्वारा उठाए जाते हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ का चुनाव हर दो साल पर होता है. आइए जानते हैं इस चुनाव की प्रक्रिया क्या है और इससे पहले के चुनाव कौन जीते?
डूटा चुनाव की क्या होती है प्रक्रिया?
दिल्ली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर आनंद प्रकाश दिल्ली यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ के चुनाव प्रक्रिया के बारे में बताते हैं कि डूटा के मौजूदा अध्यक्ष और उसके कार्यकारिणी के सदस्यों के द्वारा इलेक्शन ऑफिसर्स की नियुक्ति और चुनाव की तारीख तय की जाएगी. इसके बाद इलेक्शन ऑफिसर चुनाव की अधिसूचना जारी करेंगे. सबसे पहले सभी प्रत्याशी नॉमिनेशन करते हैं. फिर स्क्रूटनी होती है और उसके बाद बैलट नंबर डिसाइड किया जाता है. इसके बाद ही चुनाव की प्रक्रिया संपन्न होती है.
कौन कर सकता है वोटिंग
आनंद प्रकाश बताते हैं कि इस चुनाव में वहीं शिक्षक वोट कर सकते हैं जो दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन को अपना मासिक फंड में 20 रुपये जमा करता है. शिक्षक संघ के इस चुनाव में अध्यक्ष और 15 एक्जीक्यूटिव मेम्बर का चुनाव होता है, जिसके बाद चुने हुए एक्जिक्यूटिव, वाइस प्रेसिडेंट, सेक्रेटरी, ज्वाइंट सेक्रेटरी और ट्रेजरर का चयन करते हैं. मौजूदा समय में भाजपा समर्थित एनडीटीएफ टीचर ग्रुप के प्रोफेसर एके भागी अध्यक्ष हैं.
सहायक प्रोफेसर आनंद प्रकाश ने बताया कि शिक्षक संस्थान ऐसे संस्थान होते हैं, जहां भविष्य का निर्माण होता है और इन शिक्षक संस्थानों को राजनीति से कैसे बचाया जाए. दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की स्थापना 60 के दशक में हुई थी. पहले चुनाव नहीं होते थे. सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिया जाता था, लेकिन बाद में चुनाव होने शुरू हुए. डीयू में जो शिक्षक संगठन है वह एक राजनीति पार्टी की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहा है. उन्होंने बताया कि 2010-11 में शिक्षक संगठन शिक्षकों के हित में कार्य करते थे.
उन्होंने कहा कि शिक्षक संघ का चुनाव इसलिए भी जरूरी है कि जो अध्यक्ष हमें मिले वह किसी के दबाव में न आकर शिक्षकों के हित का ख्याल रखते हुए प्रशासन तक उनकी आवाज ले जाए, यूजीसी तक शिक्षकों की आवाज पहुंचे और बिना डर के सरकार से भी दो-दो हाथ करने के लिए तैयार रहे. वर्तमान में जो डूटा के अध्यक्ष हैं, वह एक विचारधारा से प्रेरित हैं.
आज शिक्षक संगठन जिनके हाथों में है, उनकी सत्ता केंद्र में भी है. शिक्षकों की लड़ाई यह नहीं लड़ सकते. केंद्र सरकार के आगे इन्होंने घुटने टेक दिए हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक विचारधारा के लोगों को भरा जा रहा है, जबकि यह नहीं भूलना चाहिए कि यह दिल्ली विश्वविद्यालय है. आनंद ने कहा कि इसलिए आज यह जरूरी हो गया है कि आज ऐसे शिक्षक संगठन को लाया जाए, जो सबसे पहले शिक्षकों की हित की बात करें. आज शिक्षकों और कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है.