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महिला हिंसा उन्मूलन दिवस: कश्मीर की महिला की कहानी, एक समय टिन शेड के नीचे रहने को थी मजबूर - crime against women day

Elimination of violence against women: दुनिया भर में महिलाओं पर हो रही हिंसा को रोकने और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्‍ट्रीय महिला हिंसा उन्‍मूलन दिवस मनाया जाता है. आज कश्मीर की एक सशक्त महिला के बारे में जानिए, जो एक समय टिन शेड के नीचे रहने को मजबूर थी.

महिला हिंसा उन्मूलन दिवस
महिला हिंसा उन्मूलन दिवस
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 25, 2023, 9:27 AM IST

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस

नई दिल्ली: महिलाएं समाज का अहम हिस्सा है, फिर भी उनको कई तरह की असमानताओं, शोषण और घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. इसी के मद्देनजर हर साल 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्‍य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना और महिलाओं को सशक्त बनाना है. वर्तमान में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने शोषण और हिंसा के बाद खुद को एक सशक्त महिला बनाया है. ऐसी एक मिशाल हैं, अफरोजा बानो.

एक समय था जब अफरोजा बानो अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ टिन शेड के नीचे रहने को मजबूर थी. आज उनके पास खुद का मकान है. जहां वह अन्य पीड़ित महिलाओं को सशक्त बनाने की ताकत देती हैं. साथ ही अपना व्यवसाय चलाती हैं. उन्होंने राजधानी में आयोजित 42वें इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर के सरस आजीविका मेले में अपना एक स्टॉल लगाया है. वो एक सेल्फ हेल्प ग्रुप की सदस्य हैं. इसमें कश्मीरी वूल के शॉल, सूट और स्टोल की बिक्री की जाती है.

जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले की रहने वाली अफरोजा बानो (34) ने बताया कि उनको बचपन से सफल महिला बनाने का शौक था. बचपन में वह अपने गांव के बच्चों को इकट्ठा कर खुद मॉडल बन जाया करती थी. गरीबी के कारण वह अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर सकी थी. उनके परिवार में पांच बहनें और एक भाई था. पिता मजदूर थे, जिनके ऊपर परिवार का लालन पालन करने का बोझ था. इसको देखते हुए अफरोजा ने बिजनेस करने का विचार किया.

दिल्ली आने की जिद: 2005 में बारामूला के गांव में एक गैर सरकारी संगठन ने महिलाओं को कपड़ों की बिक्री करने की ट्रेनिंग देनी शुरू की. ट्रेनिंग में अफरोजा ने भी हिस्सा लिया. वहीं, कुछ समय ट्रेनिंग करने के बाद उनको दिल्ली आने का मौका मिला. जब इस बात की जानकारी उन्होंने अपने परिवार को दी, तो सभी ने उनको भेजने से इंकार कर दिया. वह हारी नहीं और प्रयास करती रही. अंत में उनके पिता ने उनको दिल्ली जाने की अनुमति दी. इस बात को सुनकर परिवार के अन्य सदस्य काफी नाराज हो गए थे और अफरोजा से बात करना बंद कर दिया था.

मिला कमला देवी अवॉर्ड: बानो ने बताया कि दिल्ली आने के बाद उन्होंने कपड़ों की अच्छी बिक्री की. इसके लिए उनको 2005 में प्रगति मैदान में क्राफ्ट कौशल की ओर से कमला देवी अवॉर्ड दिया गया था. इस सफलता के बाद उन्होंने परिवार के सभी सदस्यों को समझाया कि बिजनेस करने से घर की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी. किसी ने उनकी नहीं मानी और 2012 में शादी कर दी गई, लेकिन संघर्ष जारी रहा.

पति ने दिया तलाक: 2013 में अफरोजा ने अपने बड़े बेटे को जन्म दिया. इसके बाद 2014 में हुए एक हादसे में उनकी टेल बोन में फ्रेक्चर आ गया. करीब एक वर्ष तक अफरोजा बेड पर लेटी रहती थी. इसी बीच उनके पति के बीच तनाव बढ़ा. ससुराल पक्ष की ओर से कई तरह के ताने दिए जाने लगे. 2016 में उन्होंने अपने दूसरे बेटे को जन्म दिया. इसके महज कुछ महीनों बाद ही उनका तलाक हो गया. तलाक के बाद जब वह अपने माता पिता के घर गयी तो उनको वहां भी ठिकाना नहीं मिला. वहां एक टीन शेड का टुकड़ा खरीदा और उसके नीचे रहने लगी.

किसी को भी ऐसा दिन न दिखाए: सिसकती आवाज के साथ अपने आंसुओं को बहने से रोकते हुए अफरोजा ने बताया कि वह उनके जीवन की सब से मुश्किल घड़ी थी. बच्चे बहुत छोटे थे. छोटा बेटा 6 महीने का था और दूसरा 3 वर्ष का. कई दिन ऐसे भी थे, जब घर में खाने को कुछ भी नहीं था. उन्होंने बच्चों को पालने के लिए मज़दूरी करनी शुरू की. वह घर में अकेली रहती थी. रात को जब बच्चे रोते थे तो उनका मुंह अपने हाथ से ढक देती थी. इस डर से की बच्चों की आवाज सुन कर कोई अनजान व्यक्ति घर में न घुस जाए.

शुरू हुआ अच्छा दौर: अफरोजा ने बताया कि 2016 में ही उनके गांव में सेल्फ हेल्प ग्रुप खुला. इसमें उन्होंने सबसे पहले अपना नाम लिखवाया. इसके साथ गांव की कई अन्य महिलाओं को भी इसका हिस्सा बनाने का सुझाव दिया. इसके बाद 8 महिलाओं ने मिल कर 3 लाख रुपए का लोन लिया और अन्य राज्यों में जाकर उनकी बिक्री शुरू की. अफरोजा ग्रुप की अन्य 7 महिलाएं सामान की बिक्री करने अलग-अलग राज्यों में जाती है. इसमें उनको कमाई हुई रकम का 35 फीसदी वेतन के तौर पर दिया जाता है.

अन्य महिलाओं की सशक्त होने की प्रेरणा: अफरोजा का मानना है कि महिलाओं को कभी हार नहीं माननी चाहिए. परेशानियों के लड़ते हुए आगे बढ़ना चाहिए. आज गांव में उनका दो कमरों का मकान है. इसमें वह महिलाओं को फ्री में प्रक्षिशण लेने के लिए बैठने देती है.

बता दें, अफरोजा अपने इकलौते भाई के साथ ट्रेड फेयर में आई हैं. बच्चों को साथ लाना मुश्किल था इसलिए उनको अपनी सेहली के घर छोड़ दी. गौरतलब है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस 2023 की इस बार की थीम है #NoExcuse . संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह अभियान 25 नवंबर से शुरू होकर 16 दिनों तक चलेगा. इस का समापन 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के दिन होगा.

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस

नई दिल्ली: महिलाएं समाज का अहम हिस्सा है, फिर भी उनको कई तरह की असमानताओं, शोषण और घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. इसी के मद्देनजर हर साल 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्‍य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना और महिलाओं को सशक्त बनाना है. वर्तमान में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने शोषण और हिंसा के बाद खुद को एक सशक्त महिला बनाया है. ऐसी एक मिशाल हैं, अफरोजा बानो.

एक समय था जब अफरोजा बानो अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ टिन शेड के नीचे रहने को मजबूर थी. आज उनके पास खुद का मकान है. जहां वह अन्य पीड़ित महिलाओं को सशक्त बनाने की ताकत देती हैं. साथ ही अपना व्यवसाय चलाती हैं. उन्होंने राजधानी में आयोजित 42वें इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर के सरस आजीविका मेले में अपना एक स्टॉल लगाया है. वो एक सेल्फ हेल्प ग्रुप की सदस्य हैं. इसमें कश्मीरी वूल के शॉल, सूट और स्टोल की बिक्री की जाती है.

जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले की रहने वाली अफरोजा बानो (34) ने बताया कि उनको बचपन से सफल महिला बनाने का शौक था. बचपन में वह अपने गांव के बच्चों को इकट्ठा कर खुद मॉडल बन जाया करती थी. गरीबी के कारण वह अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर सकी थी. उनके परिवार में पांच बहनें और एक भाई था. पिता मजदूर थे, जिनके ऊपर परिवार का लालन पालन करने का बोझ था. इसको देखते हुए अफरोजा ने बिजनेस करने का विचार किया.

दिल्ली आने की जिद: 2005 में बारामूला के गांव में एक गैर सरकारी संगठन ने महिलाओं को कपड़ों की बिक्री करने की ट्रेनिंग देनी शुरू की. ट्रेनिंग में अफरोजा ने भी हिस्सा लिया. वहीं, कुछ समय ट्रेनिंग करने के बाद उनको दिल्ली आने का मौका मिला. जब इस बात की जानकारी उन्होंने अपने परिवार को दी, तो सभी ने उनको भेजने से इंकार कर दिया. वह हारी नहीं और प्रयास करती रही. अंत में उनके पिता ने उनको दिल्ली जाने की अनुमति दी. इस बात को सुनकर परिवार के अन्य सदस्य काफी नाराज हो गए थे और अफरोजा से बात करना बंद कर दिया था.

मिला कमला देवी अवॉर्ड: बानो ने बताया कि दिल्ली आने के बाद उन्होंने कपड़ों की अच्छी बिक्री की. इसके लिए उनको 2005 में प्रगति मैदान में क्राफ्ट कौशल की ओर से कमला देवी अवॉर्ड दिया गया था. इस सफलता के बाद उन्होंने परिवार के सभी सदस्यों को समझाया कि बिजनेस करने से घर की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी. किसी ने उनकी नहीं मानी और 2012 में शादी कर दी गई, लेकिन संघर्ष जारी रहा.

पति ने दिया तलाक: 2013 में अफरोजा ने अपने बड़े बेटे को जन्म दिया. इसके बाद 2014 में हुए एक हादसे में उनकी टेल बोन में फ्रेक्चर आ गया. करीब एक वर्ष तक अफरोजा बेड पर लेटी रहती थी. इसी बीच उनके पति के बीच तनाव बढ़ा. ससुराल पक्ष की ओर से कई तरह के ताने दिए जाने लगे. 2016 में उन्होंने अपने दूसरे बेटे को जन्म दिया. इसके महज कुछ महीनों बाद ही उनका तलाक हो गया. तलाक के बाद जब वह अपने माता पिता के घर गयी तो उनको वहां भी ठिकाना नहीं मिला. वहां एक टीन शेड का टुकड़ा खरीदा और उसके नीचे रहने लगी.

किसी को भी ऐसा दिन न दिखाए: सिसकती आवाज के साथ अपने आंसुओं को बहने से रोकते हुए अफरोजा ने बताया कि वह उनके जीवन की सब से मुश्किल घड़ी थी. बच्चे बहुत छोटे थे. छोटा बेटा 6 महीने का था और दूसरा 3 वर्ष का. कई दिन ऐसे भी थे, जब घर में खाने को कुछ भी नहीं था. उन्होंने बच्चों को पालने के लिए मज़दूरी करनी शुरू की. वह घर में अकेली रहती थी. रात को जब बच्चे रोते थे तो उनका मुंह अपने हाथ से ढक देती थी. इस डर से की बच्चों की आवाज सुन कर कोई अनजान व्यक्ति घर में न घुस जाए.

शुरू हुआ अच्छा दौर: अफरोजा ने बताया कि 2016 में ही उनके गांव में सेल्फ हेल्प ग्रुप खुला. इसमें उन्होंने सबसे पहले अपना नाम लिखवाया. इसके साथ गांव की कई अन्य महिलाओं को भी इसका हिस्सा बनाने का सुझाव दिया. इसके बाद 8 महिलाओं ने मिल कर 3 लाख रुपए का लोन लिया और अन्य राज्यों में जाकर उनकी बिक्री शुरू की. अफरोजा ग्रुप की अन्य 7 महिलाएं सामान की बिक्री करने अलग-अलग राज्यों में जाती है. इसमें उनको कमाई हुई रकम का 35 फीसदी वेतन के तौर पर दिया जाता है.

अन्य महिलाओं की सशक्त होने की प्रेरणा: अफरोजा का मानना है कि महिलाओं को कभी हार नहीं माननी चाहिए. परेशानियों के लड़ते हुए आगे बढ़ना चाहिए. आज गांव में उनका दो कमरों का मकान है. इसमें वह महिलाओं को फ्री में प्रक्षिशण लेने के लिए बैठने देती है.

बता दें, अफरोजा अपने इकलौते भाई के साथ ट्रेड फेयर में आई हैं. बच्चों को साथ लाना मुश्किल था इसलिए उनको अपनी सेहली के घर छोड़ दी. गौरतलब है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस 2023 की इस बार की थीम है #NoExcuse . संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह अभियान 25 नवंबर से शुरू होकर 16 दिनों तक चलेगा. इस का समापन 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के दिन होगा.

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