नई दिल्ली: मुजफ्फरपुर में फैले इंसेफलाइटिस (चमकी बुखार) ने बिहार में मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. अब तक 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. इस बुखार से बचाव के उपायों पर बात की एम्स की चाइल्ड न्यूरो प्रमुख डॉ. शैफाली गुलाटी ने.
डॉ शैफाली गुलाटी ने बताया कि ये एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम बीमारी है, जिसमें बच्चे को बुखार चढ़ता है, फिर कुछ देर बाद उसे दौरे पड़ने शुरू हो जाते हैं, बच्चों में चिड़चिड़ापन आता है, जिससे कई तरह के डिसऑर्डर भी आते हैं, दिमाग में सूजन आती है और फिर हालात बिगड़ने लगते हैं.
डॉ शैफाली गुलाटी ने बताया कि ये क्लीनिकल सिंड्रोम है और इसके कारक बहुत सारे वायरस हैं. उदाहरण के तौर पर साल 2000 से पहले जैपनीज इन्सेफेलाइटिस वायरस कॉमन था. इसके केस वेस्टर्न यूपी, बिहार और बंगाल के कई हिस्सों में देखे गए थे, फिर तमिलनाडु में एक अलग तरह का वायरस आया, फिर चांदीपुरा में हमने निपाह वायरस देखा.
डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि 2014-15 में सबसे पहले चांदीपुरा में ही लीची से पैदा होने वाले वायरस का पता चला. हालांकि इसके अलावा कई तरह के वायरस और बेक्टीरिया हैं, जिनकी वजह से ये बीमारी हो सकती है. साथ ही ऑटोइम्यून के कारण भी ये होती है, हमारी बॉडी जो एंटी बायोटिक्स प्रोड्यूस करती है, वो इसके कारक हो सकते हैं. इसके अलावा वातावरण में फैले टॉक्सिंस भी इसकी वजह हो सकते हैं.
लीची हो सकती है बीमारी का कारण
इतने सारे कारक से होने वाली इस बीमारी को लेकर डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि ये अभी साफ नहीं हो सका है कि इसका कारण क्या है. हालांकि मुजफ्फरपुर के मामले में उनका संकेत इस तरफ था कि इसके कारकों की सुई लीची की तरफ जा रही है. 2014 15 में सबसे पहले यह सामने आया था कि लीची इस बीमारी का कारण हो सकता है. इसका एक आधार ये है कि लीची के अंदर जो केमिकल होता है और जिस तरह रसायन के इस्तेमाल से उसकी पैदावार होती है, उसके कारण उसके सेवन से बच्चों के दिमाग में ग्लूकोज की कमी हो जाती है.
'एम्स में हो रही है रिसर्च'
डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि इसे लेकर एम्स में भी एक रिसर्च हो रहा है कि आखिर इंसेफेलाइटिस की बीमारियां किस वजह से हो रही है. उन्होंने बताया कि अगले 1 महीने में इसका पूरा ऑपरेशन शुरू होगा.
तीन स्तर पर होता है बचाव
जहां तक इस बीमारी से बचाव की बात है, तो डॉक्टर गुलाटी का कहना था कि जो भी बीमारी होती है, उसमें तीन स्तर पर बचाव का काम होता है. प्राइमरी, सेकेंडर और टर्सरी. जिस बच्चे में भी इस बीमारी के लक्षण हो, उसको तुरंत अस्पताल ले जाया जाए और उसके लिए सबसे जरूरी ये है कि उसका ग्लूकोज और ब्लडप्रेशर मेंटेन रहे. अगर उसे बुखार आता है तो उसे क्रॉसिन दिया जाए.
'बच्चे की मॉनिटरिंग जरूरी'
उन्होंने बताया कि अलग-अलग तरीके के इंसेफेलाइटिस हो सकते हैं और मेनिनजाइटिस भी. दोनों अलग अलग हैं, लेकिन कई बार एक बच्चे में दोनों बीमारियां हो सकती हैं. ऐसे में मॉनिटरिंग जरूरी होती है और सबसे ज्यादा जरूरी होता है कि प्राइमरी मॉनिटरिंग के साथ-साथ उसे सेकेंडरी मॉनिटरिंग में ले जाए जाए. दोनों में गैप नहीं होना चाहिए.
'दिमाग में सूजन आने पर इलाज होता है मुश्किल'
डॉक्टर गुलाटी ने कहा कि अगर प्राइमरी इलाज का समय ही निकल जाता है, तो फिर डायरेक्ट सेकेंडरी इलाज का कोई मतलब नहीं रह जाता. अगर बच्चे के दिमाग में शुगर की कमी हो गई या दौरे शुरू हो गए या ब्रेन में स्वेलिंग हो गई और प्रेशर बढ़ रहा हो या बच्चा उल्टी कर रहा हो तो यह सब प्राइमरी स्तर पर जांच करके इसका त्वरित इलाज करना चाहिए.
अभिभावक क्या एहतियात बरतें?
- बच्चे को हल्का बुखार होने पर अभिभावक बिना देर किए उसे डॉक्टर के पास ले जाएं
- जरूरी है कि बच्चे का ब्लड प्रेशर मेंटेन रहे
- बच्चे का ग्लूकोज का स्तर बना रहे
- लक्षण सामने आने पर जल्द से जल्द डॉक्टर के पास बच्चों को ले जाया जाए.
- जरूरी नहीं बड़े अस्पताल में ही जाएं, किसी भी अस्पताल में पहुंचकर प्राथमिक इलाज कराएं
- इधर उधर भागने में समय व्यतीत होता है और ये नुकसानदेह हो सकता है
'छुआछूत की बीमारी नहीं'
डॉक्टर गुलाटी ने खास तौर पर ये भी कहा कि ये छूआछूत की बीमारी नहीं है लेकिन वातावरण में जो वायरस होते हैं वो एक साथ कई लोगों पर अटैक कर सकते हैं. एक परिवार में ये बीमारी दो बच्चों को हो सकती है लेकिन एक बच्चे से दूसरे बच्चे में नहीं होती.