नई दिल्ली: दिल्ली सरकार और अफसरों के बीच तकरार बढ़ गया है. मंत्री आतिशी ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अफसरों पर गंभीर आरोप लगाया. उन्होंने बताया कि मुख्य सचिव ने कहा है कि वह मंत्री के आदेश को नहीं मानेंगे. सर्विसेज मिनिस्टर और विजिलेंस मिनिस्टर होने के नाते मैंने चीफ सेक्रेटरी को 16 अगस्त को एक आदेश दिया था. इस आदेश के जवाब में मुख्य सचिव ने 21 अगस्त को 10 पन्नों की एक चिट्ठी भेज कर जीएनसीटी एक्ट का हवाला देते हुए साफ तौर पर कह दिया कि वह चुनी हुई सरकार के आदेश को नहीं मानेंगे.
आगे आतिशी ने कहा कि इस एक्ट के तहत चुनी हुई सरकार के पास ताकत नहीं है, अब ताकत बस अफसरों और मुख्य सचिव के पास है. ऐसे तो आगे हम फ्री बिजली, फ्री दवा, सरकारी स्कूल खोलने के लिए विभिन्न विभाग के सचिव को आदेश देंगे और वह इसी तरह से जवाब देंगे. मंत्री के आदेश को नहीं मानेंगे.
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Hon'ble Minister @AtishiAAP Addressing an Important Press Conference | LIVE https://t.co/jcb1WvDEuq
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लोकतंत्र की हत्या का प्रयास: मंत्री आतिशी ने कहा कि जनता ने हमें चुना है और पांच साल के लिए अपनी सेवा देने का मौका दिया है. लोकतंत्र के अनुसार फैसले लेने का अधिकार सिर्फ भारत के लोगों के पास है. भारत के लोग वोट देंगे और अपने प्रतिनिधि चुनेंगे. वह प्रतिनिधि 5 साल तक काम करेंगे. उनका काम अच्छा है या बुरा, इसे तय करने का अधिकार हमारे संविधान ने भारत के लोगों को दिया. भारत के संविधान के अनुसार ही पांच साल में चुनाव कराने का भी प्रावधान है. संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ केंद्र सरकार एक कानून लेकर आई है. यह कानून जिसे जीएनसीटीडी अमेंडेमेंट एक्ट कहते हैं 11 अगस्त, 2023 को नोटिफाई हुआ.
आतिशी ने कहा कि यह कानून कहता है कि चाहे हमारा संविधान कुछ भी कहता हो, केंद्र द्वारा लाया गया एक्ट कहता है कि दिल्ली में फैसले लेने का अधिकार दिल्ली की जनता और चुनी हुई सरकार को नहीं बल्कि केंद्र द्वारा लाए गए एलजी को होगा.
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क्या है जीएनसीटीडी अमेंडेमेंट एक्ट: आतिशी ने एक्ट की कॉपी दिखाते हुए कहा कि इस एक्ट में सेक्शन 45 जे कहता है कि अगर कोई अफसर चाहे तो वह मंत्री के आदेश को मानने से मना कर सकता है. अगर मुख्य सचिव चाहे तो किसी मंत्री द्वारा आदेश को मानने से मना कर सकता है. इस एक्ट की यह धारा लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहा है. 11 अगस्त को यह कानून नोटिफाई हुआ और इसका परिणाम हमें 21 अगस्त को ही देखने को मिल गए. मुख्य सचिव ने 10 पन्नों की एक चिट्ठी लिखकर दिल्ली सरकार के आदेश को मानने से मना कर दिया.
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