नई दिल्ली: भारतीय महिलाओं की गरिमा और पारीक सौंदर्य बोध को एक नया रूप देने के लिए साथ ही उन संभ्रांत महिलाओं को पारंपरिक पोशाकों की तरफ वापस लौटाने के उद्देश्य से सोशल उद्यमी विधि सिंघानिया ने एक नई पहल की है. इस पहल के माध्यम से आधुनिकता की अंधी दौड़ में बेरोजगारी के कगार पर खड़े बुनकरों के रोजगार को बढ़ाने और भारतीय पारंपरिक परिधानों को विश्व पटल पर प्रमोट करने का एक अनोखा प्रयास किया गया है.
दिल्ली के पॉश इलाके में शामिल डिफेंस कॉलोनी में एक संभ्रांत सोशल उद्यमी महिला ने इसकी शुरुआत की है. विधि सिंघानिया ने बताया कि हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्रों को समर्थन देने और हथकरघा बुनकरों, कारीगरों, उत्पादकों के लिए व्यापक बाजार को सक्षम करने के लिए हम लगातार कम कर रहे हैं. इसी कड़ी में पीसी गोतुका एंड संस ने विधि सिंघानिया के साथ मिलकर एक खास ब्राइडल पॉप-अप की शुरुआत की है. उन्होंने कहा कि वह हमेशा बुनकरों का आदर करती हैं और उनके रोजगार के लिए प्रयास करती हैं. सदियों से चली आ रही बुनाई के पेशे को वह आधुनिक रूप देना चाहती हैं.
बुनकरों के जीवन में दीवाली की रोशनी: सिंघानिया ने बताया कि देश के चार करोड़ बुनकर और उनके परिवार इस पेशे से जुड़े हुए हैं. कृषि के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है जिसमें सर्वाधिक रोजगार की संभावनाएं हैं. बुनाई इतिहास का एक हिस्सा है, जिसे संरक्षित और संवर्धित करने की आवश्यकता है. भारत की समृद्ध परंपरा का यह एक अभिन्न हिस्सा है. आधुनिकता की अंधी दौड़ में यह कहीं खो रहा है। इस विरासत को सहेज कर रखने की आवश्यकता है. बुनकरों के कार्य के महत्व को समझते हुए उन्हें तहजीब से पेश करने की जरूरत है.
एक-एक साड़ी में बुनकर अपनी जान डालते हैं: रामगढ़ से लेकर कोटा तक और बनारस बुनकरों का ब्रीडिंग ग्राउंड रहा है. खूबसूरत डिजाइनों के साथ-साथ उसमें सुंदर रंगों का समायोजन कर भारत की समृद्ध विरासत को रेशम के धागों के साथ कॉटन के कपड़ों पर बड़ी खूबसूरती से उकेरते हैं. यह काम आसान नहीं होता है. एक-एक साड़ी को बनाने में बुनकर अपनी जान डाल देता है. उन्होंने बताया कि आज पाश्चात्य सभ्यता की अंधी दौड़ में सभी शामिल हैं. खासकर संभ्रांत समाज के लोग अपनी खूबसूरत विरासत की निशानी को खत्म कर रहे हैं। ऐसे लोगों में इसे जीवित करने की आवश्यकता है, जिसका बीड़ा उन्होंने उठाया है.
बुनकरों की दशा में सुधार की पहल: मरती हुई परंपरा को पुनर्जीवित करने से उत्तम. प्रयास और क्या हो सकता है? साड़ी से ज्यादा एलिगेंट कुछ और हो ही नहीं सकता. इसमें महिलाओं की खूबसूरती उभर कर सामने आती है. नई पीढ़ी को पाश्चात्य परिधानों के पीछे भागने की बजाय अपनी परंपरा और विरासत को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. कोई एक व्यक्ति अपने हाथों की कारीगरी से एक सुंदर चीज पेश कर रहा है तो उसे उचित सम्मान मिलनी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में बुनकरों को पुनर्जीवित कर रहे हैं और उनकी कला को विश्व पटल पर लाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. हम भारतीयों को भी अपनी परंपरा को सहेज कर रखने की आवश्यकता है.
बता दें कि विधि सिंघानिया, 25 साल पुरानी विरासत वाली ब्रांड, हाथ के बने प्रोडक्ट प्रस्तुत करती है. नई कलेक्शन रानीसा विधि सिंघानिया की लक्जरी का परिणाम है. यह बनारस और कोटा के खास धागों के साग तैयार किया गया है. इस सहयोग में लगभग तीन हजार बुनकर शामिल हैं.
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