नई दिल्ली: 26 जनवरी यानी आजाद भारत के गणतांत्रिक होने का दिन. इसी दिन भारत गणतंत्र के सूत्र में बंधा था. पूरे देश को इस दिन दिल्ली में होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह का बेसब्री से इंतजार रहता है. हालांकि सुरक्षा कारणों से अब गणतंत्र दिवस समारोह में आम दर्शकों की संख्या निर्धारित कर दी गई है, लेकिन जब पहला गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को दिल्ली के इरविन एम्फीथिएटर में मनाया गया था तो विभिन्न राज्यों के हजारों की संख्या में लोग कई दिन पहले से ही उसे देखने के लिए डट गए थे.
चार बार बदल चुका है परेड का स्थान: संविधान के जानकार सुभाष अग्रवाल ने बताया कि, जब देश में संविधान लागू हुआ तब आम जनता के मन में यह बात घर कर गई कि उसे किस तरह अपनी नागरिकता के धर्म का पालन करना है. उन्होंने बताया कि 26 जनवरी को राजपथ जो अब कर्तव्यपथ बन गया है, यहां होने वाली परेड, देश के पहले गणतंत्र दिवस से नहीं बल्कि 1955 में पहली बार आयोजित की गई थी. अब कर्तव्यपथ पर स्थाई रूप से होने वाली इस परेड का अभी तक चार बार स्थान बदल चुका है. पहले गणतंत्र दिवस पर यानी 26 जनवरी 1950 को दिल्ली के इरविन एम्फीथिएटर में गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन हुआ था, जो आज नेशनल स्टेडियम के नाम से मशहूर है. यहां देश का पहला गणतंत्र दिवस समारोह मनाया गया था. इरविन एम्फीथिएटर के बाद यह समारोह रामलीला मैदान, लालकिला और उत्तरी दिल्ली के किंग्सवे कैंप में आयोजित किया गया.
बीते सात दशकों में हुए कई बदलाव: शुरुआती सालों में गणतंत्र दिवस पर निकलने वाले परेड को देखने और उसके रूट को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता रहती थी. देश को आजादी मिले कुछ साल ही हुए थे इसीलिए दूर दराज के राज्यों से भी लोग जैसे-तैसे परेड देखने के लिए पहुंचते थे और परेड खत्म होने के बाद फिर गंतव्य के लिए निकल जाते थे. बीते 7 दशक के दौरान गणतंत्र दिवस परेड के लिए कई बदलाव हुए हैं. कोरोना वायरस संक्रमण के चलते पिछले कुछ सालों से परेड के मार्ग में भी बदलाव हुआ है. पहले गणतंत्र दिवस परेड अजमेरी गेट से नया बाजार, लाहौरी गेट, खारी बावली और फिर फतेहपुरी मस्जिद होते हुए चांदनी चौक में पहुंचती थी. इनमें रॉकेट और युद्ध के अत्याधुनिक साजोसमान के साथ, राज्यों और मंत्रालयों की झांकियां होती थी. वहीं इस भव्य परेड में करतब दिखाते सेना के जवान, आज भी लोगों को आकर्षित करते हैं.
तीन दिनों तक रहता था उत्सव का माहौल: गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन की जब बात तय हुई तब से समारोह भले ही दिल्ली के अलग-अलग जगहों पर होता हो, लेकिन उसमें शामिल झांकियां व परेड का समापन लालकिले परिसर में जाकर ही होता है. गणतंत्र दिवस पर चांदनी चौक की गलियों से लेकर सड़कें सजने लगती थीं. हर जगह तिरंगे लहरा रहे होते थे और सड़क के दोनों ओर तख्त और कुर्सियां डाली जाती थी. चाट पकौड़ी की दुकानें लग जाती थी और फुटपाथ से लेकर सड़क लोगों से भरे होते थे. करीब 11:30 बजे परेड व झाकियां चांदनी चौक की सड़कों से गुजरती थी और फूलों से उनका स्वागत होता था. यह गणतंत्र दिवस समारोह तीन दिन तक चलता था.
चांदनी चौक के व्यापारी संजय भार्गव उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि तब वह स्कूल में पढ़ते थे और उनके पिता की कपड़े की दुकान थी. ऐसे में सामने ही सड़क किनारे फुटपाथ पर मेला लग जाता था. परेड के बाद 3 दिन तक लालकिला, चांदनी चौक वालों के मस्ती करने और घूमने का मुख्य ठिकाना होता था. क्योंकि झांकी यहीं देखने के लिए रखी जाती थी. तब चांदनी चौक में अलग ही जश्न का माहौल हुआ करता था. आज तिरंगे वाली टोपी का चलन है जबकि उस समय सफेद टोपी को आजादी का प्रतीक माना जाता था. तब लोग खासकर बुजुर्ग सफेद टोपी लगाकर परेड देखने आते थे.
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दिल्ली में आज जहां गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन हो रहा है यहां 26 जनवरी 1955 से परेड स्थायी रूप से हो रही है. अब यहां सलामी मंच भी स्थायी कर दिया गया है, जहां अब राष्ट्रपति खड़े होकर देश के जवानों को सलामी देते हैं. सेना की टुकड़ियों के मार्च के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झांकियां का भी इतिहास रहा है. समारोह में विभिन्न राज्यों की अलग-अलग थीम पर झांकियां प्रदर्शित की जाती है, जिनमें उन प्रदेशों के अपने खास रंग होते हैं. साल 1953 में पहली बार 26 जनवरी पर सांस्कृतिक लोक नृत्य की झांकियां देखने को मिली थी, जिनमें अलग-अलग राज्यों के आदिवासी नृत्य शामिल थे. लेकिन वक्त के साथ गणतंत्र दिवस समारोह में चाहे भी जितने भी बदलाव आए हों, इसे लेकर देशवासियों के दिल में जोश और उत्साह आज भी बरकरार है.
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