नई दिल्ली: नारीवादी सिद्धांतकार वंदना शिवा का कहना है कि अगर महिलाएं भविष्य तय नहीं करेंगी तो न तो भारत का ही भविष्य है और ना ही इस पृथ्वी का ही भविष्य है .
वंदना शिवा इसके पीछे तर्क देती हैं कि धरती की तबाही जो एक पितृसत्तात्मक और स्वार्थी मानसिकता के चलते हो रही है चाहे जलवायु परिवर्तन हो या फिर प्रजातियों का लुप्त होना, सूखा या जल संकट या फिर रिफ्यूजी संकट, इस दिशा में इंसान धरती पर जी नहीं पाएगा.
ऐसे में महिलाओं की भूमिका अहम है क्योंकि वो प्रकृति की साथी के तौर पर सृजन में भूमिका निभा रही हैं. उदाहरण के लिए कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका से उत्पादकता बढ़ी है.
महिलाओं के हाथ में सृजन की कमान?
वंदना कहती हैं कि भारत को तय करना है कि वह एक स्वार्थ आधारित अर्थव्यवस्था की ओर जाएगा या फिर महिलाओं के हाथ में सृजन की कमान दी जाएगी. उन्होंने बताया कि महिलाओं के लिए विविधता एक मूल्य है जबकि पितृसत्तात्मक सोच के लिए विविधता एक खतरा है, इसलिए पुनः सृजन जरूरी है.
वैश्विक बाजार ही अर्थव्यवस्था?
वंदना शिवा के हिसाब से हमने गलती की है कि हमने वैश्विक बाजार को ही अर्थव्यवस्था मान लिया है जिससे हमारे समाज को और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है .
बता दें कि वंदना शिवा एक दार्शनिक, पर्यावरण कार्यकर्ता, पर्यावरण संबंधी नारी अधिकारवादी एवं कई पुस्तकों की लेखिका हैं.