ETV Bharat / state

महंगाई में विदेशी सामान का विरोध गायब, राजनीतिक दलों ने लिया चीनी टोपियों का सहारा, प्रचार से खादी नदारद

दिल्ली में जहां एमसीडी चुनाव की धमक है तो वहीं गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी चुनावी सरगर्मी जोरों पर है. इन सबके बीच जिस चीज की मांग आसमान पर है, वह है एक खास कपड़ा, जिससे राजनीतिक दलों के लिए टोपियां, झंडे और पटके बनाए जाते हैं. लेकिन ताज्जुब की बात है कि इतने बड़े स्तर पर इस्तेमाल में लाए जाने वाले कपड़े के मैटीरियल का आयात चीन से (caps made with chinese material in elections) किया जाता है. ईटीवी भारत ने इस उद्योग से जुड़े लोगों से बातचीत की और जाना कि क्या है इसके पीछे का कारण. पढ़ें रिपोर्ट

caps made with chinese material in elections
caps made with chinese material in elections
author img

By

Published : Nov 10, 2022, 1:07 PM IST

Updated : Nov 10, 2022, 1:30 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी में एमसीडी चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार हैं. नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ प्रत्याशियों के नाम भी सामने आ रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच पार्टियों द्वारा दी जाने वाली टोपियां अचानक चर्चा में आ गई हैं, क्योंकि ये स्वदेशी कम और विदेशी ज्यादा हैं. जी हां, आपने सही सुना. राजनीतिक रंग में रंगी जो टोपियां पहले खादी से बनाई जाती थीं, उनकी जगह चाइनीज कपड़े (caps made with chinese material in elections) ने ले ली है. इस बारे में जब राजनीतिक दलों के लिए प्रचार सामग्री बनाने वालों से बातचीत की गई तो पता चला कि चुनाव में करीब 90 प्रतिशत टोपियां इसी कपड़े से बनाई जा रही हैं. यही नहीं, इसकी मशीन भी चीन से मंगाई गई है. लेकिन ये बदलाव कैसे आया, और इसके पीछे का मुख्य कारण क्या है, आइए जानते हैं.

दरअसल, पहले चुनावों में राजनीतिक दलों के नेता, कार्यकर्ता खादी के कपड़े से बनी हुई टोपी पहनते थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला, महंगाई बढ़ी और खादी के दाम भी बढ़े, राजनीतिक दल खादी का साथ छोड़ उस विकल्प की ओर बढ़े, जो टोपी बनाने के लिए मुफीद होने के साथ ही उससे काफी सस्ता भी था. इसके बारे में इस उद्योग से जुड़े व्यापारी अमान ने बताया कि वर्तमान में जिस कपड़े से राजनीतिक दलों के लिए टोपियां बनाई जा रही हैं, उस कपड़े का नाम है ना-नुमन. यह कपड़ा काफी हल्का होता है और इससे बनी टोपियां काफी सस्ती पड़ती हैं.

अमान ने आगे बताया कि इस मैटीरियल को प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर देखा जाता है और इससे कैरी बैग आदि भी बनाए जाते हैं. पहले इस कपड़े के मैटीरियल को चीन में बनाया जाता था. एक अनुमान के मुताबिक, दस साल पहले तक भारत में इस कपड़े के मैटीरियल की 100 प्रतिशत सप्लाई चीन से ही होती थी. लेकिन गलवान घाटी में चीन द्वारा किए गए दुस्साहस के बाद भारत में "बॉयकॉट चाइना" मुहिम चली और लोगों ने बड़े स्तर पर चीनी सामान का बहिष्कार किया. इसमें इस कपड़े का मैटीरियल भी शामिल था. इसे देखते हुए भारतीय कंपनियों ने भी ना-नुमन कपड़े की मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी. लेकिन भारी मांग के चलते भारत में अब भी करीब 50 प्रतिशत ना-नुमान कपड़ा चीन से आयात किया जा रहा है.

चुनावों में चाइनीज मैटेरियल से बन रही टोपियां व अन्य सामान

उन्होंने कहा कि चुनाव आने से ना-नुमन कपड़े की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ गई है. इसका उपयोग अलग-अलग प्रकार की टोपी बनाने के साथ झंडे और पटके बनाने में भी होता है. इस मैटीरियल के काफी सस्ता होने की वजह से मार्केट में इसकी डिमांड ज्यादा है. पंजाब चुनाव के समय इस कपड़े से बने टोपी, झंडे और पटके की डिमांड थी तो अब एमसीडी, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव आने पर एक बार फिर इनकी मांग आसमान पर है. इसके चलते दुकानदारों और होलसेल कारोबारियों को करोड़ों रुपये के ऑर्डर मिले हैं.

व्यापारी अमान ने बताया कि वर्तमान में कपड़े की टोपी 5 रुपये से शुरू हो जाती है और 100-200 रुपये तक जाती है, जो कि कपड़े की क्वालिटी पर निर्भर करता है. वहीं, खादी की टोपी 25 रुपये से शुरू होती है. महंगाई के चलते टोपियों के दाम भी बढ़ गए हैं, और इसी को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों के द्वारा सस्ते विकल्प के रूप में ना-नुमन कपड़े की बनी हुई टोपियां खरीदी जाती हैं. इन टोपियों की कीमत डेढ़ से दो रुपये होती है. वहीं खादी की टोपी फिलहाल बाजार में न के बराबर है. अमान ने कहा कि फिलहाल ना नुमन कपड़े की सप्लाई बड़ी मात्रा में चीन से ही हो रही है लेकिन अब चूंकि भारतीय कंपनियों ने भी इसका निर्माण शुरू कर दिया है तो एक अनुमान के मुताबिक लगभग 50 प्रतिशत तक ना-नुमन कपड़े चीन से इंपोर्ट किए जा रहे हैं.

यह भी पढ़ें-एमसीडी चुनाव में भाजपा के उम्मीदवारों की होगी जमानत जब्त: दुर्गेश पाठक

बता दें कि पहले भारत में इस मैटीरियल की मांग इतनी नहीं थी जितनी कि अब हो गई है. इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध. ना-नुमन कपड़े को सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर भी देखा जाता है, जिसके चलते आज भारत में कई जगहों पर कंपनियां इसका उत्पादन कर रही हैं. यह मैटेरियल देश में साल 2015 में ही उपलब्ध हो गया था लेकिन उस समय इससे बनी टोपी की कीमत 10 से 12 रुपये होती थी. अब इस मैटेरियल का बड़े स्तर पर आयात किए जाने के साथ दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में भी इसका उत्पादन किया जाने लगा है जिससे अब यह व्यापारियों को सस्ती दरों पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

नई दिल्ली: राजधानी में एमसीडी चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार हैं. नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ प्रत्याशियों के नाम भी सामने आ रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच पार्टियों द्वारा दी जाने वाली टोपियां अचानक चर्चा में आ गई हैं, क्योंकि ये स्वदेशी कम और विदेशी ज्यादा हैं. जी हां, आपने सही सुना. राजनीतिक रंग में रंगी जो टोपियां पहले खादी से बनाई जाती थीं, उनकी जगह चाइनीज कपड़े (caps made with chinese material in elections) ने ले ली है. इस बारे में जब राजनीतिक दलों के लिए प्रचार सामग्री बनाने वालों से बातचीत की गई तो पता चला कि चुनाव में करीब 90 प्रतिशत टोपियां इसी कपड़े से बनाई जा रही हैं. यही नहीं, इसकी मशीन भी चीन से मंगाई गई है. लेकिन ये बदलाव कैसे आया, और इसके पीछे का मुख्य कारण क्या है, आइए जानते हैं.

दरअसल, पहले चुनावों में राजनीतिक दलों के नेता, कार्यकर्ता खादी के कपड़े से बनी हुई टोपी पहनते थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला, महंगाई बढ़ी और खादी के दाम भी बढ़े, राजनीतिक दल खादी का साथ छोड़ उस विकल्प की ओर बढ़े, जो टोपी बनाने के लिए मुफीद होने के साथ ही उससे काफी सस्ता भी था. इसके बारे में इस उद्योग से जुड़े व्यापारी अमान ने बताया कि वर्तमान में जिस कपड़े से राजनीतिक दलों के लिए टोपियां बनाई जा रही हैं, उस कपड़े का नाम है ना-नुमन. यह कपड़ा काफी हल्का होता है और इससे बनी टोपियां काफी सस्ती पड़ती हैं.

अमान ने आगे बताया कि इस मैटीरियल को प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर देखा जाता है और इससे कैरी बैग आदि भी बनाए जाते हैं. पहले इस कपड़े के मैटीरियल को चीन में बनाया जाता था. एक अनुमान के मुताबिक, दस साल पहले तक भारत में इस कपड़े के मैटीरियल की 100 प्रतिशत सप्लाई चीन से ही होती थी. लेकिन गलवान घाटी में चीन द्वारा किए गए दुस्साहस के बाद भारत में "बॉयकॉट चाइना" मुहिम चली और लोगों ने बड़े स्तर पर चीनी सामान का बहिष्कार किया. इसमें इस कपड़े का मैटीरियल भी शामिल था. इसे देखते हुए भारतीय कंपनियों ने भी ना-नुमन कपड़े की मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी. लेकिन भारी मांग के चलते भारत में अब भी करीब 50 प्रतिशत ना-नुमान कपड़ा चीन से आयात किया जा रहा है.

चुनावों में चाइनीज मैटेरियल से बन रही टोपियां व अन्य सामान

उन्होंने कहा कि चुनाव आने से ना-नुमन कपड़े की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ गई है. इसका उपयोग अलग-अलग प्रकार की टोपी बनाने के साथ झंडे और पटके बनाने में भी होता है. इस मैटीरियल के काफी सस्ता होने की वजह से मार्केट में इसकी डिमांड ज्यादा है. पंजाब चुनाव के समय इस कपड़े से बने टोपी, झंडे और पटके की डिमांड थी तो अब एमसीडी, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव आने पर एक बार फिर इनकी मांग आसमान पर है. इसके चलते दुकानदारों और होलसेल कारोबारियों को करोड़ों रुपये के ऑर्डर मिले हैं.

व्यापारी अमान ने बताया कि वर्तमान में कपड़े की टोपी 5 रुपये से शुरू हो जाती है और 100-200 रुपये तक जाती है, जो कि कपड़े की क्वालिटी पर निर्भर करता है. वहीं, खादी की टोपी 25 रुपये से शुरू होती है. महंगाई के चलते टोपियों के दाम भी बढ़ गए हैं, और इसी को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों के द्वारा सस्ते विकल्प के रूप में ना-नुमन कपड़े की बनी हुई टोपियां खरीदी जाती हैं. इन टोपियों की कीमत डेढ़ से दो रुपये होती है. वहीं खादी की टोपी फिलहाल बाजार में न के बराबर है. अमान ने कहा कि फिलहाल ना नुमन कपड़े की सप्लाई बड़ी मात्रा में चीन से ही हो रही है लेकिन अब चूंकि भारतीय कंपनियों ने भी इसका निर्माण शुरू कर दिया है तो एक अनुमान के मुताबिक लगभग 50 प्रतिशत तक ना-नुमन कपड़े चीन से इंपोर्ट किए जा रहे हैं.

यह भी पढ़ें-एमसीडी चुनाव में भाजपा के उम्मीदवारों की होगी जमानत जब्त: दुर्गेश पाठक

बता दें कि पहले भारत में इस मैटीरियल की मांग इतनी नहीं थी जितनी कि अब हो गई है. इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध. ना-नुमन कपड़े को सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर भी देखा जाता है, जिसके चलते आज भारत में कई जगहों पर कंपनियां इसका उत्पादन कर रही हैं. यह मैटेरियल देश में साल 2015 में ही उपलब्ध हो गया था लेकिन उस समय इससे बनी टोपी की कीमत 10 से 12 रुपये होती थी. अब इस मैटेरियल का बड़े स्तर पर आयात किए जाने के साथ दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में भी इसका उत्पादन किया जाने लगा है जिससे अब यह व्यापारियों को सस्ती दरों पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

Last Updated : Nov 10, 2022, 1:30 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.