नई दिल्ली: दिल्ली के जंतर मंतर पर आदिवासी समुदाय के लोगों ने मंगलवार को प्रदर्शन किया. ये लोग असम से दिल्ली के जंतर मंतर पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे. इस दौरान उन्होंने प्रदर्शन के दौरान जमकर नारेबाजी की. यह प्रदर्शन ऑल इंडिया आदिवासी स्टूडेंट एसोसिएशन ऑफ असम के बैनर तले आयोजित किया गया.
इस दौरान ETV भारत से बात करते हुए ऑल आदिवासी स्टूडेंट एसोसिएशन ऑफ असम के अध्यक्ष प्रदीप नागा ने बताया कि हम सभी आदिवासी असम से यहां पर आए हैं. असम की बीजेपी सरकार ने 2016 चुनाव के दौरान हमसे वादा किया था और हमें एसटी का दर्जा दिलाने की बात कही थी, लेकिन केंद्र में बीजेपी की सरकार और राज्य में भी बीजेपी की सरकार होने के बावजूद हम लोग अभी भी अपने हक के लिए प्रदर्शन करने पर मजबूर है.
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हमारी मांगों पर अभी तक अमल नहीं किया गया है. इसके बाद हमें मजबूरन दिल्ली के जंतर मंतर पर आना पड़ा है. हम आदिवासी समुदाय से हैं और हमें एससी एसटी का दर्जा दिया जाना चाहिए. हमारे समुदाय के लोगों को अन्य कई राज्यों में पहले से ही एसटी का दर्जा मिला है, जो हमारे मूल रिश्तेदार और संबंधी है. लेकिन हम आज भी अपनी मांग जो हमारा हक है उसको लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
हमारे आदिवासी समुदाय 80 लाख लोग हैं हमलोग बहुत सीधे-साधे हैं. साल 2016 में असम में भाजपा की सरकार ने हमसे वादा किया था कि हमें एसटी का दर्जा दिया जाएगा. हम लोग अपनी मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं. अभी असम के अंदर आदिवासियों को ओबीसी में रखा गया है और हमें हमारी जमीन का पट्टा भी नहीं दिया गया है.
हम लोगों को जल्द से जल्द आदिवासियों को जमीन का पट्टा और एससी-एसटी का दर्जा दिए जाना चाहिए. अगर हमारी मांगे नहीं मानी जाती है तो हम फिर आगे प्रदर्शन करेंगे और इसकी जिम्मेदारी वहां की असम सरकार और भाजपा सरकार की होगी. अभी असेंबली चल रही है तो उसमें डिस्कशन हो और हमारा बिल राज्यसभा में रखा है. उसे जल्द सिग्नेचर करके पास किया जाए और एसटी का दर्जा दिया जाए.
प्रदर्शन के दौरान प्रदीप नागा ने कहा है कि वैसे तो केंद्र की मोदी सरकार खुद को गरीबों को अपना मसीहा बताती है. गरीबों का रक्षक कहती है. हम भी आज अपनी मांगों को लेकर जंतर मंतर पर पहुंचे है. ताकि सरकार हमारी मांगे सुने. वहां की राज्य सरकार हमारी मांगों को सुने संविधान ने हमें देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाने और बसने का अधिकार दिया है. आजादी के 76 साल बाद भी हमारे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए जैसा हो रहा है.
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